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देवों से बना शरीर

देवों से बना शरीर

हर हाड़ में हरि मिले ,
रोम रोम में मिले राम ।
हर लक्ष्य में लक्ष्मी मिले ,
श्रीहरि को है प्रणाम ।।
ब्रह्माण्ड में मिले ब्रह्म ,
मांसपेशियों में है माॅं ।
अंग अंग बजरंग बसे ,
देवों बिन ये तन कहाॅं ।।
मन से है मान मिलता ,
मन से मिले अपमान ।
मन से है हैवान बनता ,
मन से बनता है महान ।।
मन से ही व्यवहार है ,
मन से ही घृणा प्यार ।
जिसे चाहो स्वीकार करो ,
जिसे चाहो करो इन्कार ।।
शिव बिन हम शव बने ,
शंकर बिन यह शं कहाॅं !
शं बिन यह धरणी नहीं ,
शंभू बिन यह हं कहाॅं ‌!!
देव देवी बसे अंग अंग में ,
जिनसे बना यह शरीर ।
या तो इन्हें मन बसा लो ,
या थाने लिखाओ तहरीर ।।


पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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