युवास्था की पीड़ा
दिलकी और मन की बातें।बहुत परेशान कर रही है।
और ह्रदय की पीड़ा जो।
बहुत ही बड़ा रही है।।
स्थिर नही है मन पर खिलता हुआ तन।
जिसके कारण से विचलित हूँ बहुत।
पर खुशियों की लहरे उछल रही है।
और दिलकी परते खुल रही है।।
ह्रदय में अगल ही लहरें दौड़ रही है।
और जिज्ञासायें भी परेशान कर रही है।
मन भी मेरा अब स्थिर नही रहता है।
शायद नई शुरुआत का संकेत दे रहा है।।
होता है ये सब उम्र के इस पड़हाव पर।
बेचैनियाँ भी बड़ती है इस अवस्था में।
शायद ये मोहब्बत होने का संकेत है।
इसलिए ह्रदय मेरा उलझने बड़ा रहा है।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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