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चातुर्मास

चातुर्मास

जय प्रकाश कुवंर
चातुर्मास आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी से शुरू होकर कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तक की अवधि होता है। पुराणों के अनुसार इस अवधि में भगवान विष्णु क्षीर सागर में अनंत शैय्या पर योग निद्रा के लिए चले जाते हैं। इसलिए आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं।
चातुर्मास के अंत में कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु पुनः योग निद्रा से उठते हैं और पुनः श्रृष्टि का संचालन करते हैं। इस कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देव उठनी एकादशी कहते हैं।
चातुर्मास की अवधि आषाढ़ मास से लेकर कार्तिक मास तक चार महीने की होती है, इसीलिए इसे चातुर्मास कहते हैं। अब चूंकि इन चार महीनों में भगवान विष्णु शयन करते हैं, अतः इन चार महीनों में कोई भी धार्मिक एवं मांगलिक कार्य, जैसे शादी बिबाह, गृह प्रवेश, देवी देवताओं की प्राण प्रतिष्ठा तथा यज्ञादि संस्कार स्थगित रहते हैं।
चातुर्मास के समापन यानि देव उठनी एकादशी को जब पुनः भगवान विष्णु योग निद्रा से उठते हैं, तो पुनः धार्मिक एवं मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं।
धर्म शास्त्रों के अनुसार सृष्टि के संचालन का कार्य भगवान विष्णु के हाथ में रहता है। लेकिन उनके शयनकाल में चार महीने की अवघि तक सृष्टि के संचालन का कार्यभार भगवान शिव और उनके परिवार पर आ जाता है। इसलिए चातुर्मास में भगवान शिव और उनके परिवार से जुड़े पर्व त्योहार मनाये जाते हैं। सावन माह में पूरे महीने शिव मंदिरों में शिवजी और उनके परिवार का विशेष अभिषेक पूजन आदि होता है। भादो महीने में दश दिनों तक गणेश जी का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इसके बाद आश्विन महीने में देवी दुर्गा की आराधना शारदीय नवरात्रि के जरिये की जाती है।
चातुर्मास में हिन्दूओं के कुछ बड़े पर्व त्योहार जो मनाये जाते हैं, वे क्रमशः ये हैं :-
गुरु पूर्णिमा,
सावन में शिव पूजा और कांवर यात्रा,
नागपंचमी,
रक्षा बंधन,
श्री कृष्ण जन्माष्टमी,
गणेश उत्सव,
पितृ पक्ष,
नवरात्रि,
शरद पूर्णिमा,
करवा चौथ,
छठ पूजा।
चातुर्मास का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं है, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी ये चार महीने बहुत सावधानी बरतने के होते हैं। ये चार महीने बरसात के होते हैं। गर्मी से तपन के बाद बरसात शूरू होती है और मौसम परिवर्तन के साथ प्रकृति करवट बदलती है। इस समय वातावरण में जीवाणु और रोगाणु अधिक सक्रिय हो जाते हैं। इस चातुर्मास की अवधि में नियम संयम और परहेज शरीर को स्वस्थ रखने के लिए बहुत कारगर साबित होता है। इस काल में यात्राओं और आयोजनों का निषेध किया गया है ताकि अनेक लोगों के एकत्र होने से संक्रमण फैलने से बचा जा सके। इस दौरान मानव शरीर की पाचन शक्ति भी कमजोर हो जाती है। इसलिए इस अवधि में संतुलित, हल्का और सुपाच्य भोजन करने की सलाह दी जाती है।


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