खुद की अहमियत खुद ही बनानी पड़ती है,
शेर को आँख कभी कभी दिखानी पड़ती है।कहीं डाँटना कभी मनाना, सब चालें होती,
सत्ता ताकत जनता को समझानी पड़ती है।
चला गया है दौर पुराना जब राजा होते थे,
पीढ़ी दर पीढ़ी उनके ही सिंहासन होते थे,
बाप का वारिस बडा बेटा उस पर बैठेगा,
नियम कानून सब उनकी जेबों में होते थे।
नये दौर में सब नयी व्यवस्था आयी हैं,
सारी जिम्मेदारी अधिकारी पर आयी है।
सिंहासन भी अब उन पर ही आश्रित है,
चमचों और दलालों की मौज आयी है।
नेता आश्रित अधिकारी पर, चमचों की बातें सुनता,
अधिकारी चमचों का जाल, उसके इर्दगिर्द बुनता।
नहीं जानते नेताजी अब, क्या प्राथमिकताएँ देश की,
साँप निकल गया लकीर पीटते, नेता फिर सिर धुनता।
अ कीर्ति वर्द्धन
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