प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव डॉ. पी.के. मिश्रा ने भारत की आपदा प्रबंधन प्रणाली में बदलाव लाने में संस्थाओं, कानूनों, विनियमों और क्षमता निर्माण की भूमिका का विश्लेषण किया

- डॉ. पी.के. मिश्रा ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत मानवीय सहायता और आपदा राहत (एचएडीआर) कार्यों में एक प्रमुख वैश्विक प्रत्युत्तरकर्ता के रूप में उभरा है
- डॉ. पी.के. मिश्रा ने भारतीय प्रबंधन संस्थान, बैंगलोर के लोक नीति केंद्र (सीपीपी) के रजत जयंती स्थापना दिवस पर आयोजित कार्यक्रम को संबोधित किया
प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव डॉ. पी.के. मिश्रा ने कहा कि वित्तपोषण तंत्र, संस्थागत विकास और क्षमता निर्माण में निवेश का उद्देश्य मापनयोग्य परिणाम प्रदान करना है। डॉ. मिश्रा ने जोर देकर कहा कि भारत की विकसित होती आपदा जोखिम प्रबंधन प्रणाली की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक आपदा-संबंधी मृत्यु दर में कमी है। डॉ. पी.के. मिश्रा भारतीय प्रबंधन संस्थान, बैंगलोर में सेंटर फॉर पब्लिक पॉलिसी (सीपीपी) के रजत जयंती स्थापना दिवस के अवसर पर संबोधित कर रहे थे। उन्होंने बताया कि कैसे एक व्यापक दृष्टिकोण वाले गुजरात भूकंप भरपाई कार्यक्रम ने देश की आपदा प्रबंधन प्रणाली को बदलने में मदद की।
डॉ. पी.के. मिश्रा ने इस बात पर जोर दिया कि बेहतर पूर्व-चेतावनी प्रणालियों, सशक्त संस्थानों, बेहतर योजना और अधिक संवेदनशील वित्तपोषण के संयुक्त प्रभाव से, तीव्र और धीमी शुरुआत वाले, दोनों ही प्रकार के खतरों में मृत्यु दर में लगातार गिरावट देखी गई है। डॉ. मिश्रा ने यह भी कहा कि यह आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए सेंडाई फ्रेमवर्क के तहत मूल प्रतिबद्धता के अनुरूप है, जिस पर भारत एक हस्ताक्षरकर्ता है।
"गुजरात से म्यांमार तक: पिछले 25 वर्षों में भारत की आपदा प्रबंधन नीति और कार्यप्रणाली का विकास" विषय पर अपने व्याख्यान पर विस्तार से चर्चा करते हुए, डॉ. पी.के. मिश्रा ने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के 'विकसित भारत' के विजन से प्रेरित किया। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि पिछले दो-तीन दशकों में भारत की आपदा प्रबंधन नीतियां और कार्यप्रणाली कैसे विकसित हुई हैं।
डॉ. पी.के. मिश्रा ने कहा कि भारत में आपदा जोखिम प्रबंधन की कार्यप्रणाली में कई बदलाव आए हैं। डॉ. मिश्रा ने अपने विचार-विमर्श में 1991 के ओडिशा सुपर साइक्लोन, 2001 के गुजरात भूकंप और 2004 के हिंद महासागर में आई सुनामी के बारे में बताया, जिससे कई सबक मिले। डॉ. मिश्रा ने कहा कि 1993 का लातूर भूकंप और 2005 का कश्मीर भूकंप जैसी अन्य घटनाएं भी हुईं। उन्होंने यह भी कहा कि इसके अलावा, वैश्विक नीति प्रक्रियाओं जैसे कि प्राकृतिक आपदा न्यूनीकरण के लिए अंतरराष्ट्रीय दशक (आईडीएनडीआर) 1990-1999, ह्योगो फ्रेमवर्क फॉर एक्शन (एचएफए) 2000-2015 और सेंडाई फ्रेमवर्क 2015-2030 ने हमारी सोच और व्यवहार को बहुत प्रभावित किया है।
व्यापक प्रत्युत्तर और पुनर्निर्माण, तथा दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य के महत्वपूर्ण मोर्चे पर, डॉ. पी.के. मिश्रा ने कानूनी ढांचे, नियामक सुधारों, प्रशिक्षण और ज्ञान नेटवर्क, भवन नियमन और खतरा प्रतिरोधी निर्माण के माध्यम से आपदा प्रबंधन को संस्थागत बनाने के लिए प्रभावी और निर्णायक कदमों पर प्रकाश डाला।
गुजरात पहल के महत्व पर बात करते हुए, डॉ. मिश्रा ने गुजरात राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (जीएसडीएमए) द्वारा की गई विविध गतिविधियों से अवगत कराया, जो प्रत्युत्तर और राहत से कहीं आगे बढ़कर, भूकंप पुनर्निर्माण कार्य; नीतियों और कानूनों का निर्माण; आपदा प्रबंधन योजनाओं की तैयारी; तैयारी संबंधी पहल; क्षमता निर्माण; शमन उपाय; और जागरूकता एवं सामुदायिक तैयारी, आदि।
"वित्त एक आधार के रूप में: आपदा जोखिम वित्तपोषण का विकास" विषय पर चर्चा करते हुए, डॉ. पी.के. मिश्रा ने इस बात पर ज़ोर दिया कि नए वित्तपोषण ढांचे का एक सबसे महत्वपूर्ण वैचारिक योगदान यह मान्यता है कि आपदा प्रबंधन में विभेदित किन्तु परस्पर निर्भर कार्य शामिल हैं - प्रत्युत्तर और राहत, भरपाई और पुनर्निर्माण, तैयारी और शमन।
हाल के दिनों में आपदा प्रबंधन में भारत की महत्वपूर्ण उपलब्धियों पर बोलते हुए, डॉ. पी.के. मिश्रा ने प्रमुख उपलब्धियों की पुष्टि की, जो इस प्रगति को दर्शाती हैं: चक्रवात से संबंधित मृत्यु दर में नाटकीय कमी; राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर बढ़ी हुई प्रत्युत्तर क्षमता; प्रौद्योगिकी के माध्यम से त्वरित और पारदर्शी राहत वितरण; आपदा के बाद सामाजिक सुरक्षा और खाद्य सुरक्षा; बेहतर क्षति आकलन और सुदृढ़ भरपाई; और वैश्विक आपदा सहायता तथा मानवीय सहायता और आपदा राहत (एचएडीआर) में नेतृत्व।
उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि आज भारत का आपदा प्रबंधन विकास एक व्यवस्थित और एकीकृत दृष्टिकोण को दर्शाता है – जिसमें प्रौद्योगिकी, संस्थागत क्षमता, सामुदायिक सहभागिता और सामाजिक सुरक्षा का संयोजन शामिल है। ये उपलब्धियां भारत को न केवल एक क्षेत्रीय अग्रणी के रूप में, बल्कि आपदा जोखिम प्रबंधन में एक वैश्विक तौर पर सर्वोत्तम मॉडल के रूप में भी स्थापित करती हैं।
भविष्य की चुनौती इस गति को बनाए रखने, नए जोखिम क्षेत्रों (जैसे, शहरी बाढ़, लू) में तैयारी को मजबूत करने और भरपाई एवं विकास के सभी पहलुओं में जलवायु अनुकूलन को शामिल करने की है।
जलवायु परिवर्तन, भू-राजनीतिक घटनाक्रम और अन्य कारकों के कारण उत्पन्न होने वाली उभरती चुनौतियों के संदर्भ में आपदा प्रबंधन प्रणाली को अपनी मजबूती बनाए रखने की आवश्यकता है। हमें एक सक्रिय, पुनरावृत्त और कार्य-उन्मुख दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है, जहां प्रत्येक सुधार दूसरे को मजबूत करे, और जहां सभी घटक संसाधनों, सुरक्षा और अवसरों तक लोगों की पहुंच में सुधार के लिए एक साथ आएं।
डॉ. पी.के. मिश्रा ने जोर देकर कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत मानवीय सहायता और आपदा राहत (एचएडीआर) कार्यों में एक प्रमुख वैश्विक प्रत्युत्तरकर्ता के रूप में उभरा है, जो संकट के समय क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय एकजुटता के प्रति उसकी बढ़ती प्रतिबद्धता को दर्शाता है। अपने प्रशिक्षित और सुसज्जित राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ) और सशस्त्र बलों के माध्यम से, भारत ने नेपाल (2015 भूकंप), तुर्की (2023 भूकंप) और म्यांमार (2025 भूकंप) जैसे देशों को समय पर आपदा प्रत्युत्तर सहायता प्रदान की है।
डॉ. पी.के. मिश्रा ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत के नेतृत्व में संस्थागत नवाचार का एक आशाजनक उदाहरण आपदा रोधी इन्फ्रास्ट्रक्चर गठबंधन (सीडीआरआई) है, जो वैश्विक स्तर पर इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रणालियों में अनुकूलन को बढ़ावा देने के लिए स्थापित एक बहुपक्षीय मंच है। भारत द्वारा परिकल्पित और संचालित, सीडीआरआई विशिष्ट संस्थानों की एक नई पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करता है, जो एक केंद्रित क्षेत्र – अनुकूल इन्फ्रास्ट्रक्चर से जुड़े समाधान के माध्यम से वैश्विक सहयोग और ज्ञान के आदान-प्रदान को सुगम बनाता है।****
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