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भीगना बारिश में और आकर लिपटना,

भीगना बारिश में और आकर लिपटना,

धूप में भी सिर पर आँचल और पसीना।
देखकर तिरछी नजर, मंद मंद मुस्काना,
पल जिये जो साथ तेरे, सब हैं धरोहर।


गंगा तट पर बैठकर, कल-कल सुनना,
हाथ में हाथ लें, उपवन में थिरकना।
तन्हां पलों में कुछ सुनहरे ख़्वाब बुनना
कैसे भूलें उन पलों को, जो हैं धरोहर।


चाँदनी में तन्हा जब चाँद का निहरना,
बादलों के बीच तुम्हारी ही कल्पना।
आँखों की गहराई में डूबना और उतरना
भूले बिसरे पल सभी, मेरी हैं धरोहर।

डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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