अराजक राहुल का अराजक विपक्ष
डॉ राकेश कुमार
बहुत देर तक देश के लोग राहुल गांधी को पप्पू के नाम से जानते रहे। परंतु अब अचानक देश की मीडिया में राहुल का यह नाम लगभग गायब हो गया है। क्योंकि राहुल गांधी की पप्पूगिरी वास्तव में लोगों को समझ में आ गई है और अब लोग उन्हें 'अराजक राहुल' के रूप में देख रहे हैं। उन्होंने यह प्रतिज्ञा कर ली है कि उन्हें किसी भी सूरत में सरकार का समर्थन नहीं करना है और देश की संसद में हर वह स्थिति उत्पन्न करनी है जो अराजकता की श्रेणी की हो। इसीलिए देश की संसद में वही हो रहा है जो कांग्रेस के नेता राहुल गांधी की नीतियों के कारण पिछले 11 वर्ष से होता रहा है। यह अराजकता का नंगा नाच है। लगभग ढाई लाख रुपए प्रति मिनट के हिसाब से संसद की कार्यवाही पर देश की जनता का खर्च होता है। इस दृष्टिकोण से साढ़े 22 करोड़ से भी अधिक रुपया देश के आय करदाताओं का राहुल गांधी के नेतृत्व में विपक्ष की टीम ने व्यर्थ में व्यय कार्यदिया है। सदन को न चलने देना उनकी नीति ,रणनीति और राजनीति का अंग बन चुका है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सारा विपक्ष राहुल गांधी की इस प्रकार की 'अनीति' का समर्थन कर रहा है।
यह एक सर्वमान्य सत्य है कि कांग्रेस को विपक्ष में बैठना कभी रास नहीं आता। उसे सत्ता का उतावलापन रहता है। यही कारण है कि गैर कांग्रेसी सरकारों को गिराने में उसकी रुचि रहती है।
राहुल गांधी सत्ता प्राप्ति के लिए कितने उतावले क्यों हैं ? निश्चय ही यह बात आज विचारणीय है। इस पर विचार करते हुए हमें ध्यान देना चाहिए कि 1947 में जब देश आजाद हुआ तो सत्ता राहुल गांधी की दादी अर्थात इंदिरा गांधी के पिता नेहरू के हाथों में आई। तभी से लेकर जब तक सत्ता कांग्रेस या कांग्रेस समर्थक दलों के हाथों में रही, तब तक कांग्रेस समर्थक अधिकारी नौकरशाही में सम्मिलित होते रहे। इस प्रकार पूरी व्यवस्था को अपनी पसंद की नौकरशाही के माध्यम से नेहरू की कांग्रेस ने अपने हाथों में ले लिया। जब-जब भी गैर कांग्रेसी सरकारें आईं तो उनमें से अधिकांश अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाईं । इसका कारण यही रहा कि व्यवस्था में सम्मिलित रहने वाली नौकरशाही ने किसी गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री को सरकार का कार्यकाल पूरा नहीं करने दिया। यदि उसने किया भी तो कांग्रेसी मानसिकता की नौकरशाही के द्वारा अनेक प्रकार के व्यवधान डालने का प्रयास किया गया। 2014 के बाद पहली बार देखा जा रहा है कि कांग्रेस और विशेष रूप से नेहरू गांधी परिवार के बाहर से तीसरी बार किसी एक ही पार्टी या गठबंधन का नेता प्रधानमंत्री बन पाया है। अब जितनी देर होती जाएगी राहुल गांधी के लिए उतनी ही बेचैनी बढ़ती जाएगी। क्योंकि जिस प्रकार लोकतंत्र और संविधान की हत्या करते हुए पीछे से कांग्रेस और विशेष रूप से नेहरू गांधी परिवार ने नौकरशाही में अपने लोगों को बैठाया था , वह धीरे-धीरे समाप्त होते जाएंगे और भाजपा समर्थक लोग ( जो कि राहुल गांधी का वास्तविक डर है ) अपना स्थान बनाते चले जाएंगे । राहुल गांधी यह भली प्रकार जानते हैं कि जिस प्रकार कांग्रेस द्वारा लाए गए अपने समर्थक अधिकारी गैर कांग्रेसी सरकारों को गिराते थे, वैसा ही काम उनके साथ भी हो सकता है। इसलिए वे चाहते हैं कि इससे पहले कि सारी नौकरशाही ' भाजपा समर्थक' बने, उन्हें सत्ता मिल जानी चाहिए।
राहुल गांधी झूठ का सहारा खुलेआम लेते हैं और उसे बड़े आत्मविश्वास के साथ बोलते हैं। अपने चेहरे को आक्रामक और मासूम दिखाते हैं, जिससे आम आदमी को छला जा सके। वह इस बात के लिए जान जाते हैं कि उन्होंने 2014 के पश्चात एक भी संसदीय सत्र को आराम से और विधिवत चलने नहीं दिया है। जब उनसे पूछा जाता है कि आप सदन को चलने क्यों नहीं देते हैं ? तब वह बड़ी ढीठता के साथ उत्तर देते हैं कि सदन को चलाना सरकार का काम है, विपक्ष का नहीं। जब उनसे कहा जाता है कि सरकार के द्वारा लाए जा रहे विधेयक या कानून में यदि आप कोई कमी देखते हैं तो उसे आप ठीक कर दीजिए। तब वह और भी अधिक ढीठता के साथ कहते हैं कि हमारा काम सवाल उठाना है ? किसी आने वाले कानून या विधेयक में संशोधन करना हमारा काम नहीं।
राहुल गांधी संविधान की बात करते हैं। संविधान के अनुसार देश को चलाने की बात करते हैं और संवैधानिक व्यवस्थाओं और मर्यादाओं का स्वयं उल्लंघन ही नहीं करते बल्कि उन्हें कुचलते भी हैं। अब से पूर्व के कई सत्रों में सरकार ने उनके साथ समन्वय स्थापित करने का भरसक प्रयास किया। जब जब भी मोदी सरकार के काल में संसद में किसी प्रकार का गतिरोध आया तो लोकसभा में लोकसभाध्यक्ष और राज्यसभा में सभापति के कक्ष में जाकर पक्ष विपक्ष की कितनी ही बार बैठकें हुईं। जिनमें यह निर्णय लिया गया कि हम दोनों पक्ष मिलकर सदन को चलाएंगे, परंतु अपनी गलत सोच का परिचय देते हुए विपक्ष ने हर बार लोकसभाध्यक्ष या सभापति से यह व्यवस्था भी बनवा ली कि सदन में पहले विपक्ष को बोलने का समय दिया जाएगा। सरकार ने अपनी उदारता का परिचय देते हुए इस बात को भी मान लिया, परन्तु राहुल गांधी के नेतृत्व में कुटिल मार्ग पर चल पड़े विपक्ष ने सदन में लौटते ही अपने बोलने तक तो सदन को चलने दिया किन्तु जब यह देख लिया कि हमारा संदेश तो जनता में चला गया तो उसके बाद सत्ता पक्ष के किसी नेता के बोलने के समय विपक्ष संसद में या तो शोर मचाने लगा या फिर बहिर्गमन कर गया। यहां तक कि प्रधानमंत्री को भी विपक्ष ने बोलने नहीं दिया।
हम सभी जानते हैं कि करोड़ों रुपया संसद के प्रत्येक दिन के सत्र पर समाप्त होता है। कांग्रेस के राहुल गांधी की गलत सोच और अनीतिपरक चालों के कारण अब स्थिति यह आ गई है कि लोकसभा या राज्यसभा को मात्र 20 - 30 मिनट के चलने के बाद ही स्थगित करना पड़ रहा है। ऐसे में सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि देश कैसे चलेगा ? देश तो संसद के सत्र चलने से चलता है। जिसे विपक्ष चलने नहीं दे रहा है। लगता है राहुल गांधी प्रधानमंत्री मोदी को कोई अपने विरुद्ध कठोर कानूनी कार्यवाही के लिए मजबूर करना चाहते हैं। जिससे वह इसका गलत लाभ उठा सकें । जनता में प्रचार कर सकें कि मोदी तानाशाह हैं और देखिए हमारे साथ क्या कर रहे हैं ? जब सत्ता पक्ष विपक्ष के प्रत्येक मुद्दे पर विचार करने के लिए तैयार है और विचारों के आदान-प्रदान के लिए विपक्ष को समय देने के लिए भी तैयार है, तब विपक्ष को संसद का सदुपयोग करते हुए सारे देश को अपना संदेश देना चाहिए । उसका पूरा अधिकार है कि वह 'ऑपरेशन सिंदूर' की कथित कमियों को संसद के सत्र के माध्यम से उठाकर सारे देश को सुनाए और सरकार को निरुत्तर करे। परंतु ऐसा न करके राहुल गांधी के नेतृत्व में विपक्ष केवल इस बात पर अड़ा हुआ है कि न तो संसद चले और न ही देश चले। राहुल गांधी जिस संविधान की प्रति को हाथ में लेकर अपनी जनसभाओं में लहराते रहे हैं, उसी संविधान का सम्मान भी उन्हें करना सीखना चाहिए। क्योंकि इसी संविधान में देश के विधानमंडलों को सुचारू रूप से चलने में विपक्ष की भूमिका का भी उल्लेख है।
राहुल गांधी की यदि 17वीं लोकसभा में उपस्थिति की बात करें तो वह 100 में से मात्र 51 बैठकों में ही उपस्थित रहे। जबकि अन्य सदस्यों की सामान्य उपस्थिति लगभग 79% की रही है। उन्होंने 17वीं लोकसभा में जितनी डिबेट चलीं, उनमें से केवल 8 में भाग लिया । जबकि अन्य सांसदों की डिबेट में भाग लेने की सामान्य उपस्थिति लगभग 47% रही है। उन्होंने 17वीं लोकसभा में मात्र 99 सवाल पूछे। जबकि सामान्य रूप से सांसदों ने 210 सवाल पूछे। राहुल गांधी जिस राज्य से लोकसभा में आते हैं, उसके सांसदों ने सामान्य रूप से 275 सवाल पूछे । जहां तक निजी विधेयक लाने की बात है तो 17वीं लोकसभा में राहुल गांधी एक भी निजी विधेयक नहीं ला पाए, जबकि सामान्य रूप से प्रत्येक सांसद लगभग डेढ़ बार निजी विधेयक लेकर आया। इन तथ्यों से स्पष्ट हो जाता है कि राहुल गांधी की दृष्टि में संविधान, संविधान संगत संसद के सत्रों की प्रक्रिया में कोई रुचि नहीं है।
फिर राहुल गांधी की रुचि किस बात में है ? उनके आचरण, उनके व्यवहार और उनकी कार्य शैली से स्पष्ट होता है कि उनकी रुचि केवल सरकार गिराने में है या ऐसी स्थिति बना देने में है जिससे इस सरकार को अधिक से अधिक बदनाम किया जा सके। यद्यपि राहुल गांधी यह भली प्रकार जानते हैं कि यदि इसी समय सरकार गिराई जाती है तो भी वह देश के प्रधानमंत्री बनने वाले नहीं हैं ? परंतु इसके पीछे उनकी कुटिल सोच यही है कि प्रधानमंत्री बनें या ना बनें परंतु मोदी सरकार को बदनाम करने का कोई अवसर उन्हें खाली नहीं जाने देना है। वह यह भी भली प्रकार जानते हैं कि यदि किसी प्रकार यह सरकार मध्यावधि चुनाव करवा देती है और उसमें पिछली बार से भी कम सीट भाजपा और उसके साथी दलों को मिलती हैं तथा विपक्ष को सरकार बनाने का अवसर मिल जाता है तो भी विपक्ष में कई नेता ऐसे बैठे हैं जो राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के रूप में देखना नहीं चाहेंगे। इसके उपरांत भी उनकी सोच है कि मोदी सरकार को गिराया जाए। क्यों ?
क्योंकि एक बार सत्ता से भाजपा को हटाने के बाद किसी दूसरे प्रधानमंत्री को थोड़ी देर झेलकर वह जनता में यह संदेश देंगे कि भाजपा के बाद यदि कोई पार्टी स्थाई सरकार दे सकती है तो वह कांग्रेस ही है। इतने ही समय में कांग्रेस की मानसिकता की नौकरशाही उनके लिए रास्ता साफ करेगी, और फिर वह प्रधानमंत्री बनकर भगवा के खिलाफ काम करते हुए सारी भगवा विरोधी शक्तियों को अपने पीछे लाकर देर तक शासन कर पाएंगे। परन्तु क्या राहुल गांधी का यह सपना सफल हो पाएगा ? सपने तो मुंगेरीलाल ने भी देखे थे और सपने देखने का अधिकार सबको है। इसलिए राहुल गांधी भी सपने देख सकते हैं। परंतु अब उन्हें यह ध्यान रखना चाहिए कि देश की जनता जाग चुकी है और उन सभी देश विरोधियों को समझ चुकी है जो अपनी दोगली चालों से देश की वैदिक विचारधारा अर्थात भारतीयता का अपमान करते रहे हैं , अब अपमान करने वालों को देश के लोग सहन नहीं कर पाएंगे।
( लेखक डॉ राकेश कुमार आर्य सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं)
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