बदला
जितेन्द्र नाथ मिश्र
कहानी आज से बीस वर्ष पहले की है।सुलेखा ने एक बच्चे को जन्म दिया । नर्स ने कहा मुबारक हो सुलेखा ।आपको बेटा हुआ है। सुनते ही उसकी आंखों में अजीब सी चमक दिखाई दी। लगा अब उसकी तपस्या निश्चित रूप से पुरी होगी। अस्पताल से नाम कटने के समय बच्चे का जन्म प्रमाणपत्र बनाने की प्रक्रिया आरम्भ हुई।नर्स ने आकर पूछा सुलेखा जी बच्चे का क्या नाम लिखूं? पिताजी का भी नाम बताएं।उसने शांत भाव से कहा बच्चे का नाम अमूल्य लिख दिया जाए। पिता का नाम का स्थान खाली रहने दिजिए। क्योंकि अमूल्य के लिए पिता का नाम बताना अमूल्य को गाली देने समान होगा।
सुलेखा कार्यालय से तीन वर्ष का संवैधानिक मातृत्व अवकाश और दो वर्ष का अवैतनिक अवकाश लेकर बहुत लाड़ प्यार से अमूल्य को पालने लगी।
आज अमूल्य पांच वर्ष का हो गया है। सुलेखा अमूल्य को अपने कार्यालय के समीप एक प्लस टू स्कूल में नामांकन करा दी। नामांकन के समय पुनः उससे पूछा गया था कि जन्म प्रमाणपत्र में पिता का नाम अंकित नहीं है। इसलिए अमूल्य के पिता का क्या नाम लिखूं? उसने हंसते हुए कहा सर जी जन्म प्रमाणपत्र में जो लिखा है वहीं लिखा जाए। शेष कालम को खाली छोड़ दें। अब वह प्रतिदिन अमूल्य को साथ लेकर जाती, स्कूल में छोड़ अपने कार्यालय जाती। शाम चार बजे सुलेखा का चपरासी अमूल्य को स्कूल से लेकर कार्यालय ले आता और तब शाम में सुलेखा अपने साथ घर ले आती।
अमूल्य बराबर सुलेखा से अपने पिताजी के बारे में पूछता पर सुलेखा कुछ भी बताती नहीं। एक बार अमूल्य पिता के बारे में जानने के लिए जीद्द कर बैठा। सुलेखा क्या कहती? कोई रास्ता न देख गुस्से में आकर बहुत मारी और कहा कि आज के बाद कभी नहीं पूछना। अमूल्य दसवीं कक्षा में पहुंच गया था । एक दिन सुलेखा से कहा "मां क्या कोई दूसरा प्रश्न पूछूं। मारोगी तो नहीं न। सुलेखा ने बहुत प्यार से उसका सर चूमा और कहा पूछ मेरे लाल। मैं यदि उसका उत्तर जानती होंगी तो जरूर बताउंगी।
अमूल्य ने पूछा मां हमलोग अधजले घर में क्यों रहते हैं?तुम बनवा क्यों नहीं देती। सुलेखा ने कहा बेटा जब तू बड़ा हो जाएगा तो तुम इसे बनाओगे।यह तुम्हारे लिए ही छोड़ा है। खुब मेहनत से मन लगाकर पढ़ाई करो। मेरा सपना है तुम आई ए एस बन। आई ए एस बन मेरा सपना साकार करो और इस अधजले घर को तोड़ सुंदर हवेली बना दो। पुनः पूछा मां उस खंडहर में किस भगवान की पूजा करने तुम जाती हो। प्रश्न सुनते ही आंखों में आंसू भर आए किसी तरह अपने को नियंत्रित करते हुए कहती है "बेटा मैं कुल देवता और कुल देवी की पूजा करती हूं। मैं प्रतिदिन इनसे प्रार्थना करती हूं और कहती हूं कि मेरा लाल बड़ा होकर आपके लिए एक बड़ा मंदिर बना देगा।
एक दिन की बात है अमूल्य का स्कूल बंद था। सुलेखा अमूल्य को नाश्ता कराकर दफ्तर चली गई। अमूल्य घर में अकेला रह गया। आयरन करने के लिए अपने कपड़े को ढूंढ रहा था
अचानक उसकी नज़र एक डायरी पर पड़ी जिसे मां ने छिपाकर रखा था। अमूल्य उस डायरी को उठाकर पढ़ने लगा। उस डायरी में लिखा था कि पड़ोस में रहने वाले अब्दुल मियां एक राजनीतिक दल के अध्यक्ष थे,का नालायक बेटा हामिद कालेज आते जाते अक्सर उसे छेड़ते रहता था।
एक दिन तंग आकर उसने अपनी मां को बताया। सुलेखा के पिता को जब मालूम हुआ तो उन्होंने अब्दुल मियां से उसकी शिकायत की। जब हामिद को मालूम हुआ कि उसके अब्बा से उसकी शिकायत की गई है तो उसने सुलेखा के परिवार को सबक सिखाने के लिए सोंच लिया।
अचानक शहर में साम्प्रदायिक दंगा होने लगा। हामिद ने इसी का फायदा उठाकर पहले तो सुलेखा के मां पिताजी के हाथ पैर बांध कर पीटने लगा। सुलेखा दौड़कर रसोई घर से चाकू लाकर उसपर वार कर देती है है। खून से लतपथ रहने पर भी वह सुलेखा के साथ बलात्कार कर देता है, इसके बाद घर में आग लगा उसकी मां पिताजी को आग के हवाले कर देता है। जिसमें जलकर दोनों की मृत्यु हो गई। सुलेखा ने वो चाकू जिससे हामिद पर वार किया था ,को छीपा कर रख दिया और मुहल्ले वालों के सहारे वहीं पर दोनों को दफन कर उस स्थान पर दो ईंट रखकर नियमित रूप से पूजा करती है।
मुहल्ले के लोगों के विरोध प्रदर्शन के बाद थानेदार ने हामिद के खिलाफ केस दर्ज कर लिया। न्यायालय में थानेदार ने हत्या बलात्कार और आगजनी का कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया फलत: मुकदमा खत्म हो गया और हमिद बेकसूर साबित हो गया विधानसभा में हो हल्ला होने पर
सरकार ने एस आई टी से जांच कराने की घोषणा करते हुए एक एस आई टीम भी गठित करते हुए एस आई टी को तीन माह के अंदर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप देने का आदेश दिया।साथ ही सुलेखा को कलर्क की नौकरी भी देने की घोषणा करती है।हामिद के पिता ने अपनी ओर से दो लाख का एक चेक देते हुए कहा बेटा । ज़िंदगी खत्म जरुर होती है पर जीवन नहीं । इसे नियती मान स्वीकार करो और नये ढंग से जीवन की शुरुआत करो ।
मामला शांत होते ही एस०आई०टी०ने मनगढ़ंत जांच रिपोर्ट सरकार को सौंप देती है जिसमे लगभग पच्चीस फर्जी गवाहों के नाम थे। इस रिपोर्ट के अनुसार हामिद बेगुनाह साबित हो जाता है।
डायरी को पढ़कर अमूल्य हक्का बक्का रह गया। उसने प्रण कर लिया कि उसे एक अधिवक्ता बनकर मां को न्याय दिलाते हुए अपराधी को फांसी के फंदे पर झूलाना है। इंटर करते ही उसने सुलेखा से कहा मां मैं अच्छे विश्वविद्यालय से वकालत की पढ़ाई कर समाज के दूर्र्नामी अपराधी को दंड दिलाना चाहता हूं।
इधर हामिद विधानसभा का चुनाव लड़कर विधायक बन जाता है। तीसरी बार विधायक बन मंत्री बन जाता है। सच्चाई तो यह थी कि विधायक बन सफेद सर्ट पहन वह काले कारनामों को छुपाने की कोशिश करता है।
अमूल्य ने प्रतियोगिता परीक्षा के लिए कड़ी मेहनत की और उसका दाखिला एक अच्छे विश्वविद्यालय में एल०एल०बी० कोर्स में हो गया। एल०एल०बी० की डिग्री मिलते ही सबसे पहले उसने सरकार से सूचना का अधिकार के तहत एस०आई०टी०जांच रिपोर्ट की मांग किया। जांच रिपोर्ट मिलते ही उसने न्यायालय से इस बंद केस को खोलने का अनुरोध करता है। न्यायालय उसके आवेदन पर विचार करते हुए दुबारा केस खोल देती है। न्यायालय ने उसके आवेदन पर विचार करते हुए अब्दुल मियां,हामिद,
राज्य सरकार ,एस०आई०टी० एवं थानेदार को नियत तिथि को न्यायालय में उपस्थित होने के लिए सम्मन जारी कर देती है तरीख पड़ते ही वह मां का पैर छुते हुए कहता है मां आज मेरे पहले मुकदमें का पहला दिन है । मैंने उस डायरी को पढ लिया था । जिसे तूने मुझसे छुपा कर रखा था।नाना -नानी और तुमको न्याय दिलाने के लिए ही तो मैं अधिवक्ता बना हूं। सारे साक्ष्य मैंने सूचना का अधिकार के तहत मांग लिया है। कुछ बहुमूल्य साक्ष्य तुम्हारे पास है। मैं जानता हूं कि तुम्हारा आशीर्वाद मेरे साथ है इसलिए मैं पहले मुकदमा जीत जाउंगा और तुम्हें न्याय मिलेगा।
कोर्ट की कार्यवाही आरंभ होते ही सबसे पहले वह अब्दुल मियां को कटघरे में बुलाने के लिए जज साहब से अनुरोध करता है। अब्दुल मियां कटघरे में जैसे ही आता है,को चेक दिखाते हुए अमूल्य ने पूछा आपने पीड़िता को दो लाख का चेक क्यों दिया था। अब्दुल ने बताया कि साम्प्रदायिक दंगे में इसके घर को आग के हवाले कर दिया था तथा उसके माता-पिता जल कर मर गए थे।
अगला प्रश्न पूछा कि वह पार्टी फंड से दिया या अपने खाते से।
अब्दुल मियां ने कहा मैं व्यक्तिगत रूप से उसकी सहायता के लिए दिया था।
अगला प्रश्न पूछता है कि साम्प्रदायिक दंगे में आपके मुहल्ले में कितने हिन्दू या मुसलमान दंगे के शिकार हुए थे और कितने को आपने चेक दिया था।
अब्दुल मियां ने कहा पीड़िता के अलावे और किसी के साथ कोई अप्रिय घटना नहीं घटी थी इसलिए और किसी को चेक दिया नहीं था।
अमूल्य जज साहब से अनुरोध करते हुए कहा कि अब सरकार के प्रतिनिधि को कटघरे में बुलाया जाए।प्रधान सचिव जो सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, कटघरे में खड़े होते हैं उनसे पूछा जाता है कि
१. सरकार ने दंगा क्यों हुआ इसके लिए जांच कमेटी बनाई थी ?और दंगा से प्रभावित कितने आश्रितों को सरकारी नौकरी दी
प्रधान सचिव ने उत्तर देते हुए कहा कि जांच कमिटी बनाई गई थी। सरकार ने किसी भी आश्रित को सरकारी नौकरी नहीं दी
२. जब सरकार ने जांच समिति बनाई थी तब सुलेखा मामले में एक अलग एस०आई०टी०गठन क्यों की गई।
प्रधान सचिव ने उत्तर देते हुए कहा कि विधानसभा में विपक्ष ने मांग किया था कि यह रेयर आफ द रेयरेस्ट का मामला है इसलिए एक अलग से एस०आई०टी ० गठित करते हुए पिडिता
को सरकारी नौकरी दी जाए। विपक्ष की मांग पर एक अलग एस०आई०टी० गठित की गई थी।
मुकदमें की सुनवाई पूरी नहीं होने के कारण न्यायालय ने अगले दिन की तिथि मुकर्रर करते हुए न्यायाधीश महोदय कुर्सी से उठ जाते हैं।
अगले दिन पुनः कार्यवाही आरंभ होती है। अमूल्य ने एस०आई०टी० के अध्यक्ष को कटघरे में बुलाने का अनुरोध करता है। एस०आई०टी०के अध्यक्ष से पूछा जाता है कि-
१.क्या आप जांच करने के लिए घटना स्थल पर गये और आपने क्या देखा
अध्यक्ष ने उत्तर देते हुए कहा कि जांच के लिए जांच दल घटना स्थल पर गया और पाया कि सुलेखा का आधा घर जल चुका था।
२. पुनः प्रश्न हुआ कि सुलेखा के अतिरिक्त और कितने घर क्षतिग्रस्त थे। कितने लोग हादसे के शिकार हुए थे।
अध्यक्ष ने उत्तर देते हुए कहा कि सुलेखा के अतिरिक्त और किसी का घर नहीं जला था ओर कोई भी हादसे का शिकार नहीं हुआ।
३.आपने अपने जांच प्रतिवेदन में उल्लेख किया है कि पच्चीस लोगों से पूछताछ किया क्या उन लोगों का कोई पहचान पत्र आपने सबूत के तौर पर रखा? क्या पीड़िता से भी पूछताछ किया था? एस०आई०टी०के अध्यक्ष ने कहा कि कोई पहचान पत्र नहीं लिया गया और नहीं पीड़िता से पूछताछ किया क्योंकि पीड़िता तो अपने पक्ष की ही बातें बताती।
अब अमूल्य ने सुलेखा को कटघरे में बुलाने के लिए अनुमति मांगता है सुलेखा डायरी लिए कटघरे में आती है।
सुलेखा से भी प्रश्नों का सिलसिला आरंभ होता है
. प्रश्न.१-आप डायरी लेकर कटघरे में क्यों आईं हैं?
उत्तर - मेरे साथ जो भी अत्याचार और व्याभिचार हुआ है इसमें लिखा हूं। इसे मैं जज साहब को पढ़ने के लिए देना चाहती हूं।
अमूल्य डायरी लेकर जज साहब को दे देता है।
प्रश्न.२-आपके कितने बच्चे हैं
उत्तर -१बेटा है
प्रश्न.३-आपके पति का क्या नाम है?
उत्तर -मैं बिनब्याही मां हूं
अमूल्य ने कहा मतलब समझा नहीं। आप विस्तार से बताएं
वह हामिद के करतुतों का विस्तार से वर्णन करते हुए बताती है मैं अपने माता-पिता को बचाने के लिए रसोई में रखे चाकू से हमला कर दिया था पर अफशोस मैं इस दरींदे के चंगुल से अपने माता-पिता को बचाने में असफल रही। ओर तब मेरे साथ व्यभिचार किया गया।
प्रश्न.४- क्या वह चाकू लेकर आईं हैं?
उत्तर- मैं वह चाकू भी लेकर आई हूं आप चाकू में लगे खून के दाग़ से इस दरींदे के खून से मिलान करवा ले।
प्रश्न .५- इससे यह तो साबित नहीं होता है कि हामिद ने आपके साथ बलात्कार किया है?
उत्तर - मेरा पुत्र और हामिद का डीएनए करवा लें
प्रश्न.६- आपके पुत्र का नाम क्या है?वह कहां है? क्या वे डीएनए की जांच के लिए यहां आ सकते हैं?
उत्तर - मेरा बेटे का नाम अमूल्य है और वह मेरे सामने ही वकील के रूप में खड़ा है।
यह सुनते ही जज महोदय सहित कक्ष में उपस्थित सभी लोग सन्न हो गये।
अमूल्य ने जज महोदय से कहा हां हुजूर मैं ही इस बदनसीब औरत का बेटा हूं। मेरे किसी भी प्रमाण पत्र में पिता का नाम अंकित नहीं है। मैं डीएनए की जांच के लिए तैयार हूं।
महोदय मेरा आपसे विनती है कि आप किसी भी लेबोरेट्री को कोर्ट में बुलाकर चाकू पर लगे खून के धब्बों का मिलान के साथ ही मेरा और आरोपी हामिद का डीएनए की जांच करा लें। जज ने शहर के सबसे प्रतिष्ठित जांचघर को अगले दिन बुलाने का आदेश करते हैं।कोर्ट का समय खत्म हो रहा था। जज महोदय ने पुनः अगले दिन का समय और तिथि मुकर्रर करते हुए कुर्सी से उठ जाते हैं। अगले दिन पुनः कार्यवाही आरंभ होती है। नोटिस प्राप्त होते ही अगले दिन लेबोरेट्री के डाक्टर प्रयोगशाला तकनीशियन के साथ आवश्यक उपकरण और जांच सम्बंधित सारे कैमिकल्स को लेकर कोर्ट रूम में जज महोदय के समक्ष पेश होते हैं। जज महोदय का आदेश प्राप्त होते ही जांच की प्रक्रिया आरम्भ होती है। सबसे पहले हामिद का ब्लड सैंपल लेकर चाकू पर लगे दाग से मिलान कराया जाता है। मिलान कराने पर पाया जाता है कि चाकू पर लगे खून के दाग़ और हामिद के खून के जो सैम्पल लिए गये थे, दोनों एक ही थे।
अब डी०एन०ए०के लिए हामिद और अमूल्य को विभिन्न तरीकों से परीक्षण किया जाता है। सभी परीक्षणों से यह स्पष्ट हो गया कि दोनों का डी०एन०ए०एक ही है।
डीएनए का रिपोर्ट आते ही केस की पैरवी करते हुए अमूल्य ने कहा हुजूर सुलेखा की डायरी के पन्ने और अब्दुल मियां का बयान दोनों एक हैं। एस आई टी ने अपने जांच प्रतिवेदन में लिखा है कि सुलेखा का घर आधा जला था। पर सुलेखा से किसी भी प्रकार का बयान नहीं लिया गया। और न जिनका बयान लिया गया ,उनका कोई पहचान पत्र नहीं लिया। लेते कैसे हुजूर सारे नाम फर्जी थे। यह जांच प्रतिवेदन हामिद के गुनाहों को छिपाने के लिए तैयार किया गया है।
सरकार के प्रतिनिधि ने भी बताया कि विधानसभा सभा में विपक्ष का कहना था कि यह मामला रेयर आफ द रेयरेस्ट का है। सरकार ने विपक्ष की मांग को मानते हुए ही एस आई टी का गठन किया था। कहने का अर्थ है कि सरकार ने भी स्वीकार किया है कि मामला रेयर आफ द रेयरेस्ट का है इसलिए अलग से एस आई टी का गठन किया।
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए अमूल्य ने कहा कि सरकार ने बताया है कि दंगा से प्रभावित किसी अन्य को सरकारी नौकरी नहीं दी गई। मतलब साफ है कि दंगे में किसी की भी जान नहीं गई।
अब्दुल मियां ने स्वयं स्वीकार किया है कि उनके इलाके में पीड़िता के अतिरिक्त किसी का भी मकान नहीं जला तथा पीड़िता के माता-पिता के अलावा कोई और दंगे का शिकार नहीं हुआ। मतलब साफ है कि पीड़िता के इलाके में दंगे का लेश मात्र भी असर नहीं था।
अब्दुल मियां ने अपने बेटे के करतूतों को छिपाने के लिए और लाचार पीड़िता के मुंह बंद रखने के लिए ही चेक दिया था ।
हुजूर आप की देख रेख में ही चाकू पर लगे खून के धब्बों से हामिद के खून के नमूनों से मिलान किया गया था । दोनों खून एक ही थे। मतलब सुलेखा ने अपनी मां और पिताजी को इस बहसी से बचाने के लिए ही चाकू से हमला किया था। आगे वह कहता है कि आपके सामने ही सुलेखा के बलात्कारी हामिद और सुलेखा के नाजायज संतान दोनों का डीएनए की जांच की गई और पाया गया कि सुलेखा के साथ आरोपी हामिद ने बलात्कार किया था।
अतः अनुरोध है कि हामिद के कुकृत्य को रेयर आफ द रेयरेस्ट मानते हुए सजाए मौत दी जाए।विधानसभा में सरकार द्वारा भी यह स्वीकारा गया है कि हामिद द्वारा किया गया घिनौना अपराध रेयर आफ द रेयरेस्ट है
यह भी अनुरोध है कि अब्दुल मियां अपने लाडले के कुकृत्य को छिपाने के लिए और पीड़िता का मुंह बंद रखने के लिए दो लाख का चेक दिया था।
अदालत ने अमूल्य के तर्क और सारे सबूत को देखते हुए हामिद को सजाए मौत और उसके पिता अब्दुल मियां को दस वर्षों का सश्रम कारावास का फैसला सुनाया।
अब्दुल मियां और हामिद निचले अदालत के फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में केस पर पुनर्विचार करने के लिए अपील किया। पर उच्चतम न्यायालय ने सजा को बरकरार रखा। आखिरकार राष्ट्रपति महोदय से सजा को माफ करने के लिए अपील किया।पर वहां से भी असफलता ही हाथ लगी। और इस तरह अमूल्य ने नाना -नानी और सुलेखा के अपराधी को उसके कुकृत्य का दंड दिलाकर बदला ले लिया।
लेखक जितेन्द्र नाथ मिश्र कदम कुआं, पटना के निवासी और साहित्यकार, कवि और समीक्षक है |
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