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सावन है मुस्कान धरा का

सावन है मुस्कान धरा का

सावन है मुस्कान धरा का ,
सावन है व्याख्यान धरा का ।
सावन धरा पल्लवित करता ,
यह सावन है प्राण धरा का ।।
सावन यह संदेश हरा का ,
फसलें पौधे वृक्ष हरा सा ।
वर्ष का सबसे सुहाना मौसम ,
पुण्यित पावन माह बड़ा सा ।।
सावन माह भोले को भाता ,
काॅंवरिया कंधे काॅंवर उठाता ।
गागर में वह सागर समाता ,
सप्रेम बाबा को जल चढ़ाता ।।
सावन खूब हरा भरा सुहाए ,
माॅं बहनें कजरी बहुत गाए ।
सावन मनभावन हुआ पावन ,
माॅं बहनें इसे चार चाॅंद लगाए ।।
सावन माह जन जन भाए ,
जन जन के उर ठंढक लाए ।
सावन माह बना मनभावन ,
नर हरि हर को भी मन भाए ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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