उज्जैन और काल भैरव: युगों के आरंभ से वर्तमान तक एक दिव्य यात्रा
✍️ लेखक: सत्येन्द्र कुमार पाठक
भारतवर्ष की दिव्यता और सांस्कृतिक संपन्नता का प्रमाण यदि किसी एक नगरी में समाहित हो, तो वह है – उज्जैन। यह नगरी सिर्फ एक शहर नहीं, अपितु सनातन संस्कृति की जीवित परंपरा, कालगणना का केंद्र, और भक्ति-तंत्र-ज्ञान के त्रिवेणी संगम का स्थल है। उज्जैन को युगों-युगों से अलग-अलग नामों से जाना गया – अवंतिकापुरी, उज्जयनी, शिवपुरी, विशाला, अमरावती, पद्मावती आदि – और हर युग में इसने नए आध्यात्मिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक आयाम प्राप्त किए।
इस आलेख में हम उज्जैन की गाथा को चार युगों – सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग और कलियुग – के आलोक में काल भैरव के साथ जोड़ते हुए समझने का प्रयास करेंगे।
सतयुग: धर्म और सत्य का युग
सतयुग को धर्म, सत्य और पवित्रता का प्रतीक माना गया है। इस युग में उज्जैन को अवंतिकापुरी के नाम से जाना जाता था और यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण आध्यात्मिक केंद्र था।
1. देवताओं का निवास
पौराणिक मान्यता के अनुसार, सतयुग में अवंतिकापुरी देवताओं का निवास स्थान थी। यहाँ धर्म का प्रभाव सर्वोच्च था और लोग सत्य एवं तप के पथ पर चलते थे।
2. सृष्टि का केंद्र
उज्जैन को पृथ्वी का नाभि या केंद्र बिंदु माना गया। यहीं से काल-गणना और ज्योतिष की धुरी घूमती थी। यहाँ की गणनाएं ब्रह्मांडीय संतुलन को बनाए रखने में सहायक थीं।
3. काल भैरव की उत्पत्ति
इस युग में ही काल भैरव की उत्पत्ति हुई थी। ब्रह्मा जी के अहंकार का संहार करने के लिए भगवान शिव ने अपने उग्र रूप काल भैरव को प्रकट किया। इसके बाद उन्हें अवंतिकापुरी का कोतवाल अर्थात् रक्षक नियुक्त किया गया। उनकी पूजा उस समय सात्विक और ध्यानप्रधान हुआ करती थी।
त्रेतायुग: मर्यादा और धर्म की पुनर्स्थापना
त्रेतायुग भगवान श्रीराम के अवतरण का युग था। इस युग में अवंतिकापुरी एक धार्मिक और राजनैतिक केंद्र के रूप में प्रतिष्ठित हुई।
1. राजधर्म और वेदों पर आधारित शासन
यहाँ के शासक वेदाधारित राजधर्म का पालन करते थे। समाज में मर्यादा, संयम और धार्मिक कर्तव्यों का विशेष पालन होता था।
2. काल भैरव की भूमिका
इस युग में भी काल भैरव अवंतिकापुरी के रक्षक थे। उनका पूजन यथावत चलता रहा, यद्यपि मदिरा अर्पण जैसी तांत्रिक विधियाँ अभी इस युग में मुख्यधारा में नहीं थीं।
द्वापर युग: ज्ञान, भक्ति और शक्ति का संगम
द्वापर युग भगवान श्रीकृष्ण के अवतार और महाभारत जैसे ऐतिहासिक घटनाक्रमों का युग था। उज्जैन को इस युग में "उज्जयनी" के नाम से व्यापक ख्याति प्राप्त हुई।
1. सांदीपनि आश्रम: ज्ञान की तपोभूमि
यहाँ स्थित सांदीपनि आश्रम वह स्थान है जहाँ भगवान श्रीकृष्ण, बलराम और सुदामा ने अपनी शिक्षा पूर्ण की थी। यह आश्रम प्राचीन भारत का एक प्रमुख शैक्षिक केंद्र था – एक प्रकार का विश्व का पहला विश्वविद्यालय।
2. राजा चंद्रसेन और महाकालेश्वर
शिव पुराण के अनुसार, उज्जयनी में राजा चंद्रसेन राज्य करते थे, जो भगवान शिव के परम भक्त थे। उन्हीं के समय महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की प्रकटता हुई। महाकाल का स्वरूप काल पर विजय का प्रतीक माना गया।
3. तंत्र परंपरा की शुरुआत
द्वापर युग के अंत में तंत्र विद्या का प्रचलन बढ़ा और काल भैरव तांत्रिकों के आराध्य देव बने। ऐसा माना जाता है कि मदिरा अर्पण की परंपरा का आरंभ इसी समय से हुआ होगा, यद्यपि यह स्पष्ट रूप से कलियुग में विकसित हुई।
4. ज्योतिष का केंद्र
उज्जैन को ज्योतिष और खगोल विज्ञान का केंद्र माना गया। यहाँ का वेधशाला पद्धति काल-गणना और पंचांग निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता था।
कलियुग: चमत्कारों और श्रद्धा का युग
वर्तमान युग – कलियुग – को अधर्म और क्लेश का युग कहा गया है, लेकिन उज्जैन आज भी अपनी आभा और अध्यात्म से आलोकित है।
1. महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
यहाँ स्थित महाकालेश्वर दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है, जो सम्पूर्ण भारतवर्ष में अत्यंत शक्तिशाली माना जाता है। यह मंदिर करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है।
2. काल भैरव और मदिरा चमत्कार
उज्जैन के काल भैरव मंदिर की विशेषता यह है कि यहाँ भैरव बाबा को मदिरा अर्पण की जाती है, जिसे प्रतिमा स्वयं "पीती" हुई प्रतीत होती है। यह चमत्कार आज भी विज्ञान के लिए रहस्य है और विश्वभर से श्रद्धालुओं व शोधकर्ताओं को आकर्षित करता है।
3. सिंहस्थ कुंभ मेला
प्रत्येक 12 वर्षों में उज्जैन में आयोजित होने वाला सिंहस्थ कुंभ मेला विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन माना जाता है। यह तीर्थ उज्जैन की धार्मिक और सामाजिक एकजुटता का प्रतीक है।
4. सम्राट विक्रमादित्य और विक्रम संवत
ईसा पूर्व 57 में सम्राट विक्रमादित्य ने उज्जैन से ही विक्रम संवत का आरंभ किया। उन्होंने इसे सांस्कृतिक, राजनैतिक और शैक्षणिक केंद्र के रूप में स्थापित किया।
5. आधुनिक उज्जैन
आज उज्जैन एक आधुनिक नगर है, लेकिन यहाँ की गलियों, घाटों, मंदिरों और संतों की उपस्थिति इसे प्राचीनता और आध्यात्मिकता से जोड़ती है। काल भैरव, महाकाल, सांदीपनि और विक्रमादित्य – ये सभी आज भी जनमानस की चेतना में जीवित हैं।
उपसंहार: उज्जैन – युगों की यात्रा का जीवंत साक्ष्य
उज्जैन एक ऐसी नगरी है जो सतयुग की अवंतिकापुरी, त्रेतायुग की धार्मिक राजधानी, द्वापर की विद्याभूमि और कलियुग की चमत्कारी शक्ति का संगम है। यहाँ हर पत्थर, हर मंदिर और हर परंपरा अपने भीतर संस्कृति, शक्ति, तंत्र और भक्ति को समेटे हुए है।
काल भैरव – जो केवल एक रक्षक देवता नहीं, बल्कि काल, धर्म, तंत्र और न्याय के प्रतीक हैं – उज्जैन के हृदय में विराजमान हैं। उनकी उपस्थिति उज्जैन को महज एक शहर नहीं, बल्कि एक जाग्रत आध्यात्मिक चेतना बनाती है।
यह आलेख न केवल उज्जैन के धार्मिक महत्व को प्रस्तुत करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कैसे एक नगर युगों की यात्रा करते हुए अपनी सांस्कृतिक अस्मिता को अक्षुण्ण बनाए रखता है।
🔱 हर हर महाकाल!
🔱 जय काल भैरव!!
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