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तर्ज : फूल तुम्हें भेजा है खत में....

तर्ज : फूल तुम्हें भेजा है खत में....

चंचलता त्याग दे मन की

मानव जीवन पाकर बंदे , क्यों इतराता फिरता है।
बार-बार समझाया तुझको राह क्यों टेढ़ी चलता है।।

धीर पुरुष पाते हैं मोक्ष को, ब्रह्म अनुभूति पाते हैं।
ब्रह्मज्ञानी बन भूमंडल पर ,सर्वत्र मान को पाते हैं।।
उपासनीय पारब्रह्म को क्यों बिसराकर चलता है.....
बार-बार समझाया तुझको राह क्यों टेढ़ी चलता है।।1।।

तप, दम,कर्म को जान ध्यान से ब्रह्मविद्या के द्वारा तू।
चंचलता त्याग दे मन की, प्रभु भक्ति के द्वारा तू।।
अंतःकरण की शुद्धि कर ले पाप डगर क्यों चलता है....
बार-बार समझाया तुझको राह क्यों टेढ़ी चलता है।।2।।

क्या कहते हैं यम नचिकेता, संवाद ध्यान में लाया कर।
अंतर्मन में यक्ष जो बैठा , अपना उसे बनाया कर।।
गीत प्यार के गाया कर तू , प्रेमी ही पार उतरता है ......
बार-बार समझाया तुझको राह क्यों टेढ़ी चलता है।।3।।

निराश नहीं कभी होना मन में आशा का संचार रहे।
ओज, तेज , यश और कीर्ति , पास तेरे भंडार रहे।।
"राकेश" पथिक है तू भी जग में, अहंकार क्यों करता है.....
बार-बार समझाया तुझको राह क्यों टेढ़ी चलता है।।4।।

( लेखक डॉ राकेश कुमार आर्य सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं। )
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