अधर्मं धर्ममिति या मन्यते तमसावृता।
डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•(पूर्व यू.प्रोफेसर)
"अधर्मं धर्ममिति या मन्यते तमसावृता।
सर्वार्थान्विपरीतांश्च बुद्धिः सा पार्थ तामसी। ।"
(हे अर्जुन!जो तमोगुण से ढँकी हुई बुद्धि अधर्म को धर्म और संपूर्ण अर्थों को विपरीत ही मानती है,वह बुद्धि तामसी है। )
इसी राक्षसोचित तामसी बुद्धि से अधुना समस्त राष्ट्रीय वातावरण समाच्छादित है।
शिष्ट भाषा का लोप हो गया है और तथाकथित समुदाय की जिह्वा जघन्य-बीभत्स शब्दों की जुगाली करने में तन्मय है।
फासीवादी ताकतों की गिरफ्त में पड़े हुए,नफ्रतपरस्त कट्टर-मतान्ध संगठन-विशेष की उफनाती जहरीली लहरों से व्पापित लोग अपना होशोहवास पूरी तरह खो चुके हैं। महात्मा (गाँधी)को 'चूतिया 'और गुंडागर्दों की दोजखी जुबान में क्या-क्या नहीं बोल रहे--उन महात्मा को,जिन्हें नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 'राष्ट्रपिता 'कहा था तथा जिनके होने की जरूरत हिंसा की लपटों में झुलसती दुनिया आज भी सख्ती से महसूस कर रही है। महात्मा बुद्ध के बाद सत्य और अहिंसा का कोई निष्प्रतियोगिक साधक इस धरती पर अवतीर्ण हुआ,तो उसका नाम था 'मोहनदास करमचंद गाँधी '।नाथूराम गोडसे -नामक हत्यारे के हाथों मारे जाने पर 20वीं शताब्दी के सबसे महान् वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टाइन का जो शोक -संविग्न उद्गार फूट पड़ा था,उसमें गाँधी-तत्त्व की महनीय पहचान बखूबी नमूदार है--
"Generations to come,it may be,will scarce believe that such a man as this ever in flesh and blood walked upon the earth. "
और,अंग्रेजी के महन् नाटककार Brnard Shaw ने कहा था--" It is dangerous to be good,"
इसी प्रसंग में परमहंस योगानंद ने 'The Autobiography Of A Yogi 'में लिखा है--"Non-violence has come among men and it will live. It is the harbinger of the peace of the world. " ऐतिहासिक समझ से निहायत नादार,फासीवादी ताकतों के हाथों में बिके हुए,राष्ट्रीय स्वतन्त्र्य-संग्राम के विरुद्ध बरतानवी सरकार के दलालों के वारिसों के जाली हिन्दुत्व के नशे में चूर लोगों का हुजूम महात्मा गाँधी,पं जवाहरलाल नेहरू,मोतीलाल नेहरू आदि पर कीचड़ उछालने में मशगूल है,अपने भीतर जहर का उबाल लिए हुए पैशाचिक गालियों की बौछार करने में दिन-रात तत्पर है,तो आश्चर्य ही क्या? ये लोग अपने मुँह में दरिद्रता किंवा मौत को बाँधे हुए घूम रहे हैं--"मुखे निबद्धां निर्ऋतिं वै वहन्तम् (महाभारत,उद्योगपर्व -26/8)।भला हो इनका!
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