रक्षाबंधन
भारतवर्ष एक धर्म प्रधान देश है। इस देश में जितने भी हिन्दू पर्व त्योहार मनाये जाते हैं उनके पीछे किसी न किसी पारिवारिक रिश्ते का, या फिर पूरे परिवार एवं भारतीय समाज का मंगल होना निहित अथवा निश्चित होना जाना जाता है। हमारे इन्हीं पर्व त्योहारों की श्रेणी में रक्षाबंधन का त्योहार भी आता है, जो हर साल श्रावण माह की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है।
मुख्यतः रक्षाबंधन का त्योहार भाई बहन के प्रेम, सुरक्षा और स्नेह का प्रतीक है। इस दिन बहन अपने भाई के मस्तक पर लाल टीका लगाकर उसके कलाई में कच्चे सूत से बना राखी अथवा रक्षा का बंधन बांधती है। रक्षा बांधकर बहनें अपने भाई की सुरक्षा और तरक्की के लिए भगवान से प्रार्थना करतीं हैं।
रक्षाबंधन के दिन सामान्यतः बहन ही भाई को राखी बांधती है। परंतु इसके अलावा इस दिन राखी ब्राह्मणों, गुरूओं और छोटी लड़कियों द्वारा भी श्रेष्ठ जनों तथा सम्मानित संबंधियों एवं व्यक्तियों को भी सार्वजनिक रूप से बांधा जाता है।
रक्षाबंधन के दिन राखी बंधवाने के बाद भाई अथवा सम्मानित व्यक्ति तथा संबंधी , बहन को तथा ब्राह्मण तथा गुरु को राखी के बदले कुछ उपहार देते हैं।
आज कल राखी का स्वरूप कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावा, रेशमी धागे तथा सोने चांदी जैसे मंहगी वस्तु तक का हो गया है। लेकिन रक्षाबंधन में कच्चे सूत की राखी का ही सबसे ज्यादा महत्व है।
यह त्योहार बहुत सी पौराणिक कथाओं और ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़ा हुआ है, जो इस पर्व को और भी महत्वपूर्ण बनाता है।
महाभारत काल में द्रौपदी ने भगवान कृष्ण की कलाई पर अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर बांधा था, जब भगवान कृष्ण की उंगली कट गई थी।
एक समय इंद्रदेव की पत्नी शचि ने अपने पति इन्द्र के कलाई पर असुरों और देवताओं के बीच युद्ध के समय राखी बांधा था, और इन्द्रदेव इस युद्ध में विजयी हुए थे। संयोगवश वह दिन भी श्रावण पूर्णिमा का ही दिन था। तब से हमारे देश में पत्नियां भी अपने पति के कलाई पर उनके विजय के लिए राखी बांधती हैं।
एक समय चितौड़ की रानी कर्णावती ने मुगल बादशाह हुमायूँ को राखी भेजकर चितौड़ की रक्षा की थी।
लेकिन अगर रक्षाबंधन के शुरूआत होने की बात कही जाय तो यह कथा हमें अपने धर्म ग्रन्थों स्कंद पुराण, पद्म पुराण और श्रीमद्भागवत पुराण में मिलती है। कथा के अनुसार असुरराज दानवीर राजा बली ने देवताओं से युद्ध करके स्वर्ग पर अपना अधिकार कर लिया था। इस जीत के कारण उनका अहंकार चरम पर था। राजा बली के इसी अहंकार को चूर चूर करने के लिए भगवान विष्णु ने अदिति के गर्भ से वामन अवतार लिया और ब्राह्मण के वेश में राजा बली के द्वार भिक्षा मांगने पहुँच गये। चूंकि राजा बली महान दानवीर थे, उसी अनुसार उन्होंने वामन ब्राह्मण को वो जो भी मांगेंगे सो देने का वचन दे दिया। वामन भगवान ने राजा बली से तीन पग भूमि की याचना की। बली ने तत्काल हामी भर दी, क्योंकि वामन ब्राह्मण को उनके तीन पग भूमि ही तो देनी थी। राजा बली द्वारा दान देना स्वीकार करने के बाद वामन भगवान ने अपना विशाल रूप प्रगट किया और दो पग में ही सारा आकाश, पाताल और धरती माप लिया। फिर राजा बली से तीसरा पग कहाँ रखेंगे की याचना की। तब विष्णु भक्त राजा बली ने वामन भगवान से कहा कि आप अपना तीसरा पग मेरे सिर पर रख लीजिए। इस पर भगवान ने राजा बली को रसातल का राजा बनाकर अजर अमर होने का वरदान दे दिया। लेकिन राजा बली ने इस वरदान के साथ ही अपनी भक्ति के बल पर भगवान से रात दिन अपने सामने ही रहने का वरदान भी ले लिया। भगवान को वामन अवतार का मकसद पूरा होने के बाद पुनः लक्ष्मी जी के पास बैकुंठ में जाना था। लेकिन भगवान राजा बली को उनके सामने हमेशा रहने का ऐसा वरदान देकर स्वयं फंस गए थे और वो वहीं रसातल में रहकर राजा बली की सेवा में उनके सामने लगे रहे। इस प्रकार भगवान के न लौटने से लक्ष्मी जी चिंतित हो गयीं। ऐसे घड़ी में नारद जी ने लक्ष्मी जी को एक उपाय बताया। उसके अनुसार लक्ष्मी जी ने रसातल जाकर राजा बली को उनके कलाई में राखी बांध कर अपना भाई बनाया और उनसे उपहार में अपने पति विष्णु जी को अपने साथ बैकुंठ वापस ले आयीं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी। तभी से यह रक्षाबंधन का त्योहार प्रचलन में है।
रक्षाबंधन के पर्व के अलावा भी हिन्दू धर्म के सभी धार्मिक अनुष्ठानों में रक्षा सूत्र कलाई पर बांधा जाता है। इस रक्षा सूत्र को बांधते समय पंडित अथवा आचार्य इस श्लोक का उच्चारण करते हैं:-
येन बद्धो बली राजा , दानवेन्द्रो महाबल: ।
तेन त्वामपि बद्धनामि, रक्षे मा चल मा चल।।
इस श्लोक का भावार्थ यह होता है कि जिस रक्षा सूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बली को बांधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बांधता हूँ। हे राखी तुम अडिग रहना अथवा तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न होना।
इस प्रकार माता लक्ष्मी जी द्वारा राजा बली को राखी बांधकर अपना भाई बनाने के समय से रक्षाबंधन का पर्व भाई बहन के प्रेम, सुरक्षा और स्नेह का प्रतीक माना जाता है।
जय प्रकाश कुवंर
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