क्या अब किसान भी अपराधी हैं? – एक चिंताजनक बयान पर गहन विचार
डॉ राकेश दत्त मिश्रबिहार में एक बयान से उठे गंभीर सवाल
बिहार की राजनीति में नेताओं के असंयमित और विवादित बयानों की चर्चा अक्सर होती रही है, लेकिन अब लगता है कि यह प्रवृत्ति केवल राजनीतिक गलियारों तक सीमित नहीं रह गई है। हाल ही में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी (एडीजी रैंक) द्वारा दिया गया बयान—जिसमें उन्होंने किसानों को अपराधी की श्रेणी में रखा—ने न केवल चौंकाया है, बल्कि इस बयान ने करोड़ों किसानों के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाई है।
किसानों को अपराधी कहना – एक गंभीर मानसिकता का प्रतीक
भारत जैसे कृषि प्रधान देश में किसान को ‘अन्नदाता’ कहा जाता है। वही किसान जो खेतों में पसीना बहाकर देश की 140 करोड़ की आबादी के लिए अन्न उपजाता है। ऐसे में किसी प्रशासनिक अधिकारी का यह कहना कि किसान अपराधी हैं, बेहद दुर्भाग्यपूर्ण और चिंताजनक है। यह बयान इस बात का प्रतीक है कि प्रशासन के कुछ हिस्सों में किसानों को लेकर अब भी नकारात्मक सोच और पूर्वाग्रह मौजूद है।
क्या खेती करना अपराध है?
सोचिए, जो व्यक्ति दिन-रात मेहनत करके खाद्यान्न उत्पादन करता है, जो प्राकृतिक आपदाओं, बाजार की अस्थिरता और महंगाई के बीच भी अपना जीवन दांव पर लगाकर समाज की भूख मिटाता है, उसे अगर अपराधी कहा जाए, तो यह केवल किसानों का अपमान नहीं, बल्कि कृषि व्यवस्था पर भी प्रहार है। क्या खेती करना अब अपराध माना जाएगा? क्या किसान अब कानून-व्यवस्था के लिए खतरा हैं? ऐसे बयान अनजाने में नहीं, बल्कि गहरी असंवेदनशीलता का परिणाम लगते हैं।
किसानों की समस्याएं और हकीकत
यह बयान ऐसे समय में आया है जब किसान पहले से ही कर्ज, लागत मूल्य, न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी, सिंचाई और बिजली जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं। महंगाई और मौसम की मार ने उनकी स्थिति और भी खराब कर दी है। ऐसे में यदि सरकार और प्रशासन से मदद की उम्मीद रखने वाला किसान अपमानित हो, तो यह उसकी तकलीफों को और बढ़ा देता है।
अधिकारियों की जिम्मेदारी – शब्दों में संयम और संवेदनशीलता जरूरी
वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने आचरण और शब्दों से सकारात्मक संदेश दें। उनकी हर बात समाज पर असर डालती है। इसलिए, ऐसे पदों पर बैठे लोगों को अपने वक्तव्यों में न केवल संयम रखना चाहिए, बल्कि संवेदनशीलता भी दिखानी चाहिए। किसानों को अपराधी बताने की बजाय उनकी समस्याओं का समाधान करना ही सही दृष्टिकोण है।
समाज और सरकार की भूमिका
आज जरूरत है कि सरकार और प्रशासन मिलकर किसानों की भलाई के लिए ठोस कदम उठाएं। MSP की गारंटी, फसल बीमा, सिंचाई के साधन, कृषि ऋण में राहत और बाजार में पारदर्शिता जैसी पहलें ही किसानों की स्थिति सुधार सकती हैं। समाज को भी यह समझना होगा कि किसान केवल खाद्यान्न उत्पादक नहीं, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं।
मानसिकता बदलनी होगी
यह बयान केवल एक विवादित टिप्पणी नहीं, बल्कि यह दिखाता है कि आज भी किसानों को लेकर किस तरह की मानसिकता कायम है। यह सोच बदलनी होगी। किसानों को सम्मान देना और उनकी बात सुनना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है। उन्हें अपराधी बताने की बजाय ‘राष्ट्रनिर्माता’ के रूप में देखा जाना चाहिए।
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