अमृतस्य पुत्राः वयम्
आत्मा की दिव्यता की ओर एक आह्वान
हम मानव मात्र देहधारी प्राणी नहीं, बल्कि सनातन धर्म की दृष्टि में “अमृतस्य पुत्राः वयम्” — अमृत तत्व के पुत्र हैं। हमारे भीतर एक ऐसा दिव्य अंश विद्यमान है, जो नाशवान नहीं, बल्कि अपराजेय, अनन्त और चिरस्थायी है। यह आत्मा, जो ब्रह्म का अंश है, हमारे अस्तित्व की वास्तविक पहचान है। परंतु दुखद सत्य यह है कि हम उस दिव्यता को भूल चुके हैं।
आज का मनुष्य बाह्य भोगों और इन्द्रिय-सुखों में ऐसा उलझ गया है कि आत्मा की पुकार उसके लिए एक मूक स्वर बनकर रह गई है। मन और इन्द्रियाँ उसे भ्रम के जाल में फँसाए रखती हैं, जहाँ सत्य से अधिक माया की छाया गहराती है। लेकिन क्या मनुष्य जीवन का उद्देश्य केवल भौतिक सुख-सुविधाएँ अर्जित करना है? नहीं। इसका परम उद्देश्य है — अपने भीतर छिपे “सत्यं ज्ञानं अनन्तं ब्रह्म” के अनुभव तक पहुँचना।
इस आध्यात्मिक यात्रा में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका होती है गुरु और शास्त्र की। गुरु वह दीप है जो अज्ञान के अंधकार को चीरकर मार्ग दिखाता है, और शास्त्र वे मानचित्र हैं जो आत्मा की खोज में पग-पग पर हमें दिशा प्रदान करते हैं। जब हम संशय और भ्रम से घिरे होते हैं, तब यही गुरु-शास्त्र हमारे भीतर के आलोक को जगाते हैं।
आइए, हम अपने भीतर की दिव्यता को पहचानें, और इस दुर्लभ मानव जीवन को आत्मसाक्षात्कार की ओर ले जाएँ। क्योंकि हम केवल शरीर नहीं, आत्मा हैं — “अमृतस्य पुत्राः”।
. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार)
पंकज शर्मा
(कमल सनातनी)
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