बंधनों से मुक्ति ही शिवत्व है
"जो बंधन में हैं, वो जीव हैं। जो बंधन मुक्त है, वो शिव है।" — यह वाक्य जीवन और आत्मबोध की गहराइयों को छूने वाला विचार है। 'जीव' वह है जो संसार के आकर्षण, इच्छाओं, और मोह-माया में बंधा हुआ है। वह अपनी पहचान को शरीर, रिश्तों, और भौतिक सुखों में सीमित मानता है। परिणामस्वरूप वह दुःख, भय और अपेक्षाओं की श्रृंखला में जकड़ा रहता है।वहीं 'शिव' उस चेतना का प्रतीक हैं जो हर बंधन से परे है। शिवत्व का अर्थ है – पूर्ण स्वतंत्रता, आत्मज्ञान और शांति। जब मनुष्य अपनी सीमाओं को पहचानता है, इच्छाओं को नियंत्रित करता है और अपने भीतर की दिव्यता को जाग्रत करता है, तब वह जीव से शिव की ओर बढ़ता है।
यह विचार हमें प्रेरित करता है कि हम अपने भीतर झाँकें, आत्ममंथन करें, और उन बंधनों को पहचानें जो हमें हमारी पूर्णता से रोकते हैं। ध्यान, संयम, सेवा और सत्य की राह पर चलकर हम भी उस बंधनमुक्त स्थिति को प्राप्त कर सकते हैं – जहाँ केवल शांति, करुणा और आनंद है। यही है शिवत्व की सच्ची प्राप्ति।
. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
"कमल की कलम से" (शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
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