हाथों में छाले है
हाथों में छाले है फिर भी सपनों को पाले हैं।दिन भर करते दौड़ धूप पाने को निवाले हैं।
मजदूरी करके खाते हैं स्वाभिमान से जीते हैं।
कड़वे मीठे घूंट जीवन में हंस हंसकर पीते हैं।
खून पसीना बहा बहाकर रोजी रोटी कमाते हैं।
परिवार पालन पोषण परदेश भी हम जाते हैं।
चढ़ जाते ऊंची मिनारें महल अटारी करने को।
आंधी तूफान से टकराते जेबें खाली भरने को।
महंगाई ने कमर तोड़ दी आटा दाल भूल गए।
बच्चे कैसे पढ़ने जाए हम मजबूरी में झूल गए।
नीले अंबर तले बिछोना रात रात भर जगते हैं।
मेहनती पसीना देख सुख के दिन भी भगते हैं।
शिल्प कला हुनर के दम जग में नाम कमाते हैं।
ठेकेदारों के चंगुल में हम अक्सर पीसे जाते हैं।
सड़क पूल भवनों की शोभा नींव के है पत्थर।
मजदूर है इस दुनिया में हालत हमारी बदतर।
रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थान
रचना स्वरचित व मौलिक है
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