प्रेम, प्रकृति और लोक-मंगल के कवि हैं दिनेश्वर लाल दिव्यांशु

- साहित्य सम्मेलन में काव्य-संग्रह 'तुम पर ला रखूँ वसंत' का हुआ लोकार्पण, आयोजित हुआ कवि-सम्मेलन
पटना, ६ मई। वर्तमान पीढ़ी के वरिष्ठ कवि श्री दिनेश्वर लाल दिव्यांशु, छंद के प्रति आग्रह रखने वाले हिन्दी के उन कवियों में हैं, जो यह मानते हैं कि कविता को जीवित रखने के लिए उसमें ग्येयता आवश्यक है। गद्य की तरह सीधे-सीधे पढ़ दी जाने वाली तुक-छंद-लय-रहित पंक्तियाँ सुनने में कवित्तपूर्ण और कर्णप्रिय होकर भी स्मरणीय नहीं रह पातीं। ऐसी रचनाएँ पढ़ने और सुनने भर तक तो आनन्द देती हैं, पर हृदय में कहीं स्थान नहीं बना पाती हैं। दिव्यांशु जी प्रेम, प्रकृति और लोक-मंगल के कवि है। ये वसंत की प्रतीक्षा नहीं करते, वसंत को आहूत करते हैं।
यह बातें बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, मंगलवार को आयोजित, वरिष्ठ कवि दिनेश्वर लाल दिव्यांशु के काव्य-संग्रह 'तुम पर ला रखूँ वसंत' के लोकार्पण-समारोह और कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि श्री दिव्यांशु की यह काव्य-कृति उनके मनोगत भावों की छांदस अभिव्यक्ति है। कवि ने 'दोहा-छंद' में पर्याप्त निपुणता प्राप्त कर ली है। कवि की भाषा साहित्यिक तो है ही, सरल भी है। यह पुस्तक उस पुरानी मान्यता को भी खंडित करती है कि आधुनिक हिन्दी में, जिसे आरंभ में 'खड़ी-बोली' की संज्ञा भी दी गयी थी, दोहा-छंद लिखना कठिन है। दिव्यांशु के अनेक दोहे, न केवल इस छंद की शास्त्रीयता पर खरे उतरते हैं, अपितु उसके माधुर्य की भी रक्षा करते हैं।
समारोह के मुख्य अतिथि तथा राज्य उपभोक्ता संरक्षण आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति संजय कुमार ने कहा कि साहित्य सम्मेलन प्रबुद्ध समाज से निरन्तर ही प्रतिभाशाली कवियों और साहित्यकारों से परिचित कराता रहा है। सम्मेलन के माध्यम से हमें अनेक साहित्यकारों को जानने और उन्हें पढ़ने का अवसर मिला है। लोकार्पित पुस्तक के कवि की काव्य-प्रतिभा समाज को लाभान्वित करेगी।
आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के साहित्यमंत्री भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि दिव्यांशु जी का काव्य-फलक विस्तृत है और वे अनेक विषयों को अपनी काव्य-रचनाओं में समाहित करते हैं।सम्मेलन के वरीय उपाध्यक्ष जियालाल आर्य, डा शंकर प्रसाद, डा मधु वर्मा, डा रत्नेश्वर सिंह, बच्चा ठाकुर, मंजु लाल, अनामिका और विभा रानी श्रीवास्तव आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए और कवि को अपनी शुभकामनाएँ दीं।
इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र ने वाणी-वंदना से किया। गीतिधारा के वरिष्ठ कवि आचार्य विजय गुंजन, डा पुष्पा जमुआर, डा प्रतिभा रानी, शमा कौसर शमा, पं गणेश झा, मीरा श्रीवास्तव, डा शालिनी पाण्डेय, सदानन्द प्रसाद, डा रमाकान्त पाण्डेय, डा विद्या चौधरी, निवेदिता झा, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, डा आर प्रवेश, नीता सहाय, राज प्रिया रानी, लता प्रासर, सुनीता रंजन, पंकज प्रियम आदि कवियों और कवयित्रियों ने अपनी रचनाओं का सुमधुर पाठ कर, काव्य-संध्या को स्मरणीय बना दिया। मंच का संचालन ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।
सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार बाँके बिहारी साव, प्रो सुशील कुमार झा, प्रवीर कुमार पंकज, इंदु भूषण सहाय, डा वीणा कुमारी, प्रमोद आर्य, श्यामानंद चौधरी, सत्येंद्र कुमार दास, वीरेंद्र कुमार, प्रभात रंजन दास, अंशुमाला, प्रगति आनन्द, विनय कुमार दास, अनंता आनन्द, सौम्यांशु, श्रेयांशु, राजन दिव्यांशु, मधु दिव्या आदि प्रबुद्ध श्रोता उपस्थित थे।
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