प्रणय पथ मंदिर सा पावन
कुमार महेन्द्रएक सुंदर सा अहसास,
हर पल कारक उजास ।
सब अच्छा लगने लगता,
दूर हो या फिर पास।
अंतर्मन अनूप श्रृंगार कर,
दिव्यता करता बिछावन ।
प्रणय पथ मंदिर सा पावन ।।
मोहक सोहक सौम्य छवि,
अंतस बिंदु नित्य वसित ।
निशि दिन अष्ट प्रहर,
मधुर स्मृतियां भव्य रचित ।
हाव भाव उत्संग तरंग,
प्रीत निर्झर सम सावन ।
प्रणय पथ मंदिर सा पावन ।।
संवाद मिलन अभिलाषा,
हरदम छाई रहती ।
सृष्टि दृष्टि आंतरिक पटल,
प्रियल परछाई रहती ।
सरस जीवन राग रंग ढंग,
अपनत्व अनुपमा भावन।
प्रणय पथ मंदिर सा पावन ।।
प्रेम पथिक आह्लाद अनुभूति,
सर्वदा अद्भुत अनुपम विशेष ।
विचरण आनंद महासागर,
कष्ट नगण्य सुख अधिशेष ।
भाव भंगिमा मस्त मलंग,
हृदय प्रिय मिलन दीप जलावन ।
प्रणय पथ मंदिर सा पावन ।।
कुमार महेंद्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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