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सम्मानपूर्ण जिंदगी का द्योतक है वीर सावरकर

सम्मानपूर्ण जिंदगी का द्योतक है वीर सावरकर

संध्या त्रिपाठी
वीर सावरकर के भारतीय इतिहास के ऐसे व्यक्तित्व हैं, जिनका एक भी दृष्टिकोण नहीं देखा जा सकता। वे क्रांति, विचार और समाज सुधार के त्रिवेणी संगम थे। उनकी रचना, त्याग और तपस्या आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं। भारत की महानता के लिए उनका योगदान सदैव स्मरणीय रहेगा।
वीर विनायक दामोदर सावरकर का जीवन संघर्ष, प्रेरणा और राष्ट्रीय दृष्टिकोण से भरा हुआ था। उनका भारतीय जीवन स्वतंत्रता संग्राम और हिंदुत्व के विचारों का प्रतीक बना। उनका "हिंदुत्व" शब्द और अलगाववादी भारतीय राष्ट्रवाद की एक धार्मिक दिशा का निर्देश है, जो धार्मिक रसायन तक सीमित नहीं था, बल्कि एक सांस्कृतिक और सामाजिक आंदोलन भी था।
सावरकर का संघर्ष:
सावरकर का जीवन भारतीय समाज के लिए एक अनमोल खलीया बन गया। उनका संघर्ष केवल ब्रिटिश शासन के खिलाफ नहीं था, बल्कि वह भारतीय समाज के संस्थापकों में कुरीतियों, जातिवाद और भ्रष्टाचार के खिलाफ भी था। उनके क्रांतिकारी विघटन और 'अभिनव भारत' संगठन ने भारतीय युवाओं को स्वाधीनता की लहर में जोड़ा। सावरकर का मानना ​​था कि स्वतंत्रता केवल विदेशी आक्रमण से मुक्ति नहीं है, बल्कि अपनी संस्कृति, धर्म और आस्था पर भी आक्रमण है।
यूक्रेनी का दर्शन:
सावरकर का हिंदुत्व केवल एक धर्म नहीं था, बल्कि एक जीवन दृष्टि थी, जिसमें भारत के सभी हिंदुओं, किसी भी जाति, संप्रदाय या भाषा से जुड़े लोगों को एकजुट किया गया था। उनका मानना ​​था कि भारत केवल एक भौगोलिक भूमि नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक राष्ट्र है। हिंदुत्व के अनुसार उनकी भारतीयता की मूल पहचान थी, और इस पहचान को बचाना और हासिल करना ही उनका उद्देश्य था।
उन्होंने हिंदू समाज को आत्मनिर्भर बनाया और विदेशियों से मुक्ति के लिए एकजुट किया। वे भारतीय संस्कृति और सभ्यता को प्राचीन गौरव से जोड़ते थे और मानते थे कि हमें अपने पूर्वजों से जुड़कर ही पश्चिमी साम्राज्यवाद से लड़ने में सफलता मिलती है।
सेल अनूठे जेल में अत्याधिक समय:
1910 में सावरकर को गिरफ़्तार कर बेच दिया गया, अंडमान जेल भेज दिया गया। वहाँ उन्हें कठोर यातनाएँ दी गईं, लेकिन उनका साहस और संघर्ष की भावना कभी भी कमज़ोर नहीं पड़ी। उन्होंने अपनी पुस्तक द फर्स्ट वॉर ऑफ इंडियन इंडिपेंडेंस लिखी, जिसमें 1857 के कॉम्बैट को भारतीय स्वतंत्रता के पहले युद्ध के रूप में प्रस्तुत किया गया है। उनका यह योगदान भारतीय राष्ट्रीयता के विचार को साझा करने वाला था।
राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण:
सावरकर ने न केवल स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया, बल्कि सामाजिक सुधारों की दिशा में भी महत्वपूर्ण कार्य किये। उन्होंने अस्पृश्यता, बाल विवाह और महिलाओं के अधिकार पर भी विचार किया। उनका विचार था कि भारतीय समाज को फिर से जागृति और जुड़ाव की आवश्यकता है, ताकि यह पश्चिमी प्रभाव से मुक्त हो सके।
वीर सावरकर का जीवन संघर्ष, विचार और दृष्टिकोण का मिश्रण था। उनका "हिंदुत्व" और स्वतंत्रता संग्राम केवल एक राजनीतिक अलगाव नहीं था, बल्कि एक सांस्कृतिक पुनर्निर्माण की प्रक्रिया थी। उनका योगदान केवल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्षेत्र में नहीं था, बल्कि भारतीय समाज के सुधार में भी निराशाजनक था। वीर सावरकर की यह "हिंदुत्व की कथा" आज भी हमें अपने राष्ट्र के प्रति सम्मान, एकता और संस्कृति की रक्षा के लिए प्रेरित करती है।
क्षेत्रीय मीडिया प्रभारी महिला मोर्चा ( भाजपा )गोरखपुर , उत्तरप्रदेश ।
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