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पत्रकारिता के जनक और ज्ञान के वाहक है देवर्षि नारद

पत्रकारिता के जनक और ज्ञान के वाहक है देवर्षि नारद

सत्येन्द्र कुमार पाठक
सनातन धर्म की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत में अनेक ऐसे दिव्य व्यक्तित्वों का उल्लेख मिलता है, जिन्होंने अपने ज्ञान, भक्ति और कार्यों से युगों-युगों तक मानव जाति का मार्गदर्शन किया है। इनमें से एक प्रमुख नाम देवर्षि नारद का है। पुराणों, स्मृतियों और संहिताओं में नारद मुनि का व्यापक वर्णन मिलता है, जो उन्हें एक बहुआयामी व्यक्तित्व के रूप में स्थापित करता है। वे न केवल देवताओं और मनुष्यों के बीच संवाद स्थापित करने वाले देवदूत हैं, बल्कि एक यात्रा करने वाले संगीतकार, कहानीकार और ज्ञान के भंडार भी हैं। देवर्षि नारद सृष्टिकर्ता ब्रह्मा के मानस पुत्र हैं। वैष्णव परंपरा में उनका एक विशिष्ट स्थान है, जहाँ उन्हें भगवान विष्णु के पृथ्वी पर अवतार के समय बुरी शक्तियों का मुकाबला करने और महत्वपूर्ण घटनाओं के साक्षी बनने में उनकी सहायता करने के लिए ऋषिराज के रूप में सम्मानित किया जाता है। महाभारत और रामायण जैसे महान ग्रंथों में भी नारद की महत्वपूर्ण भूमिका का उल्लेख मिलता है।
देवर्षि नारद का निवास ब्रह्मलोक और वैकुंठ माना जाता है। उनकी पहचान उनके विशिष्ट प्रतीकों - वीणा और करताल - से है। उनकी वीणा को "महाती" कहा जाता है, जिसे वे प्राचीन संगीत वाद्ययंत्रों के गुरु के रूप में भजन, प्रार्थना और मंत्रों के गायन में उपयोग करते हैं। उनके भाई-बहन के रूप में हिमवत और जामवान का उल्लेख मिलता है।
नारद न केवल सूचनाओं के वाहक हैं, बल्कि ज्ञान और धर्म के भी प्रतीक हैं। नारद पुराण और नारदस्मृति जैसे ग्रंथ उनके ज्ञान और धार्मिक सिद्धांतों का प्रमाण हैं। नारदस्मृति को तो "न्यायिक पाठ सर्वोत्कृष्ट" धर्मशास्त्र पाठ माना जाता है। भागवत पुराण में उनके आध्यात्मिक ज्ञान की विस्तृत कहानी वर्णित है, जिसमें बताया गया है कि कैसे अपने पिछले जन्म के कर्मों के कारण उन्हें देवताओं के बजाय पृथ्वी पर जन्म लेना पड़ा और कैसे उन्होंने संत पुजारियों की सेवा और भगवान विष्णु के प्रसाद से आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया। उन्हें पृथ्वी पर पहले ब्रह्मांडीय दूत के रूप में भी माना जाता है। सनातन धर्म के साथ-साथ बौद्ध और जैन धर्म में भी नारद का उल्लेख मिलता है। बौद्ध धर्म की जातक कथाओं में उन्हें सारिपुत्त के पहले जन्म के रूप में दर्शाया गया है, जबकि मध्ययुगीन बौद्ध विद्वानों और जैन धर्म में भी उनकी उपस्थिति उल्लेखनीय है। जैन ब्रह्मांड विज्ञान में प्रत्येक चक्र में कुल नौ नारदों का उल्लेख है। शिव पुराण में नारद से जुड़ी एक रोचक कथा मिलती है, जिसमें इंद्र उनकी तपस्या से चिंतित होकर कामदेव को उनकी तपस्या भंग करने के लिए भेजते हैं। हालाँकि, शिव की कृपा से नारद अविचल रहते हैं। एक अन्य कथा में, विष्णु नारद के अभिमान को तोड़ने के लिए अपनी माया का विस्तार करते हैं, जिससे नारद एक बंदर के चेहरे वाले व्यक्ति के रूप में एक राजकुमारी के स्वयंवर में पहुँचते हैं। इस घटना से क्रोधित होकर वे विष्णु को श्राप भी देते हैं। देवी भागवत पुराण में नारद द्वारा विष्णु से माया की प्रकृति के बारे में पूछने और विष्णु द्वारा उन्हें एक झील में स्नान कराकर स्त्री रूप में परिवर्तित करने की कथा भी उल्लेखनीय है, जो उन्हें माया की जटिलता को समझने में मदद करता है।
भारत में कर्नाटक के चिगाटेरी और गोरखपुर के गीता वाटिका में देवर्षि नारद मुनि के मंदिर स्थित हैं, जो उनकी महत्ता और लोकप्रियता को दर्शाते हैं। यह भी माना जाता है कि नारद ने हरिदास (विष्णु के सेवक) के रूप में पुरंदर दास के रूप में पुनर्जन्म लिया था, जिन्होंने अपनी रचनाओं में भगवान विष्णु के प्रति अपनी अटूट भक्ति व्यक्त की।
देवर्षि नारद भारतीय संस्कृति में एक अद्वितीय स्थान रखते हैं। वे न केवल देवताओं और मनुष्यों के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी हैं, बल्कि ज्ञान, संगीत और भक्ति के भी प्रतीक हैं। उनकी कथाएँ हमें धर्म, कर्म, माया और ईश्वर के प्रति अटूट श्रद्धा का महत्व सिखाती हैं और युगों-युगों तक हमारा मार्गदर्शन करती रहेंगी।
सनातन धर्म के विशाल और बहुआयामी परिदृश्य में, देवर्षि नारद एक अद्वितीय और सर्वव्यापी व्यक्तित्व के रूप में प्रतिष्ठित हैं। वे मात्र एक पौराणिक चरित्र नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, दर्शन और कला में गहराई से समाहित एक जीवंत उपस्थिति हैं। पुराणों, स्मृतियों, संहिताओं और लोक कथाओं में उनकी व्यापक उपस्थिति उन्हें देवताओं और मनुष्यों के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी, एक त्रिकालदर्शी ऋषि, एक दिव्य दूत, पत्रकारिता के जनक और संगीतज्ञ, कहानीकार और ज्ञान तथा भक्ति के एक अटूट सेतु के रूप में स्थापित करती है। देवर्षि नारद की उत्पत्ति को लेकर विभिन्न ग्रंथों में अलग-अलग उल्लेख मिलते हैं, लेकिन सर्वाधिक मान्यता उन्हें ब्रह्मा के मानस पुत्र के रूप में प्राप्त है। इसका अर्थ है कि उनका जन्म भौतिक प्रक्रिया से न होकर ब्रह्मा के संकल्प मात्र से हुआ था। उनका स्वरूप एक ऐसे ऋषि का है जो सदैव गतिशील रहते हैं, हाथों में वीणा (महाती) और करताल धारण किए ब्रह्मांड के सभी लोकों में विचरण करते हैं। उनकी वाणी में सत्य, ज्ञान और भक्ति का प्रवाह होता है, और उनका उद्देश्य सदैव धर्म की स्थापना और प्राणियों का कल्याण होता है। दिव्य दूत और संवादक: नारद देवताओं, मनुष्यों और अन्य लोकों के निवासियों के बीच सूचनाओं का आदान-प्रदान करने वाले प्रमुख दूत हैं। वे देवताओं के संदेश मनुष्यों तक और मनुष्यों की प्रार्थनाएँ देवताओं तक पहुँचाते हैं। उनकी त्वरित गति और सर्वत्र पहुँच उन्हें ब्रह्मांडीय संचार का एक अनिवार्य माध्यम बनाती है। ज्ञान और बुद्धि के स्रोत: नारद ज्ञान के अथाह सागर हैं। वे विभिन्न शास्त्रों, दर्शनों और आध्यात्मिक सिद्धांतों के ज्ञाता हैं। वे जिज्ञासुओं को ज्ञान प्रदान करते हैं, भटके हुए लोगों को मार्ग दिखाते हैं और जटिल समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करते हैं। उनकी वाणी में निहित ज्ञान की गहराई और स्पष्टता उन्हें एक अद्वितीय गुरु का स्थान प्रदान करती है।
भक्ति और प्रेम के प्रचारक: नारद भगवान विष्णु के अनन्य भक्त हैं और वैष्णव परंपरा में उनका महत्वपूर्ण स्थान है। वे भक्ति और प्रेम के मार्ग को प्रशस्त करते हैं और लोगों को भगवान के प्रति समर्पित होने के लिए प्रेरित करते हैं। उनके द्वारा गाए गए भजन और कीर्तन भक्ति रस से परिपूर्ण होते हैं और श्रोताओं के हृदय में ईश्वर के प्रति प्रेम का संचार करते हैं।
संगीतज्ञ और कला के संरक्षक: नारद एक उत्कृष्ट संगीतज्ञ हैं और उनकी वीणा "महाती" दिव्य ध्वनियों का स्रोत मानी जाती है। वे संगीत को आध्यात्मिक उन्नति का एक महत्वपूर्ण माध्यम मानते हैं और इसके माध्यम से ब्रह्मांडीय लय और सद्भाव को व्यक्त करते हैं। वे कला और संस्कृति के भी संरक्षक हैं और विभिन्न कला रूपों को प्रोत्साहित करते हैं।
कथाकार और इतिहास के साक्षी: नारद ब्रह्मांड के इतिहास और विभिन्न युगों की घटनाओं के साक्षी हैं। वे अपनी यात्राओं के दौरान देखे और सुने हुए वृत्तांतों को रोचक और शिक्षाप्रद कहानियों के रूप में प्रस्तुत करते हैं। उनकी कथाएँ न केवल मनोरंजन करती हैं, बल्कि श्रोताओं को धर्म, नीति और जीवन के महत्वपूर्ण मूल्यों से भी परिचित कराती हैं। युगांतरकारी घटनाओं के उत्प्रेरक: कई पौराणिक कथाओं में नारद को ऐसी घटनाओं के उत्प्रेरक के रूप में दर्शाया गया है जिनका दूरगामी प्रभाव होता है। कभी-कभी वे देवताओं और असुरों के बीच विवाद उत्पन्न करते हैं, तो कभी महत्वपूर्ण व्यक्तियों को सही मार्ग दिखाते हैं। उनका हस्तक्षेप अक्सर संतुलन बनाए रखने और धर्म की स्थापना किया है। नारद का प्रभाव केवल हिंदू धर्म तक ही सीमित नहीं है। बौद्ध और जैन धर्म में भी उनका उल्लेख मिलता है, हालांकि उनके स्वरूप और भूमिका में कुछ भिन्नताएँ हो सकती हैं। यह उनकी सर्वव्यापकता और भारतीय धार्मिक चिंतन पर उनके गहरे प्रभाव को दर्शाता है। भागवत पुराण में नारद का पूर्व जन्म: इस कथा में नारद के पिछले जन्म का वर्णन है, जहाँ वे एक गंधर्व थे और श्राप के कारण उन्हें एक दासी के पुत्र के रूप में जन्म लेना पड़ा। संतों की सेवा और भगवान विष्णु के प्रसाद से उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त हुआ। शिव पुराण में नारद और कामदेव: इस कथा में नारद की तपस्या को भंग करने के लिए इंद्र द्वारा भेजे गए कामदेव की विफलता का वर्णन है, जो नारद पर शिव की कृपा को दर्शाता है। भगवान विष्णु द्वारा देवर्षि नारद के अभिमान का खंडन: इस कथा में विष्णु द्वारा अपनी माया से नारद के अभिमान को तोड़ने और उन्हें अहंकार से मुक्त करने की शिक्षा दी गई है। माया दर्शन की कथा: देवी भागवत पुराण में वर्णित यह कथा नारद को विष्णु की माया की शक्ति और जटिलता को समझने में मदद करती है, जब वे एक झील में स्नान करके स्त्री बन जाते हैं और एक राजा से विवाह करते हैं।
देवर्षि नारद भारतीय संस्कृति के एक अभिन्न अंग हैं। वे ज्ञान, भक्ति, संगीत और संवाद के प्रतीक हैं। उनकी सर्वव्यापी उपस्थिति और बहुआयामी भूमिकाएँ उन्हें एक अद्वितीय और महत्वपूर्ण स्थान प्रदान करती हैं। उनकी कथाएँ और शिक्षाएँ आज भी प्रासंगिक हैं और हमें धर्म, ज्ञान और ईश्वर के प्रति प्रेम के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती हैं। वे वास्तव में एक त्रिकालदर्शी ऋषि, दिव्य दूत और ज्ञान-भक्ति के शाश्वत सेतु हैं।
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