संगीत और पत्रकारिता जगत के जनक है देवर्षि नारद - सत्येन्द्र कुमार पाठक
जहानाबाद:। देवर्षि नारद जयंती के अवसर पर जीवन धारा नमामी गंगे के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, साहित्यकार व इतिहासकार सत्येन्द्र कुमार पाठक ने देवर्षि नारद को संगीतकार, ज्ञान और पत्रकारिता जगत का जनक बताया। उन्होंने कहा कि देवर्षि नारद ने अपने ज्ञान, भक्ति और कार्यों से युगों-युगों तक मानव जाति का मार्गदर्शन किया है।श्री पाठक ने कहा कि देवर्षि नारद केवल देवताओं और मनुष्यों के बीच संवाद स्थापित करने वाले देवदूत ही नहीं हैं, बल्कि वे सृष्टिकर्ता ब्रह्मा के मानस पुत्र भी हैं। वैष्णव परंपरा में उनका एक विशिष्ट स्थान है, जहाँ उन्हें भगवान विष्णु के पृथ्वी पर अवतार के समय बुरी शक्तियों का मुकाबला करने और महत्वपूर्ण घटनाओं के साक्षी बनने में उनकी सहायता करने के लिए ऋषिराज के रूप में सम्मानित किया जाता है। उन्होंने बताया कि देवर्षि नारद का निवास ब्रह्मलोक और वैकुंठ माना जाता है और उनकी पहचान उनके विशिष्ट प्रतीक - वीणा "महाती" और करताल - से है। वे अपनी वीणा का उपयोग भजन, प्रार्थना और मंत्रों के गायन में करते हैं। उनके भाई-बहन के रूप में हिमवत और जामवान का उल्लेख मिलता है। सत्येन्द्र कुमार पाठक ने नारद को न केवल सूचनाओं का वाहक बल्कि ज्ञान और धर्म का भी प्रतीक बताया। उन्होंने नारद पुराण और नारदस्मृति जैसे ग्रंथों का उल्लेख करते हुए कहा कि ये उनके ज्ञान और धार्मिक सिद्धांतों के प्रमाण हैं। नारदस्मृति को तो "न्यायिक पाठ सर्वोत्कृष्ट" धर्मशास्त्र पाठ माना जाता है। उन्होंने भागवत पुराण में वर्णित कथा का उल्लेख किया, जिसमें बताया गया है कि कैसे अपने पिछले जन्म के कर्मों के कारण उन्हें देवताओं के बजाय पृथ्वी पर जन्म लेना पड़ा और कैसे उन्होंने संत पुजारियों की सेवा और भगवान विष्णु के प्रसाद से आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया। उन्हें पृथ्वी पर पहले ब्रह्मांडीय दूत के रूप में भी माना जाता है, जिनका उल्लेख सनातन धर्म के साथ-साथ बौद्ध और जैन धर्म में भी मिलता है। उन्होंने शिव पुराण, विष्णु पुराण और देवी भागवत पुराण से जुड़ी नारद की विभिन्न कथाओं का भी उल्लेख किया, जो उनके ज्ञान, भक्ति और भगवान के प्रति अटूट श्रद्धा को दर्शाती हैं। कर्नाटक के चिगाटेरी और गोरखपुर के गीता वाटिका में स्थित देवर्षि नारद मुनि के मंदिरों का उल्लेख करते हुए श्री पाठक ने उनकी महत्ता और लोकप्रियता पर प्रकाश डाला। उन्होंने यह भी माना कि नारद ने हरिदास (विष्णु के सेवक) के रूप में पुरंदर दास के रूप में पुनर्जन्म लिया था। साहित्यकार सत्येन्द्र कुमार पाठक ने कहा कि देवर्षि नारद भारतीय संस्कृति में एक अद्वितीय स्थान रखते हैं। वे न केवल देवताओं और मनुष्यों के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी हैं, बल्कि ज्ञान, संगीत और भक्ति के भी प्रतीक हैं। उनकी कथाएँ हमें धर्म, कर्म, माया और ईश्वर के प्रति अटूट श्रद्धा का महत्व सिखाती हैं और युगों-युगों तक हमारा मार्गदर्शन करती रहेंगी। वे वास्तव में एक त्रिकालदर्शी ऋषि, दिव्य दूत और ज्ञान-भक्ति के शाश्वत सेतु हैं।
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