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दो दिन का है बसेरा,

दो दिन का है बसेरा,

डॉ राकेश कुमार आर्य
तर्ज: वो दिल कहां से लाऊं तेरी याद जो भुला दे
दो गज कफन ओ बंदे, तेरा ओढ़ना बनेगा।
लेटेगा तू जमीन पर , और आग में जलेगा।।
संसार का चलन है , पड़ता हमें निभाना।
जो भी यहां पे आया पड़ता है उसको जाना।।
वक्त की वक्त कर तू ,ना वक्त फिर मिलेगा...
लेटेगा तू जमीन पर , और आग में जलेगा।।१।।
दो दिन का है बसेरा, अब जागना पड़ेगा।
आएगा जब बुलावा, तुझे भागना पड़ेगा।।
जो ना जगा समय से फिर हाथ ही मलेगा.....
लेटेगा तू जमीन पर , और आग में जलेगा।।२।।
क्यों त्यागता नहीं है, नश्वर को जानकर भी।
विषयों में फंस रहा है, उन्हें त्याज्य मानकर भी।।
खा जाएंगे तुझे ये, समय अंत ना टलेगा .....
लेटेगा तू जमीन पर , और आग में जलेगा।।३।।
समय रहते याद कर ले, जगदीश ईश्वर को।
भव पार वो करेगा, हर लेगा सारे तम को।।
'राकेश' भज ले उसको निश्चय ही वो मिलेगा....
लेटेगा तू जमीन पर , और आग में जलेगा।।४।।
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