बिना भरम के काइनात में गुज़र दुश्वार बहुत है।
डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•(पूर्व यू.प्रोफेसर)
बिना भरम के काइनात में गुज़र दुश्वार बहुत है।
नजर मिलाने से भी कतराए जो दिलदार बहुत है।
लब सिल गए हैं उसके कि जुबाँ निकलती ही नहीं,
मैं पुकार रहा हूँ कब से दिल गमगुसार बहुत है ।
चलते- चलते पैहम आबलों से भर गए हैं पाँव ,
तेरी मिन्हाज बेहद नेशज़न पुरखार बहुत है।
सारा आलम ही तेरे कूच से बेगाना-सा हो गया,
सरबजानू हो गया हूँ अब दिल बेकरार बहुत है।
गर्दिशेदौराँ में न कोई किसी का दोस्त है न दुश्मन,
जो मुश्ताक़ था कभी बेहद, वोअब बेजार बहुत है।
नजर मिलाने से भी कतराए जो दिलदार बहुत है।
लब सिल गए हैं उसके कि जुबाँ निकलती ही नहीं,
मैं पुकार रहा हूँ कब से दिल गमगुसार बहुत है ।
चलते- चलते पैहम आबलों से भर गए हैं पाँव ,
तेरी मिन्हाज बेहद नेशज़न पुरखार बहुत है।
सारा आलम ही तेरे कूच से बेगाना-सा हो गया,
सरबजानू हो गया हूँ अब दिल बेकरार बहुत है।
गर्दिशेदौराँ में न कोई किसी का दोस्त है न दुश्मन,
जो मुश्ताक़ था कभी बेहद, वोअब बेजार बहुत है।
(मिन्हाज =रास्ता; सर बजानू =घुटनों पर सर रखे हुए यानी चिन्तित,उदास)।
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