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खुशियों की भोर,बुद्धम शरणम गच्छामि की ओर

खुशियों की भोर,बुद्धम शरणम गच्छामि की ओर

धर्म कर्म आध्यात्मिक क्षेत्र,
नर नारी महत्ता सम ।
जाति विभेद उन्मूल सोच,
मानव सेवा परम धम्म ।
क्रोध घृणा द्वेष अनुचित,
नेह समाधान उग्र आवेश छोर ।
खुशियों की भोर,बुद्धम शरणम गच्छामि की ओर।।


सम्यक दृष्टि संकल्प वचन,
कर्म आजीविका परम पद ।
व्यायाम स्मृति समाधि संग ,
उपमित आष्टांगिक मार्ग विशद ।
शब्द अभिव्यंजना सदा शुभ,
प्रयोग अभिव्यक्ति भाव प्रदेश ठोर ।
खुशियों की भोर,बुद्धम शरणम गच्छामि की ओर ।।


चिंतन मनन सोच विचार,
भावी जीवन निर्धारक बिंदु ।
अवांछितता परिणाम विपरित,
नैतिकता सह अमिय सिंधु ।
अहिंसा करुणा भाव अद्भुत ,
अभिलाषा विजय भव प्रयास पुरजोर ।
खुशियों की भोर,बुद्धम शरणम गच्छामि की ओर ।


मृदुल मधुर सार्थक संबंध हित,
आत्म मंथन ज्ञान अहम ।
सुख समृद्धि कारक निजता
बाह्य घटक सामंजस्य पैहम।
सकारात्मकता प्रगति मूल मंत्र,
सिद्धार्थ प्रेरणा पुंज संदेश कोर ।
खुशियों की भोर,बुद्धम शरणम गच्छामि की ओर ।।


कुमार महेंद्र

(स्वरचित मौलिक रचना)
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