महात्मा बुद्ध
जिस नाम का सिद्ध अर्थ हुआ ,उसका नाम ही सिद्धार्थ हुआ ।
जीवन शांति हेतु घर को त्यागा ,
उसका जीवन ही परमार्थ हुआ ।।
जन जन के हृदय झाॅंक देखा ,
दर्द किसी का भी सहन न हुआ ।
व्यथित हुई उनकी यह आत्मा ,
सहन करना भी वहन न हुआ ।।
भ्रमण किया जब दुनिया का ये ,
बोधगया में आकर वे शांत हुए ।
देने लगे वे उपदेश घूम घूमकर ,
राष्ट्र आवश्यकता नितांत हुए ।।
जब शोध हुआ तो बोध हुआ ,
बोध हुआ तब जाकर बुद्ध हुए ।
बुद्ध हुए तब आगे वे सिद्ध हुए ,
औ जब सिद्ध हुए तो शुद्ध हुए ।।
शुद्ध हुए तो हुए महान आत्मा ,
फिर बन गए अब वे महात्मा ।
चरितार्थ हुआ नाम महात्मा बुद्ध ,
कलियुग हेतु हो गए देवतात्मा ।।
शांति का था द्योतक जीवन यह ,
शांति के थे बहुत बड़े अधिष्ठाता ।
बुद्ध के उपदेश में युद्ध कहाॅं से ,
जिन्हें शांति से था गहरा नाता ।।
चल रहा था युद्ध मस्तिष्क में ,
विश्व में शांति कैसे स्थापित हो ।
कैसे दूर हो ईर्ष्या द्वेष भावना ,
कैसे धरा से युद्ध विस्थापित हो।।
कैसे जगे समता की ये भावना ,
कैसे मन में शुद्ध जागृति आए ।
कैसे समझे ये मानव मानव को ,
कैसे प्रदूषण से ये निजात पाए।।
दिया उपदेश शांति का उन्होंने ,
विश्व पलट मार्ग चल चुका था ।
कई देश हुए तब बहुत प्रभावी ,
अशोक मन अहिंसा पल चुका था ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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