"भय और वर्तमान का संबंध"
भय मनुष्य की सबसे पुरानी प्रतिक्रियाओं में से एक है, परंतु यह ध्यान देना आवश्यक है कि भय हमेशा भविष्य को लेकर होता है—उस अनदेखे, अनजाने कल को लेकर, जो अभी आया ही नहीं। हम किसी संभावित असफलता, पीड़ा या हानि की कल्पना करते हैं और उसी से डरने लगते हैं। पर यदि हम वर्तमान क्षण में ठहर जाएं, तो पाएंगे कि अभी, इस पल में, भय का कोई ठोस आधार नहीं है।
वर्तमान में जीना ही भय से मुक्ति का मार्ग है। जब मन 'अब' में स्थित होता है, तो न तो अतीत की ग्लानि उसे जकड़ती है, न भविष्य की चिंता। यही कारण है कि संत, योगी और विचारक बार-बार "वर्तमान में जियो" का संदेश देते हैं। भय को जीतना है, तो कल्पनाओं से बाहर निकलकर यथार्थ को देखना होगा—यहीं, अभी।
निष्कर्षतः प्रिय मित्रों भय को समझकर उसे स्वीकारना और वर्तमान में टिकना, आंतरिक शांति की ओर पहला कदम है।
. "सनातन"
(एक सोच , प्रेरणा और संस्कार)
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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