भारतीय संविदा अधिनियम और हिंदू विवाह

भारतीय संविदा अधिनियम और हिंदू विवाह

हिंदू धर्म में विवाह एक संस्कार माना गया है। इस विवाह को बाद में कानून का जामा पहनाकर भारतीय विवाह अधिनियम कहा गया।
यदि विवाह को अधिनियम में बांधा जाए तो इसे भारतीय संविदा अधिनियम की दृष्टि से देखा ज सकता है।
भारतीय संविदा अधिनियम में मुख्य रूप से पंच निर्णय, कम्पनी अधिनियम और साझेदारी अधिनियम का अध्धयन किया गया है।
हिंदू विवाह का आधार भी यही तीनों अधिनियम है। आएं जाने क्यों और कैसे !
१. पंच निर्णय:-
हिंदू विवाह में लड़की पक्ष से पिताजी के साथ, भाई, चाचाजी, मामाजी एक से अधिक बार लड़का के घर जाकर लड़के के पिता के पास विवाह का प्रस्ताव लेकर जाते हैं। वर और कन्या के पिताजी सहित परिवार के अन्य सदस्यों की सहमति से विवाह की तिथि एवं अन्य कार्यक्रमों की रुप रेखा तय करते हैं।
सच कहा जाए और गम्भीरता से विचार करें तो हम इस निष्कर्ष पर पहूंचते है कि दोनों पक्ष के परिवार के अन्य सदस्य पंच की भूमिका अदा करते हैं। पंच निर्णय को दोनों पक्ष के पिता सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं।
२.कम्पनी:-किसी भी कम्पनी की स्थापना के लिए शेयर धारकों की अहम् भूमिका होती है। इन शेयर धारकों की शेयर के आधार पर उनका योगदान भी मापा जाता है।
ठीक इसी प्रकार परिवार रुपी कम्पनी की स्थापना में पति पत्नी की सर्वोच्च भूमिका होती है। परिवार के अन्य सदस्य तथा माता-पिता, चाचा -चाची, भैया -भाभी की भूमिका कम नहीं होती। क्योंकि इन सभी का राय विचार की भी अहम् भूमिका होती है।
३-साझेदारी अधिनियम - आज प्रेम विवाह का प्रुलन बहुत तेजी से फल फूल रहा है। विवाह के बाद पति -पत्नी के बिच एक अलिखित समझोता होता है। और वह है आजीवन विवाह बंधन को स्वीकारने का। हिंदू संस्कृति और संस्कार की रक्षा करने का। एक दूसरे के विचार को सम्मान देने का। एक दूसरे को सुख -दु:ख में साथ देने का।
पर अफसोस साझेदारी अधिनियम के गुणों को हम भूलते जा रहे हैं साझेदारी अधिनियम की सबसे बड़ी बुराई (साझेदारी का भंग होना) को आज की कुछ युवा पीढ़ी संस्कार और हिन्दू संस्कृति को भूल विचारों में भिन्नता होते ही एक दूसरे से हमेशा हमेशा के अलग हो जा रहे हैं। और ईसाईयत में प्रयोग होने वाले शब्द डायवोर्स तथा मुस्लिम समाज में प्रयुक्त शब्द तलाक को स्वीकार कर रहे हैं।
जो हिन्दू धर्म के विघटन का बहुत बड़ा कारण है।
नयी पीढ़ी को जागरूक होना होगा। क्योंकि उन्हीं के कंधों पर हिंदू समाज और हिन्दू संस्कृति की रक्षा का भार है।
जितेन्द्र नाथ मिश्र

कदम कुआं, पटना।
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