लोकतंत्र का महापर्व और महाभारत

लोकतंत्र का महापर्व और महाभारत

लैकसभा चुनाव (महाभारत संग्राम)की रणभेरी बज गयी है। दोनों दल ने अपने अपने दल का नामकरण भी कर दिया है। एक अपने को राष्ट्रीय दल कहता है जो भारत की अस्मिता की रक्षा की बात करता है। उसने अपने दल का नाम रखा (एन डी ए) और दूसरे ने (इंडिया) रखा है।
एन डी ए को चाहें तो आप नेशनल डिफेंस एकेडमी भी कह सकते हैं। क्योंकि राष्ट्र और हिंदू धर्म की सुरक्षा की बात करता है। अयोध्या, काशी, मथुरा की बात करता है। अखंड भारत की भी बात करता है। चीन और पाकिस्तान को सबक सिखाने की भी बात करता है।
दूसरी ओर इंडिया नाम से अपनी पहचान बताने वाला गठबंधन है। जी हां "इंडिया"जो अंग्रेजी शब्द है। इस गठबंधन में शामिल दलों का जन्म भारत में नहीं हुआ था । जैसे कांग्रेस, कम्युनिस्ट । आज भी इन दलों की सोच वहीं है जहां जन्म हुआ था।।
कुछ दल कहीं भी नहीं हैं वो निष्पक्ष भाव से खड़ा होकर तमाशा देख रहे हैं। जिनके उम्मीदवार जितने के बाद किन्नर की भूमिका अदा करने की तैयारी में हैं। एन डी ए या इंडिया जिस दल की जीत होगी उसके साथ खड़ा हो जाएंगे।
यह चुनाव सात चरणों में होने जा रहा है। अभिमन्यु की तरह सातों दरवाजे को भेदने के लिए कुछ निर्दलीय योद्धा भी खड़ा हो रहे हैं।
आने वाला वक्त ही (4जून) बताएगा इस महाभारत में किस दल से कौन कौन योद्धा शहीद हुए। कुछ ऐसे भी शहीदी योद्धा होंगे जिनका यह आखिरी युद्ध होगा और जितने के बाद अमरता का दो बुंद अपने हलक में डाल लेंगे।
महाभारत में तो केवल एक कृष्ण और एक सकुनी थे। और थी एक महारानी।पर आज महारानी तो युद्ध की घोषणा के पूर्व ही मैदान छोड़कर भाग कर उच्च सदन में जाकर छूप कर बैठ गई। रही बात सकुनी की। तो कांग्रेस के रणनीतिकार भी युद्ध के मैदान से अपने आपको बाहर कर लिया है ‌
अब तो बारी हमारी है ।हमें तो बस देखना है।
हमें तो केवल ४जून को जयकारा करना है। चार जून के बाद भले ही दो जून की रोटी नसीब नहीं हो।

जितेन्द्र नाथ मिश्र कदम कुआं, पटना।
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