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मुस्लिम तुष्टीकरण के विरोधी थे सावरकर : डॉ आर्य

मुस्लिम तुष्टीकरण के विरोधी थे सावरकर : डॉ आर्य

  • धर्मयात्रा महासंघ काशीपुर ने मनाई सावरकर जयंती :
  • मां भारती की सतत साधना का नाम है सावरकर : सतीश चंद्र मदान

काशीपुर से विशेष संवाददाता की खबर |
 माँ भारती के सच्चे सपूत और महान क्रांतिकारी “स्वातंत्रवीर विनायक दामोदर सावरकर ” की पुण्य स्मृति में यहां स्थित रामलीला मैदान में विशाल एकत्रीकरण सभा का आयोजन किया गया । जिसमें मुख्य वक्ता श्री सतीश चन्द्र मदान ( राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अखिल भारतीय हिन्दू महासभा) ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि सावरकर एक उत्कृष्ट राष्ट्रवादी चिंतन और मां भारती की सतत साधना का नाम है। उन्होंने कहा कि सावरकर का स्मरण आते ही भारत की चिरंतन साधना साकार रूप लेती हुई दिखाई देती है। जिन्होंने भारत माता को पराधीनता की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए अनेक प्रकार के कष्ट सहे। उन्होंने कभी भी सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। उन्होंने क्रांति के माध्यम से देश को आजाद कराने की बात की और मुस्लिम लीग सहित प्रत्येक उस व्यक्ति या संगठन का तीखा विरोध किया जिसने भी भारत विभाजन का समर्थन किया या किसी भी प्रकार से देश विरोधी शक्तियों को मजबूत करने का काम किया।
हिंदूवादी नेता ने कहा कि सावरकर राष्ट्र के संदर्भ में हमेशा स्पष्टवादी दृष्टिकोण अपनाकर चले। उन्होंने राजनीति का हिंदूकरण और हिंदुओं का सैनिकीकरण करने पर बल दिया। यह भी स्पष्ट किया कि धर्मांतरण से मर्मांतरण और मर्मांतरण से राष्ट्रांतरण की प्रक्रिया पूर्ण होती है। इसलिए धर्मांतरण जैसी देशविघातक मनोवृति पर रोक लगनी चाहिए। वह मुस्लिम तुष्टीकरण और छद्म धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के विरोधी थे।
श्री मदान ने अपने ओजस्वी वक्तव्य में कहा कि सावरकर जी ने उससे प्रत्येक क्रांतिकारी का साथ दिया जिसने भी मां भारती की पराधीनता की बेड़ियों को काटने हेतु सशस्त्र क्रांति का मार्ग चुना था। उन्होंने नेताजी सुभाष चंद्र बोस का भी मार्गदर्शन किया और उन्हें सलाह दी कि वे भारत से बाहर जाकर आजाद हिंद फौज का नेतृत्व करें और देश को क्रांति के माध्यम से स्वाधीन कराएं। उन्होंने कांग्रेस की दब्बू नीतियों का विरोध किया और यह भी अनेक अवसरों पर स्पष्ट किया कि कॉन्ग्रेस हिंदुओं की समर्थक पार्टी नहीं है । उसके रहते हुए हिंदुओं का कभी भला नहीं हो सकता। वह कांग्रेस, मुस्लिम लीग और अंग्रेजों की मिलीभगत से निर्मित हुए राष्ट्र विरोधी परिवेश के सदा विरोधी रहे। इसके साथ ही साथ उन्होंने इन तीनों भारत विरोधी संगठनों या संस्थानों का तीखा विरोध जारी रखा।
इस अवसर पर विशिष्ट वक्ता के रूप में उपस्थित रहे भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता और सुप्रसिद्ध इतिहासकार डॉ राकेश कुमार आर्य ने सावरकर जी के इतिहास दर्शन पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि सावरकर जी पहले व्यक्ति थे जिन्होंने 1857 की क्रांति को भारत का प्रथम स्वाधीनता संग्राम घोषित किया था। उन्होंने शस्त्र और शास्त्र के उचित समन्वय को करने पर बल दिया और भारत की सोई हुई युवा शक्ति को जागृत पर ब्रिटिश साम्राज्य को भारत से उखाड़ फेंकने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
डॉ आर्य ने कहा कि सावरकर जी का इतिहास दर्शन वीरता और गौरव का बोध कराता है। 712 में आए मोहम्मद बिन कासिम से लेकर 1947 तक के प्रत्येक विदेशी आक्रमणकारी विदेशी शासक की हिंदूविरोधी नीतियों का पर्दाफाश किया ।
वह कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति के विरोधी थे। गांधीजी औरंगजेब को अपना आदर्श मानते थे, और कहते थे कि जब आजादी मिलेगी तो हम मुस्लिमों की शरीयत को लागू करवाएंगे। जबकि सावरकर इस प्रकार की राष्ट्र विरोधी मानसिकता के विरोधी थे। उन्होंने मोपला कांड में गांधी की संलिप्तता और उनकी नीतियों का विरोध किया और उसका पर्दाफाश किया। देश के महान क्रांतिकारी भगत सिंह और उनके साथियों के प्रति गांधी की सोच को भी उन्होंने कभी उचित नहीं माना । श्रद्धानंद जी के हत्यारे को गांधी जी के द्वारा भाई कहने पर उनकी तीखी आलोचना की। उन्होंने नेहरू को भी 1962 में चीन के साथ हुए युद्ध के समय शिक्षा दी थी कि हमें बुद्ध की नहीं जिंदगी आवश्यकता है। उन्होंने गांधीजी से भी कई अवसरों पर कहा था कि भारत को सत्याग्रह की नहीं शस्त्राग्रह की आवश्यकता है।
डॉक्टर आर्य ने कहा कि जो लोग आज सावरकर को गद्दार कहते हैं वास्तव में गद्दारी उनके अपने खून में छुपी हुई है। क्योंकि कांग्रेस की स्थापना देश को आजाद कराने के लिए नहीं बल्कि अंग्रेजों की एक सेफ्टी वॉल्व के रूप में की गई थी। जिसका संस्थापक भी एक रिटायर्ड ब्रिटिश अधिकारी ए ओ ह्यूम था। जिसने 131 हिंदुओं की हत्या करवाई थी। इतना ही नहीं 1857 की क्रांति के पश्चात अंग्रेजों की प्रतिक्रांति के माध्यम से जब लगभग डेढ़ करोड भारतीयों का वध किया गया तो उसमें भी कांग्रेस के उक्त संस्थापक की महान भूमिका थी। कांग्रेस को ब्रिटिश सत्ताधीशों की सेफ्टी वाल्व बनाए रखने में कांग्रेस के बड़े नेताओं ने सक्रिय भूमिका निभाई । जिसमें गांधी का भी विशेष योगदान था।
डॉ आर्य ने कहा कि गांधी जी को 1930 तक भी अंग्रेजों की ओर से ₹100 मासिक भत्ता मिला करता था। ऐसे में उनसे ब्रिटिश साम्राज्य का विरोध करने की अपेक्षा नहीं की जा सकती थी। डॉ आर्य ने यह भी स्पष्ट किया कि 1921 में मोपला कांड के समय गांधी जी ने अफगानिस्तान के अमीर को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया था और यह स्पष्ट किया था कि हम भारत में मुसलमानों के राज्य को विदेशी नहीं मानते। इस प्रकार एक बुराई का अर्थात ब्रिटिश साम्राज्य का हल्का-फुल्का विरोध करने वाले महात्मा गांधी ने बड़ी बुराई को अर्थात मुस्लिम साम्राज्य को भारत में स्थापित करने के लिए अपनी आतुरता दिखाई। सावरकर जी के चिंतन में इस प्रकार की बात दूर दूर तक भी नहीं थी । वह मुसलमानों को भी भारत की वैदिक संस्कृति के लिए सबसे बड़ा खतरा मानते थे।
अपने ओजपूर्ण वक्तव्य में श्री आर्य ने कहा कि भारत की मौलिक चेतना का प्रतिनिधित्व करने वाले सावरकर विशुद्ध राष्ट्रवादी थे। उन्होंने प्रत्येक उस व्यक्ति या शक्ति का विरोध किया जो सच्चे दिल से मां भारती का भक्त नहीं था। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा जिस प्रकार प्रकार अग्निवीर तैयार किए जा रहे हैं यह सावरकर जी की हिंदुओं की सैनिकीकरण की योजना का ही एक रूप है। इसी प्रकार आज भारत की नई संसद के उद्घाटन समारोह में जिस प्रकार संतों का समागम दिखाई दिया है वह भी भारत की राजनीति के हिंदूकरण का ही एक स्वरूप है।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे विजय कुमार जिन्दल (पूर्व अध्यक्ष के.जी.सी.सी.आई.) ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि सावरकरवादी चिंतन से ही वर्तमान भारत के समक्ष उपस्थित चुनौतियों का समाधान किया जा सकता है। कार्यक्रम अध्यक्ष श्री गोपाल कृष्ण अग्रवाल ( सी.एम. डी. एग्रोन रेमिडीज प्राइवेट लिमिटेड, काशीपुर) ने कहा कि भारत को विश्व शक्ति बनाने में सावरकर जी का तेजस्वी राष्ट्रवाद का संकल्प हमारी विशेष सहायता कर सकता है। पूर्व विधायक श्री हरभजन सिंह चीमा ने कहा कि हमें अपनी स्वाधीनता की रक्षा करने के लिए सभी हिंदुत्ववादी शक्तियों को मजबूत करना है और एक साथ आगे बढ़ते हुए अपनी स्वाधीनता पर किसी प्रकार की आंच नहीं आने देनी है।
इस अवसर पर कार्यक्रम का सफल संचालन वरिष्ठ अधिवक्ता और सावरकरवादी विचारधारा से ओतप्रोत श्री शरत चंद्र कश्यप एडवोकेट द्वारा किया गया। जिन्होंने क्रांतिकारी सावरकर जी के जीवन पर प्रकाश डाला और अपना बीज भाषण प्रस्तुत किया।
उन्होंने कहा कि बड़े त्याग और तपस्या के बाद ही यह आजादी मिली है । जिसकी रक्षा करना हम सब भारत वासियों का राष्ट्रीय कर्तव्य है।इस अवसर पर श्री आर0पी0 राय, पंडित राघवेंद्र नागर, विपिन अग्रवाल एडवोकेट, श्री जयप्रकाश सिंह ,श्री सुभाष चंद्र शर्मा, क्षितिज अग्रवाल, श्री अशोक कुमार ,श्री मोहन गोले, डॉ महेश अग्निहोत्री, चंद्रभान सिंह, श्री निवास आर्य और अन्य अनेक गणमान्य लोग उपस्थित थे।
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