प्रदूषण धीमा जहर है
फैल रहा विश्व में प्रदूषण ,
यह प्रदूषण धीमा जहर है ।
कट रहे वृक्ष बहुत ही सारे ,
प्रदूषण प्राकृतिक कहर है ।।
दूर तक पैदल चलते जाते ,
मिले शीघ्र न कहीं ठहर है
गांवों में मिलें न ठिकाना ,
फिर मिलना कहां शहर है ।।
असह्य हो रही अब गर्मी ,
बहुत ही तप रहा दोपहर है ।
वृक्षकर्तन कारण सूखे जल ,
जहां भी देखो सूखा नहर है ।।
कटते रहेंगे जबतक ये वृक्ष ,
क्षीण होनेवाले अब बहर हैं ।
संभल जाओ अब तू मानव ,
यह प्रदूषण ही धीमा जहर है ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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