मधुबनी की विरासत

मधुबनी की विरासत

सत्येंद्र कुमार पाठक
दरभंगा प्रमंडल अंतर्गत मिथिला संस्कृति का द्विध्रुव एवं मैथिली और हिंदी भाषीय मिथिला पेंटिंग एवं मखाना के पैदावार करने वाला मधुबनी का सृजन जिला का गठन 1972 में दरभंगा जिले के विभाजन के उपरांत हुआ था। मधुबनी चित्रकला मिथिलांचल क्षेत्र दरभंगा, मधुबनी एवं नेपाल के क्षेत्रों की प्रमुख चित्रकला ह महाराज मधु द्वारा मधु प्रदेश की स्थापना कर मधुबन नगर बसाया गया था । मधुबन निवासियों में किरात, भार, थारु जनजातियाँ शामिल थी । वैदिक काल में आर्यों की विदेह ने अग्नि के संरक्षण में विदेह राजा मिथि द्वारा विदेह प्रदेश की स्थापना सरस्वती तट से पूरब में सदानीरा (गंडक) के क्षेत्र में विदेह राज्य की स्थापना की। विदेह के राजा मिथि द्वारा विदेह साम्राज्य व मिथिला प्रदेश की स्थापना की थी । त्रेतायुग में मिथिला के राजा सिरध्वज जनक की पुत्री सीता का जन्म मधुबनी की सीमा पर स्थित सीतामढी में हुआ था। विदेह की राजधानी मधुबनी के उत्तर पश्चिम सीमा पर जनकपुर नेपाल में है । बेनीपट्टी का फुलहर में फुलों का बाग से सीता फुल लेकर गिरिजा देवी मंदिर में पूजा किया करती थी। पंडौल में पांडवों ने अपने अज्ञातवाश के बिताए थे। विदेह राज्य का अंत पर मिथिला प्रदेश वैशाली गणराज्य का अंग बनने के पश्चात मगध के मौर्य, शुंग, कण्व और गुप्त शासकों के महान साम्राज्य का हिस्सा रहा। १३ वीं सदी में पश्चिम बंगाल के मुसलमान शासक हाजी शम्सुद्दीन इलियास के समय मिथिला एवं तिरहुत क्षेत्रों का बँटवारा हो गया था । उत्तरी भाग जिसके अंतर्गत मधुबनी, दरभंगा एवं समस्तीपुर का उत्तरी हिस्सा आता था, ओईनवार राजा कामेश्वर सिंह के अधीन रहा। ओईनवार राजाओं ने मधुबनी के निकट सुगौना को अपनी पहली राजधानी बनायी। १६ वीं सदी में उन्होंने दरभंगा को अपनी राजधानी बना ली। ओईनवार शासकों को मधुबनी क्षेत्र में कला, संस्कृति और साहित्य का बढावा देने , 1846 ई. में ब्रिटिस सरकार ने मधुबनी को तिरहुत के अधीन अनुमंडल बनाया। 1875 ई. में दरभंगा के स्वतंत्र जिला बनने पर मधुबनी अनुमंडल बना। स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गाँधी के खादी आन्दोलन में मधुबनी ने पहचान कायम की और १९४२ में भारत छोड़ो आन्दोलन में जिले के सेनानियों की भागीदारी थी । स्वतंत्रता के पश्चात 1972 ई. में मधुबनी को स्वतंत्र जिला है। मधुबनी के उत्तर में नेपाल, दक्षिण में दरभंगा, पुरब में सुपौल तथा पश्चिम में सीतामढी जिले कि सीमाओं से घिरा मधुबनी जिले का क्षेत्रफल 3501 वर्ग किलोमीटर 2011 जनगणना के अनुसार 4476064 आवादी है । नदियों में कमला, करेह, बलान, भूतही बलान, गेहुंआ, सुपेन, त्रिशुला, जीवछ, कोशी और अधवारा समूह नदियाँ बरसात के दिनों में उग्र रूप धारण कर लेती है। कोशी नदी जिले की पूर्वी सीमा तथा अधवारा , छोटी बागमती पश्चिमी सीमा बनाती मधुबनी जिले में प्रवाहित होती है । मधुबनी जिले में 5 अनुमंडल, 21 प्रखंडों, 399 पंचायतों तथा 1111 गाँवों , 18 थाने एवं 2 जेल , 2 संसदीय क्षेत्र एवं 11 विधान सभा क्षेत्र में विभाजित है। अनुमंडल में मधुबनी, बेनीपट्टी, झंझारपुर, जयनगर एवं फुलपरास , प्रखंडों में मधुबनी सदर (रहिका), पंडौल, बिस्फी, जयनगर, लदनिया, लौकहा, झंझारपुर, बेनीपट्टी, बासोपट्टी, राजनगर, मधेपुर, अंधराठाढ़ी, बाबूबरही, खुटौना, खजौली, घोघरडीहा, मधवापुर, हरलाखी, लौकही, लखनौर, फुलपरास, कलुआही है । मधुबनी कृषि की मुख्य फसलें धान, गेहूं, मक्का, मखानाएवं भारत में मखाना के कुल उत्पादन का 80% मधुबनी में होता है । मधुबनी पेंटिंग की 76 पंजीकृत इकाईयाँ, फर्नीचर उद्योग की 13 पंजीकृत इकाईयाँ, 3 स्टील उद्योग, 03 प्रिंटिंग प्रेस, 03 चूरा मिल, 01 चावल मिल तथा 3000 के आसपास लघु उद्योग इकाईयाँ है। पशुपालन एवं डेयरी की ३० दुग्ध समीतियाँ ही कार्यरत है। मछली, मखाना, आम, लीची तथा गन्ना कृषि उत्पाद , पीतल की बरतन एवं हैंडलूम कपड़े का निर्यात किया जाता है। मधुबनी में साक्षरता। 58.62% ,प्राथमिक विद्यालयः 901 ,मध्य विद्यालयः 382 ,माध्यमिक विद्यालयः 119 , डिग्री कॉलेजः 27 है । मधुबनी मिथिला संस्कृति का केंद्र विंदु है। राजा जनक और माता सीता का वास स्थल होने से मधुवनी क्षेत्र पवित्र एवं महत्वपूर्ण है। मिथिला पेंटिंग और मैथिली और संस्कृत के विद्वानों ने मधुबनी की पहचान है। लोककलाओं में सुजनी , सिक्की-मौनी , तथा लकड़ी पर नक्काशी , लोक नृत्य में सामा चकेवा एवं झिझिया मधुबनी की पहचान है। मैथिली, हिंदी तथा उर्दू यहाँ की मुख्‍य भाषा है। मधुवनी का क्षेत्र महाकवि कालीदास, मैथिली कवि विद्यापति तथा वाचस्पति जन्मभूमि है। पर्व त्योहारों या उत्सव पर घर में पूजागृह एवं भित्ति चित्र का प्रचलन है। मधुबनी कला शैली का विकास 17 वीं शताब्दी है। मधुबनी शैली जितवारपुर (ब्राह्मण ) और रतनी (कायस्‍थ) के गाँव में व्‍यवसाय के रूप में विकसित हुए पेंटिंग को मधुबनी शैली का पेंटिग ख्याति है। पेंटिग में पौधों की पत्तियों, फलों तथा फूलों से रंग निकालकर कपड़े या कागज के कैनवस पर भरा जाता है। मधुबनी पेंटिंग शैली की मुख्‍य खासियत इसके निर्माण में महिला कलाकारों के द्वारा तैयार किया हुआ कोहबर, शिव-पार्वती विवाह, राम-जानकी स्वयंवर, कृष्ण लीला पर बनायी गयी पेंटिंग में मिथिला संस्‍कृति की पहचान है। मैथिली कला का व्‍यावसायिक दोहन सही मायने में 1962 ई. में शुरू हुआ था । मिथिला पेंटिंग के कलाकारों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मधुबनी व मिथिला पेंटिंग के सम्मान को और बढ़ाये जाने को लेकर तकरीबन 10,000 वर्गफीट में मधुबनी रेलवे स्टेशन के दीवारों को मिथिला पेंटिंग की कलाकृतियों से सरोबार किया है । राजनगर- दरभंगा के महाराजा रामेश्वर सिंह की उप-राजधानी राजनगर में नौलखा महल का निर्माण करवाया परंतु 1934 ई. की भूकंप द्वारा महल को क्षति होने से भग्नावशेष है। महल में देवी काली मंदिर है । राजनगर से उत्तर खजौली, दक्षिण मधुबनी, पूरव बाबूबरही और पश्चिम रहिका ब्लाक है। राजनगर से बलिराजगढ़ की दूरी २० किलोमीटर पर मौर्यकाल का किला है। सौराठ: मधुबनी-जयनगर रोड पर स्थित सौराठ गाँव में सोमनाथ महादेव मंदिर है। सौराठ में मैथिल ब्राह्मणों की प्रतिवर्ष होनेवाली सभा में विवाह तय किए जाते हैं। कपिलेश्वरनाथ: मधुबनी से ९ किलोमीटर दूर इस स्थान पर कपिलेश्वर शिव मंदिर है। बाबा मुक्तेश्वरनाथ स्थान: अंधराठाढ़ी प्रखंड के देवहार में भगवान शिव को समर्पित श्री श्री १०८ बाबा मुक्तेश्वरनाथ शिव मंदिर है । मधुबनी से 34 किमी उत्तर पूरब लौकहा मधुबनी सड़क के किनारे खोजपुर के समीप बलिराज गढ़ का 365 बीघे क्षेत्रफल में फैले बलिराज गढ़ का भग्नावशेष फैला हुआ है। राजा बलि द्वारा मिथिला की राजधानी बलिराज में स्थापित की गई थी । रमणीपट्टी में राजा का रनिवास , फुलबरिया में फूलो का उद्यान था । बलिराज गढ़ में 50 वर्ष पूर्व जंगल था । भगवती स्थान उचैठ: मधुबनी जिला के बेनीपट्टी अनुमंडल से मात्र ४ किलोमीटर की दुरी पर पश्चिम दिशा की ओर उचैठ का भगवती मंदिर स्थित है । भगवती मन्दिर के गर्भगृह में माँ दुर्गा सिंह पर कमल के आसन पर विराजमान हैं । दुर्गा माँ सिर्फ कंधे तक ही दिखाई पड़ने और कंधे से उपर माता का सिर नहीं रहने से छिन्नमस्तिका दुर्गा कहा जाता है । त्रेतायुग में भगवान राम जनकपुर की यात्रा के समय विश्राम स्थल ,-महाकवि कालीदास को माता भगवती वरदान दिया था । गिरिजा - शिव मंदिर : मधुबनी का प्राचीन नाम ‘मधुवन’ था । त्रेतायुग के राजा जनक का मिथिला राज्य की राजधानी जनकपुर है । जगत जननी सीता फुल लोढ़ने राजा फुलवाड़ी गिरजा स्थान फुलहर में नित्य जाया करती थी। जनकपुर के पूरब में विशौल ,पश्चिम में धनुषा , उत्तर में शिवजनकं मंदिर , और दक्षिण में गिरिजा - शिव मंदिर अवस्थित था । राम-लक्ष्मण को धनुष की शिक्षा विशौल के पास जंगल में दिया गया था । विशौल से 10 किमी पश्चिम में गिरजा स्थान पर |राम लक्ष्मण फुलवाड़ी का दर्शन गिरजा स्थान में सीता जी की नजर राम पर और राम की नजर सीता जी पर पड़ी थी । माता गिरजा पूजन के समय जगत-जननी जानकी जी के हाथ से पुष्प माला गिर गया वे लगाकर हंस पड़ी |तुलसी कृत रामायण में वर्णित चौपाई “खसत माल मुड़त मुस्कानी” है । कल्याणेश्वर महादेव मंदिर : गिरिजास्थान से कल्याणेश्वर महादेव मंदिर है। डोकहर राज राजेश्वरी मंदिर : मधुबनी से १२ किलोमीटर उत्तर बहरवन बेलाही गाँव मे माता राज राजेश्वरी का मंदिर है। भवानीपुर: पंडौल प्रखंड मुख्यालय से ५ किलोमीटर दूर स्थित इस गाँव में उग्रनाथ महादेव (उगना) शिव मंदिर है। बिस्फी में जन्में मैथिली के महान कवि विद्यापति से यह मंदिर जुड़ा है। मान्यताओं के अनुसार विद्यापति शिव के इतने अनन्य भक्त थे कि स्वयं शिव ने उगना के रूप में थे । कोइलख - कोइलख एक प्रमुख गाँव है जो माँ काली के लिए प्रसिद्ध है यहाँ जो मनोकामना मांगी जाती है वो जरुर पूरी होती है। गोसाउनी घर : मधुबनी के पुलिस लाइन के रूप में राजा माधवन सिंह का गोसाउनी घर है । मधुबनी से 2 किलोमीटर की दुरी पर महंथ भौड़ा स्थान है । राजा माधवन भगवती की पूजा अर्चना,साधना में इतने लीन रहते थे की पूजा आसनी, धरती से सवा हाथ ऊपर उठ जाया करती थी । राजा शिवसिंह ,लखिमा रानी विद्यापति , जयदेव् ,अयाची वाचस्पति जन्म स्थली है । मधुबनी से एक किलोमीटर की दुरी पर अवस्थित मंगरौनी में बुढ़िया माई मंदिर तंत्र मंत्र स्थल है । मैथिली कवि कोकिल विद्यापति , संस्कृत साहित्य के महा विद्वान जयदेव का जन्म भूमि थी ।।कवि चन्दा झा का रामायण ,वाचस्पति की ‘भवमती’ टीका प्राचीन गाथा में संस्कृत भाषा में गीत गोविन्द आदि मधुबनी के गौरवमय हैं । बाबा चन्देश्वरनाथ स्थान: भगवान शिव को समर्पित श्री श्री १०८ बाबा चन्देश्वर नाथ शिव मंदिर अंधरा ठाढ़ी प्रखंड के हररी में अवस्थित है । मधुबनी के उत्तर में अवस्थित रूद्र के ग्यारह लिंगो का एकादश रुद्र मंदिर मंगरौनी कुटी है ! कलाग्राम में उमानाथ महादेव जितवारपुर में मनोकामना लिंग है ।
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