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बसंत ऋतु

बसंत ऋतु

फिजाओं में खुशबू फैली खिल गए चमन सारे।
झूम-झूम लगे नाचने लो आई महकती बहारें।
वादियों में रौनक आई लबों पे मुस्कानें छाई।
प्रीत भरे तराने उमड़े मस्त मस्त चली पुरवाई।


वृक्ष लताएं डाली डाली पत्ता पत्ता लहराने लगा।
मस्त बहारें चली सुहानी दिल दीवाना गाने लगा।
मन मयूरा मस्ती भर मधुमास भी इठलाता रहा।
भावन कलियां खिली भंवरा गीत गुनगुनाता रहा।


उमंगों ने ली अंगड़ाई करवट बदली मौसम ने।
चाहतों ने भी पंख पसारे महकती हुई बहारों में।
मधुर प्रेम रसधार बन, सद्भावों की बनकर धारा।
खुशियों की बरसात कर, उमड़े उर प्रेम प्यारा।


मोहक मुस्कान बनकर, सबके दिल पर छा जाये
खुशियों का खजाना हो जीवन में बहारें आ जाये
मधुर तराने गीतों के, मुरली की धुन लगती प्यारी।
गुलशन सारा महक उठे,फूलों की महके फुलवारी
रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थानरचना स्वरचित व मौलिक है
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