सनातन के धर्म ग्रंथों में कुछ भी अनावश्यक या ग़लत नहीं है

सनातन के धर्म ग्रंथों में कुछ भी अनावश्यक या ग़लत नहीं है

वर्तमान में वामपंथियों छद्म धर्मनिरपेक्षों तथा कुछ सनातन विरोधियों के द्वारा हमारे धर्म ग्रंथों को पुनः संशोधित करने की बहस/ विचार को जन्म दिया जा रहा है जिसमें समाज के तथाकथित बुद्धिजीवी भी कूद फांद करने आ गये हैं ।
हमारा स्पष्ट मत है कि सनातन के धर्म ग्रंथों में कुछ भी अनावश्यक या ग़लत नहीं है।
किसी भी व्यक्ति को बदलाव/ संशोधन करने का अधिकार नहीं और करना भी नहीं चाहिए। यह इतिहास के उस कालखंड का प्रतिबिंब है।
आवश्यकता हमें समझने की है, सन्दर्भों की व्याख्या करने की है। हममे से कितने लोग संस्कृत संस्कृति संस्कार का अध्ययन पालन करते हैं, इस पर विचार करने की है।
आवश्यकता अपने प्राचीन ग्रंथों के संरक्षण की है, प्रक्षेपित की नहीं।
तलाशिए कहीं दो सौ वर्ष पुराने हमारे ग्रंथ मिल जायें तब उनसे तुलना करो कि क्या ग़लत और क्या सही।
हमने देखा है प्राचीन ग्रंथों को लाल कपड़े में बांधकर पूजनीय बनाकर रख दिया। कभी चर्चा करना।
शास्त्रों में कुछ भी ग़लत या अवांछनीय नहीं लिखा गया है।
जिन्होंने रामचरितमानस या मनु स्मृति देखी भी नहीं वह बहस करते हैं क्योंकि उनका लक्ष्य निर्धारित है और हम बचाव की मुद्रा में उनके प्रचार का शिकार बनकर अपने धर्म ग्रंथों में सुधार की बात करने लगे।
लगता है हमारा विवेक ही मर गया। पहले यह काम अंग्रेजों ने किया फिर वामपंथियों ने कांग्रेस के साथ मिलकर और अब हम अनजाने में उस योजना का शिकार और सहायक बन रहे हैं।

अ कीर्ति वर्द्धन
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