विश्व की प्राचिनतम लिपि -ब्राह्मी लिपि

विश्व की प्राचिनतम लिपि -ब्राह्मी लिपि

डॉ सच्चिदानन्द प्रेमी
विश्व की प्राचीनतम विकसित सभ्यता सारस्वत-सैन्धव सभ्यता के उत्तराधिकारी हैं हम । हम लिखना पढ़ना तब से जान रहे हैं जब शेष विश्व सभ्य नहीं हो पाया था। ज्ञान के भंडार का नाम वेद है।यह आर्यावर्त का अपना ज्ञान भंडार है।वेद के आधार पर ही कहा जाता है कि ज्ञान का प्रकाश सबसे पहले भारत में ही फैला था । अब तक प्राप्त सभी प्राचीन लिपियों का पठन इसलिये सम्भव हुआ कि वे लिपियाँ वास्तव में उतनी प्राचीन नहीं हैं जितनी कि सैन्धव लिपि , यही प्राचीनता ही वह कारण है जो अब तक यह सैन्धव लिपि अपठित ही है चाहे दावे कितने ही किये जाते रहे हों।
इन वेदों में चौंसठ लिपियों की गणना की गई है ।कहने .का तात्पर्य है कि वेदों में चौंसठ प्रकार के अक्षर मिलते हैं ।यहाँ तक कि पहली सदी तक चौंसठ लिपियाँ अस्तित्‍व में थीं। इन लिपियों के अलग-अलग नाम भी मौजूद हैं। इन लिपियों के अलग-अलग नाम भी मौजूद हैं।
व्याख्याप्रज्ञप्ति,समवाय-सूत्र, प्रज्ञापना-सूत्र के अनुसार आर्यावर्त(भारत) की सबसे पुरानी लिपि ब्राह्मी लिपि थी। २६०० वर्ष पहले तक १८ प्रकार की लिपियाँ थीं, जिन्हें ब्राह्मी कहा जाता था।भारत की ब्राह्मी लिपि में ४६ मातृ अक्षर थे।


क ख ग घ ङ


𑀓 𑀔 𑀕 𑀖 𑀗


च छ ज झ ञ


𑀘 𑀙 𑀚 𑀛 𑀜


ट ठ ड ढ ण


𑀝 𑀞 𑀟 𑀠 𑀡


त थ द ध न


𑀢 𑀣 𑀤 𑀥 𑀦


प फ ब भ म


𑀧 𑀨 𑀩 𑀪 𑀫


य र ल व


𑀬 𑀭 𑀮 𑀯


श ष स ह


𑀰 𑀱 𑀲 𑀳


अ आ इ ई


𑀅 𑀆 𑀇 𑀈


उ ऊ ए ऐ


𑀉 𑀊 𑀏 𑀐


ओ औ अं अः


𑀑 𑀒 𑀅𑀁 𑀅𑀂


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जैनों के 'पन्नवणा सूत्र' और 'समवायांग सूत्र' में १८ लिपियों के नाम दिए हैं जिनमें पहला नाम बंभी (ब्राह्मी) है। उन्हीं के भगवतीसूत्र का आरंभ 'नमो बंभीए लिबिए' (ब्राह्मीका लिपि को नमस्कार) से होता है।
पड़ नामक लिपि खोदक का नाम अशोक के शिलालेख में आता है, जो अपने हस्‍ताक्षर खरोष्‍टी में करता था और लिखता था ब्राह्मीलिपि में। हालांकि अशोक ने अपने संदेश धर्मलिपि में दिए हैं
सिंधु-हडप्‍पा की अपनी लिपि रही है ।इस सभ्‍यता की लिपि के नामपट्ट धोलावीरा के उत्‍खनन में मिल चुके हैं । कुछ शैलाश्रयों में भी संकेत लिपि के प्रमाण खोजे गए हैं।
शुद्धोदनपुत्र को जब पढ़ने भेजा गया तब यह प्रश्न किया गया कि कौन सी लिपि पढ़ाई जाए? ।
अथ बोधिसत्त्व उरगसारचन्दनमयं लिपिफलकमादाय दिव्यार्षसुवर्णतिरकं समन्तान्मणिरत्नप्रत्युप्तं विश्वामित्रमाचार्यमेवमाह-कतमां मे भो उपाध्याय लिपिं शिक्षापयसि। ब्राह्मीखरोष्टीपुष्करसारिं अङ्गलिपिं वङ्गलिपिं मगधलिपिं मङ्गल्यलिपिं अङ्गुलीयलिपिं शकारिलिपिं ब्रह्मवलिलिपिं पारुष्यलिपिं द्राविडलिपिं किरातलिपिं दाक्षिण्यलिपिं उग्रलिपिं संख्यालिपिं अनुलोमलिपिं अवमूर्धलिपिं दरदलिपिं खाष्यलिपिं चीनलिपिं लूनलिपिं हूणलिपिं मध्याक्षरविस्तरलिपिं पुष्पलिपिं देवलिपिं नागलिपिं यक्षलिपिं गन्धर्वलिपिं किन्नरलिपिं महोरगलिपिं असुरलिपिं गरुडलिपिं मृगचक्रलिपिं वायसरुतलिपिं भौमदेवलिपिं अन्तरीक्षदेवलिपिं उत्तरकुरुद्वीपलिपिं अपरगोडानीलिपिं पूर्वविदेहलिपिं उत्क्षेपलिपिं निक्षेपलिपिं विक्षेपलिपिं प्रक्षेपलिपिं सागरलिपिं वज्रलिपिं लेखप्रतिलेखलिपिं अनुद्रुतलिपिं शास्त्रावर्तां गणनावर्तलिपिं उत्क्षेपावर्तलिपिं निक्षेपावर्तलिपिं पादलिखितलिपिं द्विरुत्तरपदसंधिलिपिं यावद्दशोत्तरपदसंधिलिपिं मध्याहारिणीलिपिं सर्वरुतसंग्रहणीलिपिं विद्यानुलोमाविमिश्रितलिपिं ऋषितपस्तप्तां रोचमानां धरणीप्रेक्षिणीलिपिं गगनप्रेक्षिणीलिपिं सर्वौषधिनिष्यन्दां सर्वसारसंग्रहणीं सर्वभूतरुतग्रहणीम्। आसां भो उपाध्याय चतुष्षष्टीलिपीनां कतमां त्वं शिष्यापयिष्यसि?
और इसके बाद अक्षर ज्ञान कराया गया जिसमें
अ से क्ष तक का कथन है।
ऋकार ,लृकार नहीं बताये गए ।
अ से क्ष तक ही अक्षरों के नाम आते हैं जिसे 'आखर' कहा गया है ।यह विस्तार को सूचित करता है।
'आखर' शब्द खन् धातु से बनता है। आखर शिलाओं पर या धातु आदि पर खोदे जाते थे। ।यह 'आखर' शब्द प्राचीन है। वेद से उद्धृत है।
इस प्रकार बुद्ध जब पढने जाते हैं तो पहले ही शिक्षक को 64 लिपियों के नाम गिनाते हैं जिनमें पहली लिपि ब्राह्मी हैं। महाभारत में विदुर को यवनानी लिपि के ज्ञात होने का जिक्र आया है, वशिष्‍ठस्‍मृति में विदेशी लिपि का संदर्भ है। किंतु ब्राह्मी वही लिपि है जिसको चीनी विश्‍वकोश में भी ब्रह्मा द्वारा उत्‍पन्‍न बताया गया है।
ब्राह्मी लिपि का सबसे पहले प्रयोग 5–6वी सदी ई पूर्व में पाया गया है, जहाँ खरोष्ठी लिपि का सबसे पहले प्रयोग 3–4वी सदी ई पूर्व में देखा गया है।
ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपि भारत के पढ़े जाने वाले सबसे प्राचीन लिपियों में हैं। । दोनों लिपियों का प्रयोग अशोक स्तंभों में मिलता है।
ब्राह्मी लिपि ज्यादातर उत्तरी भारतीय क्षेत्र में और खरोष्ठी लिपि ज्यादातर अफगानिस्तान एवं उत्तरी पाकिस्तान में पाया गया है। लेकिन कुछ अंशों में दोनों भाषाओं के प्रयोग ईरान से चीन तक पाए गए हैं।
इन दोनों लिपि में कुछ खास अंतर हैं:
1-, दिशा: ब्राह्मी लिपि देवनागरी के समान बाएँ से दाएँ लिखी जाती हैं , लेकिन खरोष्ठी लिपि फारसी की तरह दाएँ से बाएँ लिखी जाती हैं ।
2- ब्राह्मी लिपि में देवनागरी के समान सभी स्वर वर्णों का एक अलग रूप होता हैं। जैसेमें अ, इ, उ, ए, सभी अलग रूप में लिखे जाते हैं।


भास का लिखा नाटक 'अविमारकम्'
पहले अङ्क में नेपथ्य से आवाज आती है
दश नाळिकाः पूर्णाः।
दस बज गये हैं ।
तभी से ऑफिस का टाइम 10 बजे से हो गया है या इसके पूर्व से ही है ।यह 10 बजे का होना पूर्णतः भारतीय है ।
न अति सीत न अति घामा ॥
दूसरे अङ्क में चेटी और विदूषक बात कर रहे हैं-
चेटी कहती है कि भोजन कराने के लिए किसी ब्राह्मण को खोजना है।
विदूषक -क्या मैं श्रमण हूँ?
चेटी- तुम अवैदिक हो।
विदूषक- अरे ! मैं सालभर रोज रामायण के पाँच श्लोक पढ़ता हूँ और उनके अर्थ भी जानता हूँ।
चेटी- अच्छा! तो बताओ मेरी अंगूठी पर क्या लिखा है?
विदूषक- यह अक्षर मेरी पुस्तक में नहीं है।
इस वार्तालाप से यह निष्कर्ष निकलता है कि
1-भास के समय में रामायण विद्यमान थी और रामायण पढ़ने वाला पढ़ा लिखा माना जाता था ।
2-चेटी की मुद्रिका पर कोई अन्य लिपि के अक्षर थे या विदूषक अनपढ़ था ।
इस तरह हम देखते हैं कि सबसे पुरानी लिपि भारत की लिपि ही थी ।
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