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शीशे के घर वाले फेंक रहे हैं चट्टानी दीवारों से बने किलों पर पत्थर

शीशे के घर वाले फेंक रहे हैं चट्टानी दीवारों से बने किलों पर पत्थर

अतुल मालवीय

  • मूर्खता के नित नए रिकॉर्ड बनाता है राहुल गांधी
  • गांधी-नेहरु जैसों की महलों में पिकनिक मनाने वाली कैद स्वातंत्र्यवीर सावरकर की भीषण यातना वाले कालापानी की जेल का पसंगा भी नहीं थी

जब भी हम सोचते हैं कि राजनीति में पप्पू के नाम से मशहूर राहुल गांधी ने ऐसा मूर्खतापूर्ण बयान दे दिया है जिसके आगे अब ये नहीं जा सकेगा तभी राहुल अपनी पिछली मूर्खता से और एक कदम आगे जाकर राजनैतिक पंडितों को गलत साबित कर देते हैं| ऐसा ही एक हालिया बयान राहुल गांधी ने ये कहकर दिया कि सावरकर ने गांधी-नेहरु-पटेल को धोखा दिया था| उन्होंने एक बार पुनः उसी बहुचर्चित माफीनामे का जिक्र छेड़ दिया जो असामान्य परिस्थितियों में लिखा गया था और जिसके लिए स्वयं राहुल की दादी इंदिरा गांधी संसद भवन में सावरकर के तैलचित्र का अनावरण करते हुए खुलासा कर चुकी थीं| माफीनामे की सलाह भी महात्मा गांधी ने ही दी थी, प्रारूप भी तैयार किया था| पुराने लोगों को आज भी याद होगा कि चालीस पचास साल पहले तक पत्र के अंत में “Your Most Obedient Servant” लिखने का ठीक उसी तरह रिवाज़ था जैसे आज Yours faithfully या Yours sincerely लिखा जाता है, भले ही पत्र किसी को भी संबोधित किया गया हो| हंसी आती है कि नासमझ राहुल इसी बात का मुद्दा बनाने पर तुला हुआ है|
इतिहास को तोड़मरोड़कर भारत की जनता को अंधकार में रखने वाले कांग्रेसी नेता एवं वामपंथी इतिहासकार विगत पाँच छः वर्षों से इस बात से इस तरह उद्वेलित हैं जैसे उनका पिछवाड़ा गरम तवे पर पड़ा हो कि जनता के सामने सच कैसे आ रहा है? कैसे हम जैसे लोग सच्चाई को गहरे पानी से निकालकर सतह पर न सिर्फ लाने में कामयाब हो रहे हैं बल्कि वीर सावरकर, सरदार पटेल, सुभाषचंद्र बोस जैसे असली नायकों को उचित सम्मान दिलाने का प्रयास करते हुए गाँधी-नेहरु की जुगलजोड़ी के विलेननुमा कुकृत्यों और हिंदुस्तान की सत्ता पर एक ही खानदान को काबिज़ कराने के षड्यंत्रों का प्रमाण सहित भंडाफोड़ कर रहे हैं| लगता है दिल्ली के सिंहासन से बढ़ती दूरी ने इन खानदानियों का भेजा फेर दिया है|
वीर सावरकर कुल 28 साल कैद में रहे, जिसमें 13 साल नज़रबंद, 15 वर्षों तक जेल में रहे, उसमें भी 10 साल उन्होंने काला पानी की वह सजा काटी, जो सबसे भयानक जेल मानी जाती थी, जहाँ यातना की चरमसीमा पार कर दी जाती थी| जितनी भयानक यंत्रणा सावरकर को लगातार दस साल दी गयी उतनी यदि गांधी-नेहरु को दस मिनिट भी दी गयी होती तो वे घुटने टेककर गिडगिडाते हुए माफी मांगने लगते| सोचिए, जिस स्वतंत्रता सेनानी ने देश की आजादी के लिए अपने लगभग 28 साल भयानक यातानाओं में गुजारे, क्या उनकी देशभक्ति पर शक किया जा सकता है?
दुर्भाग्य की बात ये है कि काला पानी की सजा काटने वाले वीर सावरकर को तो हमारे देश का एक वर्ग कायर बताता है, लेकिन जिन नेताओं ने स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान अपनी मनपसंद जेल में तमाम सुख सुविधाओं के साथ दिन बिताए, उन्हें वीर आजादी दिलाने वाला बताया जाता है? इनमें जवाहर लाल नेहरू भी हैं, जिन्हें गिरफ्तार करके ऐसी जेलों में रखा जाता था जहां उन्हें सारी सुविधाएं मौजूद हों, पढ़ने के लिए अंग्रेजी सरकार पुस्तकें भी देती थी| चूंकि मेरा वर्तमान निवास पुणे में है, अक्सर विशाल और भव्य उस आगाखान पैलेस के सामने से निकलना होता है जहाँ मोहनदास करमचंद गांधी को कई साल बंदी बनाकर रखा गया था| वाह वाह, महलों में सज़ा काटी जाती थी हिंदुस्तान को आज़ाद कराने वालों की| हैरत की बात है न कि अंग्रेजों के पिट्ठुओं को दिखावे के लिए बंदी बनाकर रखा जाता था जबकि वीर सावरकर जैसे लोग यातना की हर पराकाष्ठा पार करते हुए आग में सोने की तरह तप रहे होते थे|
देश को आजादी दिलाने, दबे कुचले हिंदुत्व को फिर से प्रतिष्ठापित करने के भगीरथ प्रयत्न करने वाले स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर के महान बलिदान की चर्चा करने लगूं तो एक पुस्तक भी कम पड़ जायेगी| मेरा मानना है कि ये मुद्दा ही बहस से परे होना चाहिए जिसमें संदेह की कोई गुंजाइश ही नहीं| राहुल गांधी जैसे मूर्ख वीर सावरकर को अपमानित कर क्या हासिल कर सकेंगे, मेरी समझ से बाहर है| अरे, जो बचाखुचा कांग्रेस का समर्थक वर्ग है उसके अलावा क्या कोई नया आदमी उनकी इन हरकतों से कांग्रेस से जुड़ेगा? कभी नहीं| बल्कि अल्प संख्या में बचे कांग्रेसियों के एक वर्ग को उनकी ये हरकतें नागवार गुज़रती हैं, शर्मिन्दा कर देती हैं| साबित हो गया है कि ये पप्पू कांग्रेस की जड़ खोदकर ही दम लेगा| शुभस्य शीघ्रम्|
सुख सुविधाओं से सुसज्जित महलों जैसे आवासों को जेल बताने वाले गांधी-नेहरु की तुलना में जब असहनीय यंत्रणा सहने वाले वीर सावरकर की राहुल गांधी निंदा करता है तो मुझे बी आर चोपड़ा की सुपरहिट फिल्म "वक्त" का वो प्रसिद्ध डायलाग याद आ जाता है जिसे कहते हुए अभिनेता राजकुमार शीशे का जाम मेज पर तोड़ देते हैं:
जिनके अपने घर शीशे के हों वो दूसरों पर पत्थर नहीं फेंका करते चिनॉय सेठ....
और यहाँ तो शीशमहल में बैठा पप्पू उनपर पत्थर फेंक रहा है जिनके घरों, बल्कि किलों की दीवारें मजबूत पत्थरों की बनीं हैं| क्या मज़ाक है यार..... लेखक - अतुल मालवीय
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