बेटियाँ

बेटियाँ

सब कहते बेटा होता भाग्य से ,
औ बेटी होती बहुत सौभाग्य से ।
बेटी हेतु हम मन्नतें भी माँगते ,
बेटी रचती जीवन ये दुर्भाग्य से ।।
जिन मात पिता ने है जन्म दिया ,
वही मात पिता आज अरि बना ।
अपरिचित चेहरा आया सामने ,
वही इस जीवन का कड़ी बना ।।
रखा था अरमान मात पिता ने ,
बेटी हेतु सुन्दर सुसभ्य वर हो ।
परिवार भी मिले सुखी सम्पन्न ,
नहीं कहीं कोई किसी से डर हो ।।
जन्म दिया जिन मात पिता ने ,
अपना जीवन सुख त्याग दिया ।
उसी बेटी ने निज कुकर्तव्यों से ,
आज मात पिता को दाग दिया ।।
बेटी होती मात पिता की पगड़ी ,
बेटी ने ही पगड़ी वह गिरा दिया ।
आनेवाले वंशज कुल खानदानों में,
सदा के लिए उसने दाग लगा दिया ।।
कौन इसका आज है जिम्मेदार ,
जो चल रही आफत यह आज है।
किसपर करूँ आज दोषारोपण ,
स्वयं माता - पिता औ समाज है।।
जिम्मेदारी नहीं यहीं तक सीमित ,
जिम्मेदार फिल्म औ सरकार है ।
जिम्मेदारी जिनकी है प्रजापालन ,
आज उन्हीं को नहीं दरकार है ।।
कहानियाँ सुनीं देखी भी बहुत हैं ,
बंद करो लैला मजनूँ हीर राँझा ।
सब में है यह हबस ही समाहित ,
जनता बीच जो करते हो साझा ।।
फिल्मों में होती बहुत अश्लीलता ,
नग्न अर्द्धनग्न आती हैं तस्वीरें ।
फैल रही यह समाज में गंदगी ,
बन रहे कोयले आज के हीरे ।।
फिल्मी दुनिया धन का आशिक ,
ऐसी दुनिया में है संस्कार कहाँ ?
धन कमाने हेतु हर कुछ दिखाते ,
संस्कृति की उन्हें दरकार कहाँ ?
हम भी बेटे बहू बेटी संग मिल ,
वही फिल्में देखते हम साथ में ।
चाह रहे हम यह आदर संस्कृति ,
बेटे बेटी भी आएँ कहाँ हाथ में ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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