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पैसा

पैसा

जय प्रकाश कुवंर
पैसा खातिर सब कुछ छुटल।
गाँव के छोरा नाम भी मिटल।।
शहरी बाबू अब बन ग‌इनी।
नया उपाधि से सज ग‌इनी।।
धीरे धीरे सब छुटत चल ग‌इल।
जिनिगी एगो तमाशा बन ग‌इल।।
गाँव छुटल, घर छुटल।
खेत आउर पथार छुटल।।
हित छुटल, नाता छुटल।
जिला आउर जवार छुटल।।
बाप छुटल, माई छुटल।
बिअहल आपन लुगाई छुटल।।
काका काकी, सगरो नाता।
आपन सहोदर भाई छुटल।।
अइसन एगो बेयार बहल।
संगे अपना कुछ ना रहल।।
देखा देखी नकल क‌इनी।
कमाये खातिर परदेश अइनी।।
घर के रोटी बाउर लागल।
तंदूरी के इच्छा जागल।।
पढ़ल लिखल बेकार भ‌इल।
नौकरी खोजत दिन ग‌इल।।
धाका खात जिनिगी ओरात बा।
घर छोड़ला के माजा अब बुझात बा।।
खटला से चैन मिलत नइखे।
गाछी तर के हवा मिलत नइखे।।
शहर में शुद्ध हवा कहाँ से आई।
अइसन बुझाता दम घुट जाई।।
ना आपन संगी बा।
ना कोई साथी बा।।
ना ओइसन पीपल के छांव बा।
ना उ बैठक चौपाटी बा।।
एगो प‌इसा कमाये खातिर।
मन इ सब दिन दिखला दिहलस।।
मनवा अब कुहकत बाटे।
सब सुख चैन भुला दिहलस।।
गाँव गिरान के फोटो देख।
मन खुब ललचात बा।।
चिकन खातिर शहर में रहीं, या।
गाँव आ जाईं, कुछ ना बुझात बा।। 
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