महर्षि वाल्मीकि : ऋषि भी,साहित्यकार भी

महर्षि वाल्मीकि : ऋषि भी,साहित्यकार भी|

सच्चिदानन्द प्रेमी
ऋषि महर्षि सभी गुणों के साथ साहित्यकार भी होते हैं ऐसा साहित्यकार जो समाज को दर्पण दिख लाने का काम करते हैं।
महर्षि वाल्मीकि भी वैदिक काल के वैसे ही ऋषि हैं जिन्होंने काव्य शास्त्र की रचना आरंभ की ।दुनिया का पहला काव्य ग्रंथ रामायण है जो महर्षि वाल्मीकि के द्वारा प्रणीत है ।महर्षि वाल्मीकि का जन्म के कई प्रसंग मिलते हैं -
मनुस्मृति 1/35 के अनुसार ये प्रचेता के पुत्र हैं । प्रचेता ,वशिष्ठ ,भृगु, नारद के सहोदर भाई हैं ।
प्रचेतसं वशिष्ठं च भृगु नारदमेव च ॥
बाल्मीकि रामायण के 7/ 96 ,18/5,13/16 में इन्होंने स्वयं अपने को प्रचेता का पुत्र कहा है
अध्यात्म रामायण के 7/7/31 के अनुसार . प्रचेता के पुत्र हैं ।परंतु इनका पालन-पोषण एक निषाद के घर में हुआ।- बाल्मीकि रामायण पृ॰4,गीता प्रेस।
बाल्मीकि का रचना काल-; विभिन्न विद्वानों ने 7 वीं शताब्दी ईसा पूर्व के शुरुआती चरण को ही रचनाकाल माना है । कुछ भारतीय कहते हैं कि यह 700 ई पू से पहले लिखा गया। उसके पीछे युक्ति यह है कि महाभारत जो इसके पश्चात आया बौद्ध धर्म के बारे में मौन है यद्यपि उसमें जैन, शैव, पाशुपत आदि अन्य परम्पराओं का वर्णन है।[5] अतः रामायण गौतम बुद्ध के काल के पूर्व का होना चाहिये। भाषा-शैली से भी यह पाणिनि के समय से पहले का होना चाहिये। पर यह धारणा विवादास्पद है।
“ रामायण का पहला और अन्तिम कांड संभवत: बाद में जोड़ा गया था।
रामायण का समय त्रेतायुग का माना जाता है। हिन्दू कालगणना चतुर्युगी व्यवस्था पर आधारित है जिसके अनुसार अवधि को चार युगों में बाँटा गया है- सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग एव कलियुग जिनकी प्रत्येक चतुर्युग (४३,२०,००० वर्ष) के बााद पुनरावृत्ति होती है। एक कलियुग ४,३२,००० वर्ष का, द्वापर ८,६४,००० वर्ष का, त्रेता युग १२,९६,००० वर्ष का तथा सतयुग १७,२८,००० वर्ष का होता है। इस गणना के अनुसार रामायण का समय न्यूनतम ८,७०,००० वर्ष (वर्तमान कलियुग के 5,118 वर्ष + बीते द्वापर युग के ८,६४,००० वर्ष) सिद्ध होता है।
रामायण मीमांसा के रचनाकार धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी ,गोवर्धन पीठ, पुरी के शंकराचार्य ,पं० ज्वालाप्रसाद मिश्र, श्रीराघवेंद्रचरितम् के रचनाकार श्रीभागवतानंद गुरु आदि के अनुसार श्रीराम अवतार श्वेतवाराह कल्प के सातवें वैवस्वत मन्वन्तर के चौबीसवें त्रेता युग में हुआ था जिसके अनुसार श्रीरामचंद्र जी का काल लगभग पौने दो करोड़ वर्ष पूर्व का है। इसके सन्दर्भ में मानस पीयूष, भुशुण्डि रामायण, पद्मपुराण, हरिवंश पुराण, वायु पुराण, संजीवनी रामायण एवं अन्य पुराणों से प्राप्त प्रमाण विचारणीय हैं। परन्तु इतना तो स्पष्ट है कि रामायण की रचना श्री राम के समय में ही हुई थी ।
भगवान बाल्मीकि से जुड़ी कथाएँ सर्व बिदित हैं । बचपन के बाल्मीकि ,रत्नाकर प्रचेता के पुत्र होकर भी कैसे निषाद हुए और जंगल मैं डाकुओं के सरगना बन गए ।महर्षि नारद का पधारना उनसे उनकी बीणा छिनना,ऊनका उपदेश देना,घरवालों से उस आदेश का सत्यापन और फिर घनघोर तपस्या करना कहानी के रूप में सर्व बिदित है ।तपस्या में समाधिस्त होने से देह-दशा बिसर गई,शरीर पर दीमक (बल्मीक) जम जाने कारण रत्नाकर बाल्मीकि हुए ।
एक दिन नारद जी ने आकर इन्हें राम कथा सुनाई ।यह वही कथा थी जो भगवान शंकर ने जगत- जननी पार्वती को सुनाई थी ।
नारद जी के जाने के बाद महर्षि बाल्मीकि अपने पटु शिष्य भरद्वाज को साथ लेकर गङ्गा की ओर चल दिए गङ्गा के पहले ही तमसा के पङ्क रहित घाट और निर्मल जलधारा को देख कर स्नान की ईच्छा से जल प्रवाह मे जाना ही चाहते थे कि उनकी नजर एक क्रौंच पक्षी के जोड़े की मिथुनावस्था पर पड़ी।उसी क्षण एक ब्याधे के तीर से नर क्रौंच को मरते एवं मादा को छटपटाते देखा ।करुणा एवं क्रोध के समन्वय से उनके मुख से एक श्लोक निकल गया-
मा निषाद प्रतिष्ठांत्वमगमःशाश्वतीः समा।
यत् त्क्रौंच निथुनादेकमवधीः काममोहितम्॥बा रा 1/2/15
बस ,स्नान कर भरद्वाज से कर्तब्य-अकर्तब्य पर चिन्ता -चिन्तन करते आश्रम पहूंचे ।फिर ब्रह्मा जी पधारे और इन्हें इसी पंक्ति को आधार बना कर सबसे उत्तम चरित्र वाले श्री राम को चरित्र नायक मान कर रामायण लिखने को कहा ।
महर्षि बाल्मीकि ने रामायण की रचना इस प्रकार की ।
संगति के प्रभाव से ब्राह्मण कुमार डाकू बनता है,ब्याधा बनता है और उसी कर्म की करुणा से महर्षि बनता है ।इसीलिए कहा गया है-
संगत से गुण होत है संगत से गुण जात॥डॉ सच्चिदानन्द प्रेमी
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