शिखंडी को एक यक्ष ने दिया था पुरुषत्व

शिखंडी को एक यक्ष ने दिया था पुरुषत्व

(हिफी डेस्क-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
रामायण अगर हमारे जीवन में मर्यादा का पाठ पढ़ाती है तो श्रीमद् भागवत गीता जीवन जीने की कला सिखाती है। द्वापर युग के महायुद्ध में जब महाधनुर्धर अर्जुन मोहग्रस्त हो गये, तब उनके सारथी बने योगेश्वर श्रीकृष्ण ने युद्ध मैदान के बीचोबीच रथ खड़ाकर उपदेश देकर अपने मित्र अर्जुन का मोह दूर किया और कर्तव्य का पथ दिखाया। इस प्रकार भगवान कृष्ण ने छोटे-छोटे राज्यों में बंटे भारत को एक सशक्त और अविभाज्य राष्ट्र बनाया था। गीता में गूढ़ शब्दों का प्रयोग किया गया है जिनकी विशद व्याख्या की जा सकती है। श्री जयदयाल गोयन्दका ने यह जनोपयोगी कार्य किया। उन्होंने श्रीमद भागवत गीता के कुछ गूढ़ शब्दों को जन सामान्य की भाषा में समझाने का प्रयास किया है ताकि गीता को जन सामान्य भी अपने जीवन में व्यावहारिक रूप से उतार सके। -प्रधान सम्पादक

प्रश्न-भीमसेन के ‘भीमकर्मा’ और ‘वृकोदर’ नाम कैसे पड़े एवं उनके पौण्ड्रनामक शंख को महाशंख क्यों बतलाया गया?

उत्तर-भीमसेन बड़े भारी बलवान थे, उनके कर्म ऐसे भयानक होते थे कि देखने-सुनने वाले लोगांे के मन में अत्यन्त भय उत्पन्न हो जाता था; इसीलिए ये ‘भीमकर्मा’ कहलाने लगे। इनके भोजन का परिणाम बहुत अधिक होता था और उसे पचाने की भी इनमें बड़ी शक्ति थी इसलिए इन्हें ‘वृकोदर’ कहते थे। इनका शंख बहुत बड़े आकार का था और उससे बड़ा भारी शब्द होता था, इसलिये उसे ‘महाशंख’ कहा गया है।

अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रों युधिष्ठिरः।

नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ।। 16।।

प्रश्न-युधिष्ठिर को ‘कुन्तीपुत्र’ और ‘राजा’ कहने का क्या अभिप्राय है?

उत्तर-महाराज पाण्डु के पाँच पुत्रों में युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन तो कुन्ती से उत्पन्न हुए थे और नकुल तथा सहदेव माद्री से। इस श्लोक में नकुल और सहदेव के नाम आये हैं; युधिष्ठिर और नकुल-सहदेव की माताएँ भिन्न-भिन्न थीं, इसी बात को जानने के लिए युधिष्ठिर को ‘कुन्ती पुत्र’ कहा गया है। तथा इस समय राज्य भ्रष्ट होने पर भी युधिष्ठिर ने पहले राजसूय यज्ञ में राजाओं पर विजय प्राप्त करके चक्रवर्ती साम्राज्य की स्थापना की थी, संजय को विश्वास है कि आगे चलकर वे ही राजा होंगे और इस समय भी उनके शरीर में समस्त राजचिन्ह वर्तमान है; इसलिये उनको ‘राजा’ कहा गया है।

काश्यश्च परमेष्वासः शिखण्डी च महारथः।

धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः।। 17।।

द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वशः पृथिवीपते।

सौभद्रश्च महाबाहुः शंखान्दध्मुः पृथक्पृथक्।। 18।।

प्रश्न-काशिराज, धृष्टद्युम्न विराट, सात्यकि, द्रुपद तथा द्रौपदी के पाँचों पुत्र और अभिमन्यु का तो परिचय पहले प्रासंगिक रूप में मिल चुका है। शिखण्डी कौन थे और इनकी उत्पत्ति कैसे हुई थी?

उत्तर-शिखण्डी और धृष्टद्युम्न दोनों ही राजा दु्रपद के पुत्र थे। शिखण्डी बड़े थे, धृष्टद्युम्न छोटे। पहले राजा दु्रपद के कोई सन्तान नहीं थी, तब उन्होंने सन्तान के लिये आशुतोश भगवान् शंकर की उपासना की थी। भगवान् शिवजी के प्रसन्न होने पर राजा ने उनसे सन्तान की याचना की, तब शिवजी ने कहा-‘तुम्हें एक कन्या प्राप्त होगी।’ राजा द्रुपद बोले-भगवन्! मैं कन्या नहीं चाहता, मुझे तो पुत्र चाहिये।’ इस पर शिवजी ने कहा-‘वह कन्या ही आगे चलकर पुत्र रूप में परिणत हो जायेगी।’ इस वरदान के फलस्वरूप राजा द्रुपद के घर कन्या उत्पन्न हुई। राजा को भगवान् शिव के वचनों पर पूरा विश्वास था, इसलिये उन्होंने उसे पुत्र के रूप में प्रसिद्ध किया। रानी ने कन्या को सबसे छिपाकर असली बात किसी पर प्रकट नहीं होने दी। उस कन्या का नाम भी मंर्दों का-सा ‘शिखण्डी’ रक्खा और उसे राजकुमारों की-सी पोशाक पहनाकर यथाक्रम विधिपूर्वक विद्याध्ययन कराया। समय पर दशार्णदेश के राजा हिरण्यवर्मा की कन्या से उसका विवाह भी हो गया। हिरण्यवर्मा की कन्या जब ससुराल में आयी तब उसे पता चला कि शिखण्डी पुरुष नहीं है, स्त्री है। तब वह बहुत दुःखित हुई और उसने सारा हाल अपनी दासियों द्वारा अपने पिता राजा हिरण्यवर्मा को कहला भेजा। राजा हिरण्यवर्मा को दु्रपद पर बड़ा ही क्रोध आया और उसने द्रुपद पर आक्रामण करके उन्हें मारने का निश्चय कर लिया। इस संवाद को पाकर राजा दु्रपद युद्ध से बचने के लिये देवाराधन करने लगे। इधर पुरुष वेषधारी उस कन्या को अपने कारण पिता पर इतनी भयानक विपत्ति आयी देखकर बड़ा दुःख हुआ और वह प्राण-त्याग का निश्चय करके चुपचाप घर से निकल गयी। वन में उसकी स्थूणाकर्ण नामक, एक ऐश्वर्यवान् यक्ष से भेंट हुई। यक्ष ने दया करके कुछ दिनों के लिये उसे अपना पुरुषत्व देकर बदले में उसका स्त्रीत्व ले लिया। इस प्रकार शिखण्डी स्त्री से पुरुष हो गया और अपने घर पर आकर माता-पिता को आश्वासन दिया और श्वशुर हिरण्यवर्मा को अपने पुरुषत्व की परीक्षा देकर उन्हें शान्त कर दिया। पीछे से कुबेर के श्राप से स्थूणाकार्ण जीवन भर स्त्री रह गये, इससे शिखण्डी को पुरुषत्व लौटाना नहीं पड़ा और वे पुरुष बने रहे। भीष्मपितामह को यह इतिहास मालूम था, इसी से वे उन पर शस्त्र-प्रहार नहीं करते थे। ये शिखण्डी भी बड़े शूरवीर, महारथी योद्धा थे। इन्हीं को आगे करके अर्जुन ने पितामह भीष्म को मारा था।

प्रश्न-इन सभी ने अलग-अलग शंख बजाये, इस कथन में भी कोई खास बात है?

उत्तर-‘सर्वशः’ शब्द के द्वारा संजय यह दिखलाते हैं कि श्रीृकृष्ण, पाँचों पाण्डव और काशिराज आदि प्रधान योद्धाओं के जिनके नाम लिये गये हैं-अतिरिक्त पाण्डव सेना में भी रथी, महारथी और अतिरथी वीर थे, सभी ने अपने-अपने शंख बजाये यही खास बात है।

स घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत्।

नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलो व्यनुनादयन्।। 19।।

प्रश्न-इस श्लोक का क्या भाव है?

उत्तर-पाण्डव सेना में जब समस्त वीरों के शंख एक ही साथ बजे, तब उनकी ध्वनि इतनी विशाल, गहरी, ऊँची और भयानक हुई कि समस्त आकाश तथा पृथ्वी उससे व्याप्त हो गयी। इस प्रकार सब ओर उस घोर ध्वनि के फैलने से सर्वत्र उसकी प्रतिध्वनि उत्पन्न हो गयी, जिससे पृथ्वी और आकाश गूँजने लगे। उस ध्वनि को सुनते ही दुर्योधनादि धृतराष्ट्र पुत्रों के और उनके पक्ष वाले अन्य योद्धाओं के हृदयों में महान् भय उत्पन्न हो गया, उनके कलेजे इस प्रकार पीड़ित हो गये मानो उनको चीर डाला गया है।

अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्रा धार्तराष्ट्रान कपिध्वजः।

प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डवाः।। 20।।

हृषीकेशं तदा वाक्यमिद्माह महीपते।

अर्जुन उवाच

सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत ।। 21।।

प्रश्न-अर्जुन को कपिध्वज क्यों कहा गया?

उत्तर-महावीर हनुमान्जी भीमसेन को वचन दे चुके थे इसलिये वे अर्जुन के रथ की विशाल ध्वजा पर विराजित रहते थे और युद्ध में समय-समय पर बड़े जोर से गरजा करते थे। यही बात धृतराष्ट्र को याद दिलाने के लिए संजय ने अर्जुन के लिये ‘कपि ध्वज’ विशेषण का प्रयोग किया है।

प्रश्न-अर्जुन ने मोर्चा बाँधकर डटे हुए धृतराष्ट्र सम्बन्धियों को देखकर शंख चलने की तैयारी के समय धनुष उठा लिया, इस कथन का स्पष्टीकरण कीजिये? उत्तर-अर्जुन ने जब यह देखा कि दुर्योधन आदि सब भाई कौरब-पक्ष के समस्त योद्धाओं सहित युद्ध के लिए सज-धजकर खड़े हैं और शस्त्र प्रहार के लिये बिल्कुल तैयार हैं, तब अर्जुन के मन में भी वीर-रस जाग उठा तथा इन्होंने भी तुरंत अपना गाण्डीव धनुष उठा लिया। -
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