उद्धव का मुर्मू को समर्थन

उद्धव का मुर्मू को समर्थन

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
महाराष्ट्र में राजनीति ने जिस तरह से करवट ली, वो अपेक्षित तो नहीं थी लेकिन आश्चर्यजनक भी नहीं कही जा सकती। शिवसेना, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने मिलकर महाविकास अघाड़ी (एमवीए) की सरकार तो बना ली थी लेकिन शिवसेना की विचारधारा से बाकी दोनों पार्टियां सहमत नहीं थीं। इसीलिए कांगे्रस के नेता तो खुलकर कह रहे थे कि यह सरकार पूरे पांच साल नहीं चलेगी। एनसीपी नेता शरद पवार अब भी कह रहे कि अगला विधानसभा चुनाव तीनों घटक दल मिलकर लड़ें लेकिन वे यह भी कह रहे कि एनसीपी मुंबई निकाय चुनाव सक्रियता से लड़ेगी। उन्हांेने अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को शहर में पार्टी को मजबूत करने का निर्देश भी दिया है। इसलिए उद्धव ठाकरे का राष्ट्रपति पद के लिए राजग प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देना उनकी राजनीतिक दूरदिर्शता का परिचय देता है। कुछ लोग यह कहने लगे कि उद्धव का यह कदम भाजपा से फिर से जुड़ने का संकेत है लेकिन उद्धव इतनी जल्दी भाजपा से नहीं जुड़ेंगे। उन्होंने अपनी शिवसेना को और ज्यादा तोड़ने से बचाने का यह प्रयास किया है। पिछले दिनों उद्धव ठाकरे ने अपने सांसदों की बैठक बुलाई थी। इस बैठक में कई सांसद शामिल नहीं हुए थे। इसका कारण यही बताया जा रहा था कि वे विपक्षी दलों के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा का समर्थन नहीं करना चाहते हैं। इस प्रकार उद्धव ठाकरे ने उस मुद्दे को ही समाप्त कर दिया। इसी बीच विपक्षी दलों के प्रत्याशी यशवंत सिन्हा ने बयान जारी किया है कि अगर वह राष्ट्रपति बने तो संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) को लागू नहीं होने देंगे। शिवसेना पहले से ही सीएए का समर्थन कर रही है। इसलिए उद्धव ठाकरे को भी द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने का एक कारण मिल गया है।

राष्ट्रपति पद के लिए एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना ने समर्थन देने के लिए हामी भर दी है। उद्धव खेमे के सांसदों ने द्रौपदी मुर्मू को अपना समर्थन देने के लिए उद्धव से अपील की थी। गौरतलब है कि 11 जुलाई को शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरें ने एक बैठक बुलाई थी जिसमें 7 सांसद नहीं शामिल हुए। इसके पीछे की वजह द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने को लेकर बतायी गयी। वहीं बैठक में शामिल हुए उद्धव की शिवसेना के कई सांसद एनडीए उम्मीदवार को अपना समर्थन देने के पक्ष में थे। एनडीए उम्मीदवार को समर्थन करके ये सांसद भाजपा से बिगड़े संबंधों को भी सुधारने की दिशा में एक संकेत देना चाहते हैं। राजग उम्मीदवार को अपना समर्थन देने के बाद उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे गुट के साथ-साथ पूर्व सहयोगी भाजपा के साथ सुलह समझौते की संभावना भी बढ़ी है। राजनीतिकों का कहना है कि महा विकास आघाड़ी (एमवीए) के अपने सहयोगियों से अलग जाकर ठाकरे ने दिखाया है कि मुर्मू को समर्थन किये जाने से भविष्य में मेल-मिलाप के लिए दरवाजे खुले रह सकते है। वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद को लेकर ठाकरे का भारतीय जनता पार्टी से मतभेद हो गया था। जब शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के ज्यादातर विधायकों ने पिछले महीने ठाकरे के नेतृत्व के खिलाफ विद्रोह किया था, तो उन्होंने दावा किया था कि वे भाजपा के साथ ‘‘स्वाभाविक गठबंधन’’ को फिर से बनाना चाहते हैं। उद्धव ठाकरे की सरकार गिरने और शिंदे के भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री बनने के बाद, राहुल शेवाले जैसे शिवसेना सांसदों ने खुले तौर पर ठाकरे से राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए उम्मीदवार का समर्थन करने का आग्रह किया था।

हालांकि एक राजनीतिक पर्यवेक्षक का मानना है कि ठाकरे के फैसले के ज्यादा मतलब नहीं निकाले जाने चाहिए। शिवसेना ने कई बार एक अलग रुख अपनाया था, तब भी जब वह भाजपा की सहयोगी थी। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) अध्यक्ष शरद पवार ने गत दिनों कहा था कि वह चाहते हैं कि तीन एमवीए सहयोगी-ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस- सभी चुनाव एक साथ मिलकर लड़ें, लेकिन 13 जुलाई को उन्होंने कहा कि राकांपा मुंबई निकाय चुनाव सक्रियता से लड़ेगी और उन्होंने अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं से शहर में राकांपा को मजबूत करने का आह्वान किया। महाराष्ट्र से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रत्नाकर महाजन ने कहा कि वह शिवसेना के फैसले से हैरान नहीं हैं। उन्होंने कहा, ‘‘शिवसेना भाजपा के साथ प्रतिस्पर्धा कर रही है कि कौन अधिक हिंदुत्ववादी पार्टी है। शिवसेना को यह साबित करना होगा कि वह अपना राजनीतिक आधार बनाए रखने के लिए भाजपा से आगे है। महाजन ने कहा कि केंद्रीय जांच एजेंसियों की धमकी एक और कारक है। उन्होंने कहा, ‘‘एमवीए का गठन एक राजनीतिक और वैचारिक गलती थी और इसकी सरकार पूरे कार्यकाल तक नहीं चल पाती। मैंने पहले भी पार्टी मंचों पर यह बात कही थी। राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी को समर्थन को लेकर उद्धव ठाकरे को एक मुद्दा मिल गया। विपक्ष के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा ने 13 जुलाई को कहा कि अगर वह निर्वाचित होते हैं तो वह सुनिश्चित करेंगे कि नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) लागू न हो। सिन्हा ने असम के सांसदों और विधायकों के साथ बातचीत करते हुए कहा कि भारतीय जनता पार्टीके नेतृत्व वाली केंद्र सरकार सीएए को अभी तक लागू नहीं कर पाई है क्योंकि इसका मसौदा जल्दबाजी में मूर्खतापूर्ण ढंग से तैयार किया गया था। उन्होंने कहा, नागरिकता असम के लिए एक बड़ा मुद्दा है और सरकार देश भर में कानून लाना चाहती है लेकिन अभी तक ऐसा नहीं कर पाई है। उन्हांेने कहा देश के संविधान को बाहरी ताकतों से नहीं, सत्ता में बैठे लोगों से खतरा है। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा, पहले सरकार ने कोविड-19 महामारी का बहाना दिया, लेकिन अब भी वे इसे लागू नहीं कर पाए हैं क्योंकि यह जल्दबाजी में मूर्खतापूर्ण तरीके से तैयार किया गया अधिनियम है। यशवंत सिन्हा ने कहा, हमें देश के संविधान को बचाना होगा। यदि मैं राष्ट्रपति निर्वाचित होता हूं, तो मैं यह सुनिश्चित करूंगा कि सीएए लागू नहीं हो। सिन्हा 18 जुलाई को राष्ट्रपति पद के लिए होने वाले चुनाव के मद्देनजर असम के विधायकों और सांसदों का समर्थन हासिल करने के लिए इस समय राज्य के दौरे पर आए हुए हैं।इससे पहले सिन्हा ने कहा था कि देश को ‘मौन राष्ट्रपति’ की नहीं, बल्कि ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता है जो अपने नैतिक मूल्यों और विवेक का इस्तेमाल करें। सिन्हा ने भाजपा नीत केंद्र सरकार पर अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग करने का आरोप लगाते हुए यह टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि अगर वह चुने जाते हैं तो वह प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) और आयकर विभाग जैसी केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग को रोकेंगे। सिन्हा ने कहा कि उन्होंने प्रशासन और सार्वजनिक जीवन में 60 साल बिताए हैं। उन्होंने कहा, इन 60 वर्षों में, मैंने कभी भी सरकारी एजेंसियों का इतना आतंक नहीं देखा, जितना मैं अभी देख रहा हूं। राष्ट्रपति पद के लिए एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू ने पिछले हफ्ते प्रचार करने के लिए असम का दौरा किया था और सत्ताधारी भाजपा और उसके सहयोगियों असम गण परिषद और यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल के सांसदों और विधायकों से समर्थन लेने के लिए मुलाकात की थी। श्री सिन्हा के बयान को शिवसेना की नीति के विपरीत मानते हुए उद्धव ने मुर्मू का समर्थन किया।
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