बागी ही सही पर दमदार नेता

बागी ही सही पर दमदार नेता

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

  • नगर निगम पार्षद से शुरू की राजनीति
  • राजठाकरे के पार्टी छोड़ने के बाद आये थे बाला साहेब के निकट
  • 2019 के चुनाव के बाद शिंदे को ही सीएम बनाने की थी तैयारी

महाराष्ट्र में शिवसेना को ठाकरे परिवार से छीनने वाले एकनाथ शिंदे ने बेशक बगावत की लेकिन उनकी नेतृत्व क्षमता पर कोई सवाल नहीं उठा सकता। महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में 9 फरवरी 1964 को जन्में एकनाथ के पिता संभाजी नवलू शिंदे थे। साधारण परिवार था। माता का क्या नाम था, ये लोग बता नहीं पाये। एकनाथ की शुरुआती शिक्षा न्यू इंगलिश हाईस्कूल ठाणे के पास हुई थी। अभाव के चलते स्कूली शिक्षा बीच में ही छोड़नी पड़ी। परिवार के लिए रोटी कमाने के लिए छोटे-मोटे काम करने लगे। इसी बीच अर्थात् 1980 के दशक में उन पर शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे की नजर पड़ी। बाला साहब ठाकरे इसी तरह के युवाओं को संगठित कर रहे थे। बाला साहेब ने एकनाथ को ठाणे में शिवसेना जिला प्रमुख आनंद दिधे के हवाले कर दिया। सन् 2014 में जब भाजपा-शिवसेना सरकार बनी तब मंत्री बनने के बाद एकनाथ शिंदे ने फिर से पढ़ाई शुरू की। यशवंत राव चह्वाण मुक्त विश्वविद्यालय से मराठी और राजनीति विषय में स्नातक (बीए) की डिग्री हासिल की। उन्हांेने राजनीति 1997 में ठाणे नगर निगम में पार्षद बनकर शुरू की थी। विधानसभा में सबसे पहले 2004 में पहुंचे थे और आज वह महाराष्ट्र के सबसे चर्चित नेता माने जा रहे हैं।

महाराष्ट्र में आए सियासी तूफान का केंद्र हैं एकनाथ शिंदे। शिवसेना के इतिहास में सबसे बड़ी बगावत का चेहरा बन गये हैं एकनाथ शिंदे जिन्होंने शिवसेना में ठाकरे परिवार को चुनौती दी है। महज 18 साल की उम्र में उनका राजनीतिक जीवन शुरू हुआ और शिंदे एक आम शिवसेना कार्यकर्ता के रूप में काम करने लगे। करीब डेढ़ दशक तक शिवसेना कार्यकर्ता के रूप में काम करने के बाद 1997 में शिंदे ने चुनावी राजनीति में कदम रखा। 1997 के ठाणे नगर निगम चुनाव में आनंद दिघे ने शिंदे को पार्षद का टिकट दिया। शिंदे अपने पहले ही चुनाव में जीतने में सफल रहे। वे 2001 में नगर निगम सदन में विपक्ष के नेता बने। इसके बाद 2002 में दूसरी बार निगम पार्षद बने। शिंदे का कद साल 2001 के बाद बढ़ना शुरू हुआ, जब उनके राजनीतिक गुरु आनंद दिघे का निधन हो गया। इसके बाद ठाणे की राजनीति में शिंदे की पकड़ मजबूत होने लगी। 2005 में नारायण राणे के पार्टी छोड़ने के बाद शिंदे का कद शिवसेना में बढ़ता ही चला गया। राज ठाकरे ने जब पार्टी छोड़ी तो शिंदे ठाकरे परिवार के करीब आ गए।

2004 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना ने शिंदे को ठाणे विधानसभा सीट से टिकट दिया। यहां भी शिंदे को जीत मिली। उन्होंने कांग्रेस के मनोज शिंदे को 37 हजार से अधिक वोट से मात दी। इसके बाद 2009, 2014 और 2019 में शिंदे ठाणे जिले की कोपरी पछपाखडी सीट से जीतकर विधानसभा पहुंचे। देवेंद्र फडणवीस सरकार में शिंदे राज्य के लोक निर्माण मंत्री रहे। 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद शिंदे मुख्यमंत्री पद की रेस में सबसे आगे थे। चुनाव के बाद विधायक दल की बैठक में खुद आदित्य ठाकरे ने शिंदे के नाम का प्रस्ताव रखा और वह शिवसेना विधायक दल के नेता चुने गए। इसके बाद तो उनके समर्थकों ने ठाणे में भावी मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के पोस्टर तक लगा दिए थे।

कांग्रेस और एनसीपी के दबाव में उद्धव ठाकरे का नाम आगे आया और यहीं से शिंदे के अंदर बगावत की चिंगारी पैदा हुई थी। हालांकि इसके बाद शिंदे बैकफुट पर आ गए। उद्धव सरकार में शिंदे राज्य के शहरी विकास मंत्री होने के साथ ठाणे जिले के प्रभारी मंत्री बनाए गये लेकिन उनके और उद्धव ठाकरे के बीच दूरियां बढ़ने लगीं। फरवरी 2022 में एकनाथ शिंदे के जन्मदिन पर भी उनके समर्थकों ने भावी मुख्यमंत्री के पोस्टर लगाए थे।

निजी जीवन में कई सदमें लगे। बात उस वक्त की है जब शिंदे पार्षद हुआ करते थे। इस दौरान उनका परिवार सतारा गया हुआ था। यहां एक हादसे में उन्होंने अपने 11 साल के बेटे दीपेश और 7 साल की बेटी शुभदा को खो दिया था। बोटिंग करते हुए एक्सीडेंट हुआ और शिंदे के दोनों बच्चे उनकी आंखो के सामने डूब गए थे। उस वक्त शिंदे के दूसरे बेटे श्रीकांत सिर्फ 13 साल के थे। श्रीकांत इस वक्त कल्याण लोकसभा सीट से शिवसेना सांसद हैं। इस घटना के बाद शिंदे काफी टूट गए थे। उन्होंने राजनीति तक से किनारा कर लिया था। इस दौर में भी आनंद दिघे ने उन्हें संबल दिया और सार्वजनिक जीवन में फिर से लेकर आए। 2019 के विधानसभा चुनाव में एकनाथ शिंदे ने जो हलफनामा दिया था उसके अनुसार उनके ऊपर कुल 18 आपराधिक मामले चल रहे हैं। इनमें आग या विस्फोटक पदार्थ से नुकसान पहुंचाने, गैरकानूनी तरीके से इकट्ठा हुई भीड़ का हिस्सा होना, सरकारी कर्मचारी के आदेशों की अवहेलना करने जैसे आरोप हैं। इस हलफनामे के मुताबिक शिंदे के पास कुल 11 करोड़ 56 लाख से ज्यादा की संपत्ति है। चुनावी हलफनामे के मुताबिक शिंदे के पास कुल छह कारें हैं। इनमें से तीन शिंदे के नाम और तीन उनकी पत्नी के नाम पर हैं। शिंदे की पत्नी के नाम पर एक टैम्पो भी है। चुनावी हलफनामे में शिंदे ने खुद को कॉन्ट्रैक्टर और बिजनेसमैन बताया है। उनकी पत्नी भी कंस्ट्रक्शन का काम करती हैं। शिंदे ने विधायक के तौर पर मिलने वाली सैलरी, घरों से आने वाले किराये और इंटरेस्ट से होने वाली कमाई को अपनी आय का स्रोत बताया है। शिंदे खेमे सहित 288 सदस्यीय विधानसभा में शिवसेना के 55 विधायक हैं। दलबदल विरोधी नियम से सुरक्षित रहने के लिए शिंदे को कम से कम 36 विधायकों की जरूरत है। एकनाथ शिंदे और 50 विधायकों का दावा है कि उन्होंने आधिकारिक तौर पर महाराष्ट्र के राज्यपाल को ठाकरे सरकार से समर्थन वापस लेने के बारे में सूचित किया है। अगर ऐसा होता है तो उद्धव ठाकरे को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ सकता है। अगर सीएम उद्धव ठाकरे इस्तीफा देते हैं तो इस परिस्थिति में राज्यपाल संभवतः भाजपा से सरकार बनाने का आह्वान करेंगे। इसके बाद भाजपा को विधानसभा में बहुमत साबित करना होगा। भाजपा शिंदे के प्रति वफादार विधायकों के कथित समर्थन से आगे बढ़ सकती है। यदि उद्धव ठाकरे इस्तीफा नहीं देते हैं, तो उन्हें विधानसभा में फ्लोर टेस्ट का सामना करना पड़ेगा।
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