मेरे साथ चल
---:भारतका एक ब्राह्मण.संजय कुमार मिश्र'अणु'
तेरे लिए
तडपता है
मेरा मन पल-पल
मानों कहता रहता है
यहाँ से उठ
और मेरे साथ चल
चलता रहता हूँ
एकदम तेरे साथ
कंधे से कंधा मिलाकर
पकड तेरा हाथ
कभी मिलाकर कदम
कहकर चल तो बस चल
जब से मिली है निगाहें
एक सी हो गई है राहे
अब एक हीं रास्ते बचे हैं
हम एक दुसरे को चाहे
साथ दे मत हाथ मल
ओ देखो अपनी मंजिल
मत बन तंगदिल
उठ अपनी आंखें खोल
मत रख इसे तंद्रिल
इच्छा जगाकर जरा मचल
जब कभी डगमगायेगी तु
तब सोंचना मत आखिर क्यूं
जब डाली पर खिलखिलायेगें फूल
तब दिखेगा रंग और फैलेगी खुश्बू
फिर मिलेगा फल
ये निराशा और भय
तुम्हे डूबा देगा है निश्चय
बस भर हूंकार दे ललकार
गर पाना है जय
आ इधर बाहर निकल
ये संघर्ष का पहाड़
खायेगा पछाड
कांप उठेगी ये धरती
मन से एकबार दहाड
कर तन-मन निर्मल
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वलिदाद,अरवल(विहार)८०४४०२
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