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पिता


पिता

(पितृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं)
पिता होता है जैसे, तरुण अरुण की किरणों का छोर
पुत्र में भर देता है जो, ऊर्जा क्षमता की ऊष्मा पोर पोर
मानो पुत्र है पतंग अभिराम, पिता है उसकी अभिनव डोर
जो कलाओं से अपनी, चढ़ाता है उसे आकाश की ओर
पिता होता नहीं है, केवल जन्मदाता
भू पर होता है वह, पुत्र का विधाता
ज्ञान प्रकाश देकर,जो अज्ञान से बचाता
कर्म कर्तव्य अनुशासन अविरल सिखाता
दुःख में रहकर भी,हम पर प्यार वरसाता
संकट बाधाओं से,अविराम पार हमें कराता
पिता होता है, उम्मीदों आशाओं का आकाश
जो देता है, जोश हौसला हिम्मत का विश्वास
पिता कराता है, संयम स्वाभिमान का आभास
देता है सपनों के आयाम को, उड़ने का अहसास
जो बच्चों की खुशी के लिए, खुद को भूल जाता है
बच्चों की चेहरे पर मुस्कान देख, फूल बन जाता है
जो हर पल साथ निभाता है, पिता के सीने से लग जाता है
कहता है 'चंद्र' पुत्र वह, जीवन में सदा सुख पाता है
पितृ देवो भव
चंद्रप्रकाश गुप्त "चंद्र"
(ओज कवि एवं राष्ट्रवादी चिंतक) अहमदाबाद, गुजरात
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