वह छोड़ गये हैं
आज नहीं है मेरे पास,
मेरे पिता की कोई वसीयत,
कोई जमीन जायदाद,
नहीं है कोई बैंक बैलेंस,
नहीं कोई छोड़ी हुई हवेली,
या साधारण सा मकान।
वह छोड़ गये है,
मेरे तन मन में अपना वजूद,
अपनी अजीम शख्शियत,
अपना अलौकिक व्यक्तित्व,
अपनी कर्मठता,ईमान,
और अपनी ऊँची शान।
करता हूँ महसूस खुद में,
उनका जूझारुपन,
उनकी दयालुता,संघर्ष,
उनका दिया अनुशासन ,
उनकी सकारात्मक सोच,
और उनका सामजिक सम्मान।
आज उनकी बदौलत,
बन पाये एक इंसान,
मिल रही राष्ट्रीय प्रतिष्ठा,
स्वस्थ हैं अपने तन, प्राण,
बढ़ रही मेरी यश कीर्ति,
हो रहा मेरा कल्याण।
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अरविन्द अकेला,पूर्वी रामकृष्ण नगर,पटना-27हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें|
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