Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

पतिपरमेश्वराय नमः

पतिपरमेश्वराय नमः

(पुष्पा पाण्डेय )
ये जो पति नामधारी प्राणी है न वो सृष्टि का सबसे अज़ूबा जीव है। दो हाथ, दो पैर, दो आँखें, दो कान, नाक के दो सुरंगनुमा छेद, उसके ठीक नीचे एक मुंह और उसके भीतर एक लम्बी सी जीभ भी, जो ज़ुबान का काम भी करती है और सभी तरह के रस लेने का भी। इतना ही नहीं एक बड़ा सा खोपड़ा और उसके भीतर भरा दिमाग नाम की मशीन भी है उसके पास । सुनते हैं कि परमात्मा ने बुद्धि भी दी है उसे। किन्तु व्यवहार के मामले में जरा पिछड़ गया था शायद । लाइन थोड़ी लम्बी थी। इसी बीच लगता है कुछ तलब हो आयी होगी- इधर-उधर की- चंचल आँखें, सदा जवानी और खूबसूरती ढूढ़ते रहने वाली आँखों ने या तो किसी और हिरणी या भैंसिनी आँखों की ओर खींच लिया होगा, या फिर खनखनाती किलकती हँसी ने कानों को बेसुध कर दिया होगा, या नथुनों में कोई प्यारा सा परफ्यूम ही घुसा चला आ रहा होगा...।
कारण जो भी हो रहा हो,मुझे तो ठीक से पता भी नहीं है,किन्तु मुझे सिर्फ पता है कि वो है बड़ा विचित्र सा प्राणी—खास कर व्यवहार के मामले में। कभी-कभी तो बिना हाथ वाले,सींग-पूंछ वाले चार पगधारी को भी मात दे जाता है। ऐसा बहुत बार होता है,जब ये निश्चय करना मुश्किल हो जाता है कि क्या परमात्मा ने बुद्धि वाला गिफ्ट इसे दिया भी था कभी, या कि अपने कमण्डलु में ही छिपाये रख छोड़ा था – किसी और को देने के लिए !
जो भी हो,ये हमारा आर्योंवाला देश है न ,जिसे फिरंगियों ने हिन्दुस्तान नाम दे दिया है, ने हम नारियों को ‘आर्यपुत्र’ कह कर सम्बोधित करना सिखाया है – किसी भी भद्र पुरुष को,खास कर अपने-अपने पतियों को। भले ही भद्रता और पौरुष का लेशमात्र चिह्न भी उसमें न हो। हालाकि ‘कमअकल’ को ‘पौरुष’ और ‘परुष’ में कोई ज्यादा फर्क तो पता नहीं होता। वैसे भी पुरुष जब परुष हो जाये,फिर बाकी ही रह जाता है नारी के लिए- जिसकी वो आश रखे ? जिसे पाने का प्रयास करे ? कोमलांगी कही जाने वाली नारी के लिए वज्र सा परुष पुरुष का आजीवन साथ निभाना,बल्कि फिल्मी स्टाइल में यूं कहें कि सात जन्मों तक का साथ निभाना कितना कठिन है- ये कोई नारी ही समझ सकती है। पुरुष भला क्या समझ पायेगा- इन गम्भीर बातों को,जो रंगबदलने में गिरगिट से सदा होड़ लगाये रहता है। बामुश्किल एक जनम का साथ निभता है और बात करते हैं- सात जनमों की—इससे भी बड़ी कोई बेतुकी बात हो सकती है क्या दुनिया में ?
क्या खूब नियम बनाया है पुरुषों ने- ज्यादातर पोथा-पुराण उन्होंने ही तो लिखे हैं। गार्गी-मैत्रेयी को भी भर पेट वेद-पुराण-दर्शन वाला ज्ञान बघारने कहाँ दिया ? “ अब चुप हो जाओ गार्गी । अगला प्रश्न यदि किया तूने तो तुम्हारा सिर फट जायेगा ”— ये क्या है ? कैसी धमकी है ? और वो निरीह सी नारी, या कहें पृथ्वी सी भार-ग्रहीता नारी,दया-क्षमा की प्रतिमूर्ति नारी— सबकुछ जानते- समझते हुए भी अंगीकार कर लेती है पुरुष को । स्वीकार कर लेती है पुरुष को। यहां तक कि सर्वस्व समर्पित कर देती है पुरुष के सामने । जरा ये भी नहीं सोंचती कि क्या होगा उसका- उसके अस्तित्व का ! उसके वज़ूद का !!
पति की वनयात्रा में स्वयं को संगिनी बना कर,जीवन-मार्ग के कांटे को फूल बनाने की चेष्टा वाली, दुर्दान्त के दमन का शिकार होने वली,अपमानित होने वाली जनक-नन्दिनी ने कभी सपने में भी सोचा होगा कि अग्नि-परीक्षिता को भी एक अदने से धोबी के कहने पर गर्भावस्था में भी उसे निष्कासित कर दिया जायेगा ! वो भी मर्यादायों के कर्णधार के द्वारा ? हद तो तब हो गयी जब सबके साक्ष्य के पश्चात् , सारे समर्थनों के बावजूद, फिर से सबके सामने परीक्षा देने की बात आयी और विवश होकर पाताल प्रवेश करना पड़ा। द्रौपदी के अपमान का परिमार्जन क्या कौरवों के वध से हो गया ? दुःशासन के रक्त से द्रौपदी ने अपने केशों को संवार कर सिर्फ भीम की प्रतिज्ञा की मान रखी,न कि उसके अपमान के घाव भर पाये। औरत की आवरु क्या कोई जख्म के निशान हैं जिसे प्लास्टिक सर्जरी करके ठीक किया जा सकता है? महाभारत का युद्ध केवल प्लास्टिक सर्जरी ही तो है। पुत्र खोयी,पौत्र खोयी,मान खोयी,आवरु खोयी,सुख-चैन खोयी- नारी ने, उस नारी ने जिसकी भृकुटिविलास मात्र से सृष्टि कांप उठती। किन्तु उसके इस शक्ति को समझा यदि तो सिर्फ गांधारी ने- एक नारी ने। पुरुष भला क्या समझ पायेगा नारी की शक्ति को,नारी की गरिमा को,नारी की महिमा को? सोचता यदि, समझता यदि, तो क्या कृष्ण को अशोच्यानन्वशोचस्त्वं...कहना पड़ता अर्जुन को ? ये पुरुष सिर्फ सोचने वाली बात नहीं सोचता, बाकी की सभी बातें तो सदा सोचते ही रहता है।
खैर, ये सब पुरानी बातों का क्या । आज तो नया युग है न। आधुनिक युग। विकसित और विकासशील दुनिया। प्रबुद्ध और सुबुद्ध लोगों का संसार। फिर भी क्या नारी की स्थिति में रत्ती भर भी फर्क आया है ? आँखें यदि हों तो खोल कर देखें। कान यदि हों तो गौर से सुने। दिमाग यदि हो तो जरा शान्त चित्त होकर विचार करें—यत्र नार्यास्तु पूज्यन्ते,रमन्ते तत्र देवता...क्या ये केवल ‘स्लोगन’ भर नहीं है ? कितना पूजित हो रही है नारी- ये सबको पता है। अनपढ़-गवांर से लेकर पढ़ी-लिखी तक, घरेलू महिला से लेकर उच्च पदस्थ मैडम तक, विकासशील भारत से लेकर विकसित अमेरिका-इंगलैंड,रुस,जापान तक की नारी – सबकी सब एक ही चक्की के पाटों में पिसने को विवश हैं। प्रताड़ना सबके साथ कमोवेश होती ही है। जाति,वर्ण,धर्म,सम्प्रदाय,देश कुछ भी विभेद नहीं कर पाता, नारी- प्रताड़ना के मामले में सब एक जैसे हैं। कापुरुष के घिनौने हबस का शिकार नारी होती है। दहेज की बलिवेदी पर नारी चढ़ती है। नारी को तो गर्भ से बाहर आने की भी इज़ाजत नहीं है। इस विकसित वैज्ञानिक युग में भी बेवकूफ को ये भी पता नहीं है कि लड़का और लड़की जनने में पुरुष ही मुख्य रुप से जिम्मेवार है, न कि नारी। वो तो भूमि है- उर्वरा भूमि। बीज तो पुरुष को ही डालना है। खेसाड़ी का बीज बो कर चना-मटर कहां से उगा लेगा ? और वैसे भी लड़की खेसाड़ी तो है नहीं,जिसे चक्की में पीस दोगे। अरे मूरख ! ये लड़की नहीं होगी,तो तुम्हारा वजूद कहां से होगा ? तुम कोई ब्रह्मा तो हो नहीं,जो दायें-बायें अंगों से सृष्टि रच दोगे।
तुम पुरष हो। शक्तिमान हो सकते हो- शक्ति को धारण करने वाले। तांवें का तार भला क्या गुमान करेगा विजली को वहन करने के सिवा ? मूल प्रकृति तो नारी ही है। इसका सम्मान करना सीखो। इसी में तुम्हारी भलाई है। तुम्हारे चारो ओर धरती से आकाश तक जो भी कुछ दीख रहा है वो सब प्रकृति ही है- नारी ही है। तुम्हारी आँखों में जो शक्ति है देखने की,तुम्हारे कानों में जो शक्ति है सुनने की, तुम्हारे ज़ुबान जो ताकत है बोलने-चीखने और गरजने की,तुम्हारी बाहों में जो ऊर्जा है प्रताड़ित करने की,तुम्हारी सांसों की डोर जो संचरित है,जिसके कारण तुम्हारा अस्तित्व है—वो सबके सब नारी-विभूति ही हैं। और अन्त में मर कर भी जहां जाओगे- मृत्यु की गोद में, वो विनाशिका-शक्ति भी नारी ही है। कुछ और नहीं। इसे समझ लो। इसे जान लो। इसके आगे नतमस्तक हो जाओ। इसी में तुम्हारा कल्याण है।

या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रुपेण संस्थिता । नमस्तस्यै। नमस्तस्यै । नमस्तस्यै नमो नमः ।। अस्तु।


हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ