न गणित बदली और न वर्णमाला
कितना जमाना बदल गया है
लोगों की सोच बदल गई है।
पर न बदली है गणीत और न
बदली है हिंदी-अंग्रेजी की वर्णमाला।
बस उन्हें कहने और समझाने में
लोगों की सोच बदल गई है।
आज भी गणित में दो जोड़ दो
चार होते है जो पहले होते थे।
फिर अंतर कहा पर आ गया
जो पहले होता था वो आज भी।
सिर्फ पश्चमि देशों की चकाचौन्ध
चलचित्रों में देखकर परिवर्तन आ गया।।
चलो हम आज मिलकर
करे अब इसका विश्लेषण।
पहले संयुक्त परिवार होते थे
जो गाँव कस्बे में प्रष्ठित होती थे।
घर का मुखिया दादाजी होते थे
जो परिवार को बांधकर रखते थे।
जिसके कारण ही परिवार में
स्नेह-प्यार बना रहता था।
जिसके चलते ही समाज में
परिवार की प्रतिष्ठा रहती थी।
और रिश्तेदारों में भी बहुत
मान सम्मान मिलता था।।
भले ही पहले के लोग
कम पढ़े लिखे होते थे।
परंतु लाखों का व्यापार
बुध्दि विवेक से करते थे।
आज कल तो सब कुछ
रेडिमेड हो गया है।
दुनियां में वस्तुओं की मांग का
बाजार भी यंत्रों से मिलता है।
हिसाब किताब आदि करने में
यंत्रों का उपयोग करते है।
और इस पर भी स्वयं को
सर्वश्रेष्ठ प्रबंधक कहते है।।
अब आप स्वयं सोच सकते है
की समय परिवर्तन की लहर का।
हमारे समाज और देश पर क्या
और किस तरह असर हो रहा है।
खुदके माँ बाँप के लिए बृध्दाश्राम
और अपनी औलाद को पलाना घर।
माँ के दूध की जगह डिब्बे का
और माँ की जगह आया है तो।
बच्चों में कहाँ से संस्कार आयेंगे
जो परिवार की परिभाषा जान पाएंगे।
क्योंकि उसे तो सब कुछ रेडिमेड में
अपने माँ बाँप से जो मिला है।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबईहमारे खबरों को शेयर करना न भूलें|
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