जो कोई समझेगा इसको
जो कोई समझेगा इसको, वह आगे बढ़ जायेगा,
केवल विरोध करने वाला, कल खड़ा पछताएगा।
कुछ के हाथ खिलौना बनकर, जो आग से खेल रहे,
घर सम्पत्ति पर बुलडोज़र, हवा जेल की खायेगा।
भूख से व्याकुल तन को, दो रोटी की आस रहे,
पीड़ित व्याकुल मन को, अध्यात्म की आस रहे।
नही तलाशता कोई जग में, भूख में छप्पन भोग,
तपती धूप में व्याकुल प्यासा, पानी की आस रहे।
क्या विरोध का कारण है, कोई नहीं बतलाता है,
तुलना करके बात बताता, सच नहीं बतलाता है।
देश जलाकर क्या पाओगे, या नौकरी मिल जाएगी,
सेना में जाने से पहले, अनुशासन नहीं बतलाता है?
कुछ विरोध के नाम पर, बस अराजकता को जन्म दे रहे,
निज स्वार्थ के चलते कुछ तो, प्रतिभाओं को मरण दे रहे।
झूठ तन्त्र का जाल बिछा कर, पहले कृषि बिल रुकवाया,
अब रोज़गार की राह में रोड़ा, बेरोज़गारी का वरण दे रहे।
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