अर्पित और प्रिंसिपल शर्ली ने दिखाई राह

अर्पित और प्रिंसिपल शर्ली ने दिखाई राह

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)

इरादे नेक हों और इच्छाशक्ति दृढ़ तो कोई भी मंजिल दुरूह नहीं हो सकती। अमेरिका में अच्छी जाॅब कर रहे अर्पित व उनकी पत्नी साक्षी और महाराष्ट्र की एक प्रिंसिपल पिल्लई शर्ली ने यही करके दिखाया। शर्ली के प्रयास से जहां कई बच्चों की शिक्षा का सपना पूरा हुआ, वहीं अर्पित और उनकी पत्नी यह सीख दे रहे हैं कि प्रकृति के संरक्षण के साथ कैसे बेहतर जवन निर्वाह भी किया जा सकता है।

अमेरिका की नौकरी छोड़ अर्पित व उनकी पत्नी भारत में कर रहे खेती

मध्यप्रदेश का एक ऐसा दम्पति है जो आईआईटी टॉपर के साथ अमेरिका में करोड़ों के पैकेज की जॉब कर चुका है। अब यह कपल अपने देश वापस लौट आया है। पति-पत्नि दोनों मिलकर पर्मा कल्चर फार्मिंग कर रहे हैं। कल्चर फार्मिंग तकनीकि के जरिए अब यह कपल फल, सब्जियां, दालें और अनाज उगा रहा है।

उज्जैन के बड़नगर में रहने वाले वाले अर्पित माहेश्वरी अपनी पत्नी साक्षी माहेश्वरी के साथ अमेरिका से मिले डेढ़ करोड़ के पैकेज की जॉब छोड़ उज्जैन में डेढ़ एकड़ जमीन खरीदकर कर पर्मा कल्चर फार्मिंग कर रहे हैं। राजस्थान के जोधपुर में रहने वाले अर्पित माहेश्वरी बताते हैं कि आईआईटी मुंबई से कम्प्यूटर इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन किया। प्रारम्भिक परीक्षा में ऑल इंडिया में सेकंड रैंक थी। मुंबई में फिजिक्स ओलंपियाड 2007 में साक्षी से मुलाकात हुई थी। इस ओलंपियाड में दोनों को गोल्ड मेडल मिला था। साक्षी ने प्प्ज् दिल्ली से ग्रेजुएशन किया है। साल 2013 में हमारी शादी हुई। दोनों ने बेंगलुरु में जॉब की और फिर अमेरिका चले गए। अर्पित ने बताया कि हम 2016 में दक्षिण अमेरिका की यात्रा पर गए थे। इस दौरान हमने दुनिया के सबसे खूबसूरत जंगलों, द्वीपों और पहाड़ों पर देखा कि विकास और आधुनिकीकरण के नाम पर प्रकृति को समाप्त किया जा रहा है। इस सोच ने हमें अंदर से झकझोर कर रख दिया। उसी समय तय कर लिया कि हमें अपना बाकी जीवन प्रकृति के साथ तालमेल बैठाने के बेहतर तरीके की तलाश में बिताना है। हम समझ नहीं पा रहे थे क्या करेंगे और कैसे होगा लेकिन इतना तय हो गया था कि कुछ अलग करने की जरूरत है। करोड़ों के पैकेज को छोड़कर जहां पैसे और स्टेटस से ज्यादा जरूरी रहेगा हमारा स्वास्थ्य और खुशी। इसके बाद हमने नौकरी छोड़कर प्रकृति से जुड़ने के लिए स्थाई खेती करने का फैसला कर लिया। वहां से लौटे तो उज्जैन जिले के बड़नगर कस्बे में डेढ़ एकड़ जमीन खरीदकर खेती शुरू कर दी। अर्पित और साक्षी ने बताया कि अभी हम स्थाई खेती (पर्मा कल्चर) का मॉडल तैयार करने में जुटे हैं। पर्मा कल्चर कॉन्सेप्ट में हम बायो डायवर्सिटी सिस्टम के मुताबिक खेती कर रहे हैं। हमने डेढ़ एकड़ जमीन पर 75 प्रकार के पौधे लगाए हैं। इनमें आधे फलदार हैं, केला, पपीता, अमरूद, सीताफल, अनार, संतरा, करोंदा, पालसा, गूंदा, शहतूत जैसे। एक फलदार पौधे के साथ चार जंगली पौधे सपोर्ट ट्री के तौर पर लगाए हैं, जो जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाते हैं। हम दोनों पति-पत्नी ने 5 साल पहले तक कभी खेत में पांव नहीं रखा था। हम तीन घंटे की ऑनलाइन जॉब करते हैं, उससे आर्थिक जरूरतें पूरी होती हैं, बाकी समय खेती को दे रहे हैं।

बड़नगर में काली मिट्टी होने से करंज के पेड़ का लगाए हैं। करंज हवा से नाइट्रोजन खींचकर जमीन में ट्रांसफर करता है। करंज के पत्तों से बने काढ़े से पत्तों में कीड़े लगने पर छिड़काव किया जाता है। बायोमास के तौर पर करंज की टहनियों को काट-काट कर फलदार पौधों के पास बिछा देते हैं। यह पत्तियां जमीन में खाद का काम करती हैं। ऐसे जैव विविधता के आधार पर खेती के स्थाई सिस्टम का मॉडल बनाकर दुनिया के सामने पेश करना चाहते हैं। पर्माकल्चर नाम से एक सोच और तकनीक है, जो ऑस्ट्रेलिया से विश्व भर में फैली है। इसमें जमीन को एक ऐसे तरीके से विकसित किया जाता है कि निरंतर जमीन उपजाऊ बनी रहे और बंजर न बने।

शर्ली पिल्लई ने बुझने नहीं दी शिक्षा की ज्योति

कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण हर क्षेत्र की व्यवस्था चरमरा गई है। खास कर शिक्षा जगत का बुरा हाल है। छात्रों को माता-पिता की नौकरी छूटने के कारण शिक्षा से हाथ धोना पड़ रहा है। ऐसे में महाराष्ट्र के एक स्कूल की प्रिंसिपल शर्ली पिल्लई बच्चों की शिक्षा के लिए फंड जुटाने में कामयाबी हासिल की है। पिल्लई उन छात्रों की 95 फीसद से अधिक फीस का भुगतान कर चुकी हैं, जिनके माता-पिता नौकरी छूटने या वेतन में कटौती की वजह से फीस का भुगतान नहीं कर पा रहे थे।

मुंबई के पवई इंग्लिश हाई स्कूल की प्रिंसिपल पिल्लई ने कहा कि कुछ दानदाता भविष्य में भी योग्य छात्रों की पढ़ाई के लिए आर्थिक मदद देने के लिए इच्छुक हैं। उन्होंने कहा कि मैं हैरान थी कि कैसे लोग स्वेच्छा से मदद के लिए आगे आए। यह हमारे लिए बहुत मायने रखता था। पिल्लई ने कहा कि वह व्यक्तिगत और गैर सरकारी संगठनों द्वारा किए गए दान की मदद से एक करोड़ रुपये जुटाने में कामयाब रही हैं। उन्होंने कहा कि स्कूल के शिक्षकों ने जरूरतमंद छात्रों की पहचान करने में अहम भूमिका निभाई। दानकर्ता ज्यादातर अकादमिक रूप से उज्ज्वल छात्रों के लिए भुगतान करना चाहते थे। पिल्लई ने बताया कि हमारे पास कई औसत छात्र थे, जिन्हें पढ़ाई के लिए धन की आवश्यकता थी। पिल्लई ने कहा, ‘फंड जुटाने के साथ-साथ राज्य बोर्ड स्कूल ने अभिभावकों को आंशिक शुल्क भुगतान करने के लिए प्रोत्साहित करने का काम सौंपा था। स्कूल की वार्षिक फीस लगभग 35,000 रुपये है। माता-पिता की आर्थिक तंगी वास्तविक थी, लेकिन वे फीस का भुगतान करने की आवश्यकता को समझते थे। हमने उनसे कुछ राशि का भुगतान करने और बाकी को हम पर छोड़ने के लिए कहा।’ स्कूल ट्रस्टी, प्रशांत शर्मा ने 25 फीसदी शुल्क में कटौती की, हालांकि राज्य ने स्कूलों से 15 प्रतिशत शुल्क में कटौती के लिए कहा था। पिल्लई ने कहा, ‘हमने तीन साल से फीस नहीं बढ़ाई है और 2022-23 में भी इसी तरह की फीस स्ट्रक्चर को जारी किया। पिल्लई ने कहा कि फीस नहीं जमा कर पाना माता-पिता की मजबूरी थी। हम चाहते थे कि बकाया फीस के चलते छात्रों की पढ़ाई न रुके। हमने स्कूल प्रबंधन के साथ चर्चा की। स्कूल प्रबंधन ने 25 प्रतिशत फीस माफ कर दी। मेरे दिमाग में क्राउड फंडिंग का आयडिया आया। हैरानी यह कि हमें उम्मीद से ज्यादा समर्थन मिला। लोगों ने दिल खोल कर दान किया। कुछ एनजीओ ने भी मदद की। पिल्लई ने कहा कि हमें लगता था कि यह काम आसान नहीं है। होनहार बच्चों की फीस चुकाने के लिए दानदाता तैयार हो गये।
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