अपनों के ही ‘पत्थर’ से घायल चैहान

अपनों के ही ‘पत्थर’ से घायल चैहान

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान समाचार फीचर सेवा)
आदमी अपनों से ही हारता है। मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने कमलनाथ से सरकार छीनकर यह साबित कर दिया था कि राजनीति के वे बड़े तीरंदाज हैं लेकिन अब उनकी पार्टी की वरिष्ठ नेता उमा भारती का एक पत्थर ही उनको घायल कर रहा है। दरअसल सुश्री उमा भारती ने करीब एक महीने पहले भोपाल में एक शराब की दुकान पर एक पत्थर फेंक कर शराब बंदी के लिए जन आंदोलन शुरू करने को कहा था। शराब बंदी इतनी आसान नहीं है। बिहार में नीतीश कुमार की असफलता के पीछे शराबबंदी कानून भी माना जा रहा है। इसीलिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने उमा भारती के उस ‘पत्थर’ को नजरंदाज करके नयी आबकारी नीति बनायी है। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस उमा भारती के उसी पत्थर को चैहान सरकार पर फेंक रहा है। राज्य में अगले साल ही विधानसभा के चुनाव होने हैं और राजनीतिक जानकारों के अनुसार विधानसभा चुनाव तक कांग्रेस इस मुद्दे को जीवित रखना चाहेगी।

करीब एक महीने पहले भोपाल की एक शराब दुकान पर पत्थर फेंक कर शराबबंदी आंदोलन का आगाज करने वाली भाजपा की वरिष्ठ नेत्री, पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने कहा था “यह पत्थर एक चेतावनी है, एक शुरुआत है, जनप्रतिनिधि अपनी जिम्मेदारी निभाएं, नहीं तो एक बड़ा जन आंदोलन का रूप ले लेगा”। उनकी यह चेतावनी अब सच साबित होते दिख रही है। उमा भारती के पत्थर फेंकने के बाद सागर, रायसेन, भोपाल, इंदौर समेत कई स्थानों पर महिलाएं, बच्चे शराब दुकानों के खिलाफ सड़क पर उतर चुके हैं। उनकी जुबां पर नारे, हाथों में झंडे, डंडे, पत्थर हैं। कई जगह विरोध प्रदर्शनों के बीच कानून व्यवस्था की स्थिति भी निर्मित होने लगी है। खास बात यह भी है कि सरकार की शराबनीति के खिलाफ उमा के फेंके पत्थर को कांग्रेस ने लपकते हुए अपना सियासी हथियार बना लिया है। शिवराज-उमा के बीच टकराहट की आंच में वह अपनी खिचड़ी पका रही है। मप्र में 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस इसे चुनावी मुद्दा भी बना सकती है। बता दें कि दिल्ली और छत्तीसगढ़ में भाजपा कार्यकर्ता मध्यप्रदेश जैसी ही शराबनीति को लेकर सड़कों पर वहां की सरकारों की खिलाफत कर रहे हैं, लेकिन यहां पार्टी में चुप्पी है। उमा भारती पिछले दो साल से शराबबंदी को लेकर अभियान छेड़ने की बात कर सूबे की शिवराज सिंह सरकार को घेर रही हैं। भाजपा नेता बीच-बीच में उनसे मुलाकात कर, बात कर मामले को शांत कर देते थे, लेकिन अब यह दोनों नेता इस मुद्दे पर आमने-सामने आ गए हैं। उमाभारती के कानून तोड़ते हुए शराब दुकान पर पत्थर फेंकने की घटना के बाद तो उनके साथ मुख्यमंत्री शिवराज के साथ संवाद भी नहीं हुआ है।

इसके विपरीत नयी शराब नीति बन गयी। शिवराज सरकार ने 1 अप्रैल को अपनी नई शराब नीति घोषित की, तो सबसे पहले उन्हें अपनी ही पार्टी की सांसद उमा भारती की आलोचना का सामना करना पड़ा। उमा ने सोशल मीडिया पर लिखा कि “मध्यप्रदेश की नई शराबनीति में यह व्यवस्था सुनिश्चित की गई है कि लोगों को ज्यादा शराब कैसे पिलाई जाए, अहातों में ज्यादा शराब कैसे परोसी जाए। मध्यप्रदेश में नारी शक्ति इसका विरोध कर रही है। इस मसले पर मैं मध्य प्रदेश की महिलाओं, बेटियों के साथ हूं। शराबखोरी का शिकार हो गए बेटों के लिए भी चिंतित हूं। महिलाओं व बेटियों की इज्जत और बेटों की जान पर खेलकर हम राजस्व कमा रहे हैं, इस पर शर्मिंदा भी हूं”। इसके ठीक बाद उज्जैन में, फिर नर्मदापुरम में आयोजित कार्यक्रमों में शिवराज सिंह ने स्पष्ट शब्दों में घोषणा कर दी कि मध्यप्रदेश में किसी भी हालत में शराबबंदी नहीं होगी। अगर दारू बंद करने से लोग पीना छोड़ देते, तो हम कब ये काम कर देते। लेकिन हम समाज को सुधारेंगे, नशा मुक्ति के लिए अभियान चलाएंगे। शराब से घर तबाह होता है,। जब लोग मन से इस बात को मान लेंगे, समझ लेंगे, तो खुद शराब पीना छोड़ देंगे, शराब दुकानें खुद बंद हो जाएंगी। सरकार शराबबंदी नहीं करेगी। हम सब प्रयास करेंगे तो प्रदेश धीरे-धीरे नशा मुक्त हो जाएगा।

मध्यप्रदेश सरकार का खजाना खाली है, वह कर्ज पर कर्ज लिए जा रही है। सरकार को बड़ा राजस्व शराब के जरिए मिलता है। इसलिए वह इसे बंद नहीं कर सकती। कोरोना काल में तो सरकारी खजाने की हालत और भी पतली हो गई है। अब तक सरकार पर यह कर्ज बढ़कर ढाई लाख करोड़ सेे भी ज्यादा हो चुका है। 2020 के वित्तीय वर्ष तक मप्र का हर व्यक्ति 29 हजार रुपए का कर्जदार था, जो हर साल औसतन 4 हजार रुपए की दर से आगे बढ़ रहा है। इस हिसाब से वित्तीय वर्ष 2021-22 तक प्रत्येक व्यक्ति 37 हजार रुपए से ज्यादा का कर्जदार हो चुका है।भले ही यह कर्ज आपने नहीं लिया, लेकिन आपके नाम पर सरकार ले रही है। बता दें कि 8 से 15 मार्च तक जब अंतरराष्ट्रीय महिला सप्ताह मनाया जा रहा था, तब 13 मार्च को भाजपा सांसद उमाभारती भोपाल के बीएचईएल बरखेड़ा पठानी के आजाद नगर इलाके में महिलाओं, लोगों के साथ एक शराब दुकान पहुंची थीं और बाहर पड़ा एक पत्थर फेंक शराब की कुछ बोतलें तोड़ दी थीं। उन्होंने यह कहते हुए सीधे सरकार और कानून को चुनौती दी थी कि अगर यह कानूनन अपराध है तो हां, जनहित में मैंने यह अपराध किया है। इसे शुरुआत बताते हुए उन्होंने इस ‘पत्थर’ के जन आंदोलन बन जाने की चेतावनी भी दी थी।

उमा भारती की मार्च में कही यह बात सही साबित हो रही है। वह शराबखोरी से परेशान और जागरूक महिलाओं की रोल मॉडल बन गई हैं। भोपाल के गोविंदपुरा, खजूरी कलां, अवधपुरी, मनीषा मार्केट, बेरसिया सहित कई इलाकों में रातों-रात खुली शराब दुकानों के खिलाफ महिला, बच्चे और उनके परिजनों के साथ सड़कों पर उतर आए हैं। सागर के देवरी, रायसेन, इंदौर के बिचैली मर्दाना इलाके में भी लोग नई शराब दुकाने खुलने के विरोध में सड़कों पर उतर आएं। प्रदेश भर से इस तरह के आंदोलनों की खबरें आना तेज हो गई हैं। कई जगह कानून-व्यवस्था और पुलिस, शराब कारोबारियों से झड़पें भी सामने आई हैं। शराबबंदी के मुद्दे को लेकर शिवराज सरकार और उमाभारती के बीच तनातनी का फायदा कांग्रेस उठा रही है और सरकार पर हमला बोल रही है। कांग्रेस नेता, पूर्व मंत्री जीतू पटवारी ने शिवराज सिंह पर सीधा हमला बोलते हुए कहा है कि बेटे-भांजे-भांजियों की बात करने वाला मामा बच्चों को नशेड़ी बनाना चाहता है। शिवराज की मंशा मध्यप्रदेश को मदिरा प्रदेश बनाने की है, लेकिन कांग्रेस चुप नहीं बैठेगी, वह शराबखोरी को बढ़ावा देने और प्रदेश को बर्बाद करने की मंशा जन-जन को बताएंगे। शिवराज-उमा के बीच टकराहट की आग में कांग्रेस अपनी खिचड़ी पकाना चाहती है। कांग्रेस इस हाथ आए मुद्दे को खोना नहीं चाहती, इसलिए वह उमा भारती के शराबबंदी आंदोलन का समर्थन कर रही है। यहां एक गौर करने वाली बात यह है कि उमा भारती हों, या कमलनाथ, इनमें कोई भी अपने मुख्यमंत्री रहते शराबबंदी की बात नहीं करता था, न इनके कार्यकाल में शराबबंदी कभी मुद्दा बना। अब बीजेपी नेता उमा भारती का शराबबंदी के लिए चलाया जा रहा अभियान और पत्थरबाजी लगातार चर्चा में है। इसे दलगत राजनीति से ऊपर उठकर कुछ नेता और विधायक समर्थन भी दे रहे हैं।
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